बुधवार, 5 सितंबर 2012

कहानी : स्कूल का पहला दिन

              अरे ! उठो भी देर हो रही है । बीनू ने बीजू को जोर - जोर से झकझोरा  । करबट बदलते हुए बीजू ने कहा ।
क्या हो गया इतनी सुबह सुबह .........
क्या हो गया कुछ याद भी है ....आज से अपने गोलू ने स्कूल जाना है ....
अरे ! बाबा .... । कम्बल को एक तरफ फेंकता हुआ बीजू उठ बैठा ... । गोलू उठ गया .....  ।
हाँ ! पहले उसे ही जगाया । बड़ी मुश्किल से जगा । लेकिन स्कूल के लिए स्पस्ट मना कर रहा है ..... नहीं जाऊँगा स्कूल ।
टेस्ट वाले दिन तो .........
उस दिन तो उसे पता नहीं था कुछ भी .... मेरी सुनता कौन है .... आज इसे एक साल पहले ही स्कूल भेज देते तो यह नौबत नहीं आती । कहने लगे अभी छोटा है  .... तीन साल का हो तो गया था । अब चार से भी  ज्यादा  का  हो गया । बढ़ा हो गया ......इसीलिये  तो बात नहीं मान रहा है । अब तुम ही मनाओ उसे । बीनू गोलू का नया बैग और पानी की बोतल  तैयार करने लगी । आज बड़ी मुश्किल से बीजू  उसे स्कूल ले   गया  ।  लेकिन जब वह उसे लेकर  स्कूल के अन्दर ले जाने लगा  तो गोलू महाराज तो गेट पर ही अड़ पड़ कर बैठ गए । आपने झूट बोला ....बाहर से ही वापस ...... मुझे नहीं जाना स्कूल ...... घर में ही रहना है ......खेलना है ....अपने रौक्सी के साथ ....नहीं जाना।  हूँ ....हूँ.... करके रोने लगा । बीजू ने उसे गोदी में उठाने की कोशिश की लेकिन वह समझ गया कि यह मुझे उठाकर स्कूल छोड़ देंगे । वह काफी देर तक गेट पर  पैर फंसाए यूं ही सुबकता रहा । स्कूल स्टाफ के भी सारे प्रयास बिफल हो गए । अब स्कूल में प्रयेर हो चुकी थी सारे बच्चे अपनी - अपनी कक्षाओं में जा चुके थे । बच्चों को कक्षा में बिठाकर अब उस क्लास की टीचर आ गयी जिस क्लास में उसका एडमिशन  हुआ । वह नीचे ही गोलू के साथ जमीन पर पंजों के बल बैठ गयी । बीजू की  तरफ देखते बोली .... क्यों जबरदस्ती  ....परेशान .... कर रहे हो इतने प्यारे बच्चे को । नहीं जाना उसे स्कूल तो क्या हुआ । और बीजू को  यह इशारा कर वापस घर लौटने को कह दिया कि एक घंटे में वापस आ जाना । दबे पाँव से बीजू  घर लौट गया । थोड़ी देर में गोलू ने  देखा कि  पापा वंहा पर थे ही नहीं । अब वो और भी जोर से रोने लगा । पापा .... पापा ..... कहते हुए खड़ा हो गया ....
बेटा तेरे पापा अभी आ रहे हैं ..... चलो तुम्हे स्कूल नहीं जाना तो कोई बात नहीं ...तुम एक काम करो ... उसने स्कूल के उस छोटे से लॉन का गेट खुलवाया जिसमे बीचों बीच बने छोटे से तालाब में सुन्दर कमल के फूल खिले थे ...किनारे - किनारे खरगोश और  बिदेशी मुर्गियों  के पिंजरे । गोलू को देख लगा कि उसे मुर्गियां अच्छी लगी । टीचर उसे उनके पास ले गयी  जो गोलू को अपनी भाषा में गर्दन उठा -उठा कर न जाने क्या कह कह रही थी  ।गोलू अब भी सुबक ही रहा था परन्तु रो नहीं रहा था । गोलू क्या कह रही हैं यह हेन  ... गोलू ने कोई जबाब नहीं दिया । टीचर समझ गयी अभी इसका मूड सही नहीं । अच्छा तुम एसा करो जब तक तुम्हारे पापा आते हैं इनको  देखना ...कोई किसी किसी के साथ सैतानी करे तो मुझे बताना  । यह लो बिस्कुट साथ - साथ खा लेना । मै सामने बैठी हूँ  ।  हाँ ...यह जो ह्वाईट कलर की है इसका नाम है ह्वाईटी ...ब्लैक कलर की ब्लैकी और यह जो बदमास है इसका नाम है ओरेन्जू .....। वह गोलू को वंहा छोड़ कुछ  दूर जा कर घोड़े के आकार वाली बेंच पर किताब पलटने लगी । उसकी क्लास के बच्चों को अब स्कूल की प्रिंसिपल देख रही थी । गोलू अब पहले की अपेक्षा सामान्य हो गया । टीचर की तरफ एक दो बार उसने देखा लेकिन उसने जानबूझकर अनदेखा सा कर दिया । गोलू ने  बिस्कुट का पैकेट खोला और  टुकड़े कर - कर उन मुर्गियों को  देने लगा । लेकिन उसे आश्चर्य हुआ तीनों में से केवल तो ही बिस्कुट खा रहे थे । हवाईटी को बिस्कुट मिल भी रहा था तो वह खुद नहीं खा रही थी । ब्लेकी या ओरेंजू को खिला देती  । गोलू को यह बात  अजीव सी लगी  । सीधे टीचर के पास आ गया । जब टीचर गेट के पास गोलू के साथ बैठ रही थी तभी उसके पापा ने कहा था गोलू यह तुम्हारी टीचर है । गुड मोर्निग करो ।
नहीं  ..... मुझे नहीं करना ...... । रोते -रोते कहा उसने और पुनह अपनी हठ पर बैठ गया । अब बात अलग थी पापा भी नहीं थे आस पास  .. न ही वह घर में था जो मम्मी से कुछ पूछता । अब उसके सामने सिर्फ एक ही बिकल्प था ... वह थी टीचर । धीरे - धीरे गोलू अब टीचर के पास आया और आहिस्ता से डरते - डरते कहने लगा - टीचर ह्वाईटी  बिस्कुट नहीं खा रही है ......
अच्छा ..... चलो दोनों मिलकर खलाते हैं उसे ..... । टीचर गोलू का हाथ पकड़ कर अपने साथ ले गयी । टीचर ने भी ह्वाईटी को अपने हाथों बिस्कुट दिए ... लेकिन वह फिर बिस्कुट लेती और दोनों को खिला देती ।
टीचर यह तो अब भी नहीं खा रही । इसे बिस्कुट अच्छे नहीं लगते । इसीलिये तो .....। उसने  मासूमियत से बोला ....
हाँ ..... तुम भौत इंटेलिजेंट बच्चे हो । कहते कहते उसने गोलू के गालों को चूम लिया । जिसे गोलू ने अपनी कमीज पर पिन के सहारे लगे हैंकी से पोंछ लिया ।
अच्छा बच्चू ..... ।  गोलू के मोटे - मोटे , छोटे छोटे गालों   पर पहली बार हल्की सी मुस्कराहट आयी ।
टीचर मेरे बैग में कुर्कुर्रे हैं । ह्वाईटी को कुर्कुर्रे देते हैं । उसने झट से अपने नन्हे - नन्हे हाथों से बैग की तनियाँ खोली । कुर्कुर्रे का पेकेट खोलकर उसमे से एक -एक कुर्कुर्रे उनको अपने हाथों देने लगा । लेकिन अब भी ह्वाईटी पहले जैसा ही करती । उसकी समझ में कुछ नहीं आया  । अब उसने चाकलेट के भी छोटे - छोटे टुकड़े कर उसे दिए  । ह्वाईटी अब भी वही कर रही थी । अब गुस्से में
जा मैं नहीं देता तुझे कुछ भी । पैर झटकते हुए टीचर का हाथ पकड़ लिया और दूसरी ओर मुड़ कर  बाकी बची चाकलेट अपने मुह में डाल दी ।
तुम्हारा नाम गोलू हैं न .... अब उसने सहमति से  शिर हिला दिया .....। जानते हो ह्वाईटी क्यों नहीं खा रही है ..
वह उत्सुकता से टीचर की तरफ देखने लगा .... क्योंकि अब उसे लगा कि उसके प्रश्न का जबाब मिलने वाला है ...।
देखो गोलू जब ब्लैकी और ओरेन्जू .....का पेट भर जायेगा ।   उसके बाद ही तो कुछ   खायेगी ह्वाईटी न .....
लेकिन क्यूं ..........
इसलिए कि यह जो ह्वाईटी है न ........... यह ब्लैकी और ओरेन्जू की माँ है .. समझे ...... ।
इससे पहले कि गोलू कोई पर्तिक्रिया कर पाता  उसके पापा वंहा आ पंहुचे ...... और वह दोनों हाथ फैलाकर दौड़ - दौड़ कर गया और पापा के गले से चिपक गया और तिरछी आँख से टीचर की ओर देख हल्का सा मुस्करा दिया ।

@2012 विजय मधुर 



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आभार