रविवार, 19 सितंबर 2010

हो गया है प्यार

किस बात का है गम
जो जागते हो रात भर
 लेते हो नाम उसका
जिसे  देखा ही नहीं |

 नाम से .........
कल्पना के सागर में
गोते लगाना
सपनों को हकीकत में ढालना
प्यार जताना
एक पहेली |

 बूझो तो जानो
खुद को पहचानो
जंहा खड़े हो
वंहा से निकलते हैं
कई रास्ते
लग गया तुका
तो हो गए पार
वरना हो जायेंगे
सपने  तार- तार |

बात पर उसकी
थोडा सा करो एतवार
अब सो जावो
जागकर.....
सोचकर बताना
 हो गया है  प्यार |
  • Copyright © 2010 विजय मधुर

शनिवार, 11 सितंबर 2010

पतंग की डोर

उमड़ घुमड़ बदरा आये 
तन ... मन ....
वन  .... उपवन हर्षाये 
खींचे  .....
पतंग की डोर 
थिरक थिरक नाचे मोर |


तोता - मैना
राजा रानी 
सभी कहानी 
हो गयी पुरानी 
अब तो नदियों ने भी 
हठ करने की ठानी  |

बनाओ बाँध 
बढ़ाओ बिजली 
बहना है स्वभाव 
रोक सको तो रोको 
पर पहले ......
उसको टोको 
जो सुरंगे बनाने 
कर रहा है तैनात
चूहों को ................ | 

कंही  यह न हो
तुम छोटी सी खुशी में 
स्नान - ध्यान कर
ढोल - नगाड़े बजाकर
चैन की नींद सो जाओ
और .......
सुबह होने पर 
तट पर बैठ टसुवे बहाओ |


आखिर ........!
खींचे कौन पतंग की डोर
थिरक थिरक नाचे मोर |
  • Copyright © 2010 विजय मधुर





nirmal संगीत

सोमवार, 6 सितंबर 2010

टिहरी झील

समुद तट
बनती बिगडती  लहरें
कूदती फांदती मछलियाँ
दूर एक नांव
अब .......
नजर नहीं आता
मेरा गाँव...... |

वही गाँव
जिसके खेतों से
चुराते थे
मटर-मसूर
ठंक्रों  से कखड़ियां
पेड़ों से
चकोतरे..... अखरोट..
आडू.....आलूबुखारे..
लाल-लाल नारंगियाँ |

दादी......माँ ....
काकी .... बोडी ...की
मोटी-मोटी गालियां
कभी-कभार  मार भी... |

घनघोर कुयेड़ी
रिमझिम बारिश
बन्जरौ में डंगर चुगाना
एक बहाना
क्योंकि इन दिनों
नहीं खेल सकते
कब्बडी... गुली डंडा...
खेल लुका छुपी |

नहीं जा सकते
नदी में ...
मारने डुबकी
पकड़ने गड्याल
जिन्हें अब
बड़ी मछलियाँ
निगल गयी. |

मकान - दुकान
खेत .. खलियान
पेड़..पौधे..
धारा.... पंदेरा..
मंदिर..श्मशान
के ऊपर अब
पर्यटकों  से भरी
नावें तैरेंगी.... |

सुनसान तट पर
जगमगायेंगे
आलीशान होटल
थढ़िया - चौंफला
झुमैलो की पैरोडी  पर
थिरकेंगी बालाएं.... |

चारों तरफ रौनक ही रौनक
मिल सकती है नौकरी
चला सकता हूँ नाव
क्या हुआ अगर
नहीं आता नजर
मेरा गाँव........... |