शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

आग्रह : कविता संग्रह : मन की बातें

   १४ अगस्त २०१७ को मेरी दूसरी पुस्तक हिंदी कविता संग्रह "मन की बातें' ने साहित्य जगत में प्रवेश किया | पाठकों द्वारा कविता संग्रह को सराहा गया या नहीं यह तो नहीं जानता लेकिन फटे-पुराने कागजों में दम तोडती रचनाओं को किताब के रूप में नया जीवन अवश्य मिल गया | आज यह कविता संग्रह नीचे दिए गए लिंक्स पर उपलब्ध है | कृपया एक प्रति मंगवा कर हिंदी पुस्तकों एवं रचनाकार को प्रोत्साहित करने का एक आग्रह है |













श्री मनोज कुमार, विधायक दिल्ली एवं गणमान्य व्यक्तियों के साथ 

डॉ. विनोद बछेती, प्रवंध निदेशक डीपीएम्आई के साथ 

स्वयं, श्री मनोज कुमार एवं श्री ललित केशवान जी के साथ 

सुप्रसिद्ध साहित्यकार, पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक जी के साथ 
प्राक्कथन
    कविता रसात्मक वाक्य को कहते हैं, जबकि गद्य रसात्मक होने पर भी कविता नहीं कहलाता | कविता जिस भाव को एक वाक्य में कह देती है गद्य उसे कई वाक्यों में भी नहीं समझा सकता | इसीलिए कविता स्मृति पटल में लहरों के रूप में स्थिर हो जाती है, जबकि गद्य  स्थिर होते हुए भी तरंगित होता रहता है | कविता भावों को जीवित करती है तो गद्य विचार बुद्धि की व्यायाम शाला का विषय है | एक युग था जब गद्य  और पद्य   अलग होते थे, लेकिन वर्तमान की कविता में भाव और विचार एक साथ देखे जा सकते हैं | पूर्व में पद्य   लिखना सरल और गद्य लिखना कठिन होता था, लेकिन वर्तमान में तो यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है, कवि कविता रच रहा है या गद्य  | इसीलिए इसे समीक्षा में आधुनिक कविता कहते हैं | आपके हाथों में कवि ‘मधुर’ का यह कविता संग्रह आधुनिक कविता का एक उदाहरण है |
      2 अक्टूबर सन 1964 में लैन्सडौन में जन्मे प्रसिद्ध समाजसेवी, शिक्षाविद् एवं साहित्यकार स्वर्गीय झब्बन लाल विद्यावाचस्पति और श्रीमती गायत्री देवी के सुपुत्र श्री विजय कुमार ‘मधुर’ को साहित्यिक होने का गुण अपने पिताश्री से ही प्राप्त हुआ | एम.कॉम., एम.सी.ए. जैसी उच्च शिक्षा की उपाधियों से अलंकृत और भारत सरकार के प्रमुख प्रतिष्ठान तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम में प्रबंधक के रूप में कार्यरत श्री मधुर मूलतः पौड़ी गढ़वाल जनपद, मवालस्यूं पट्टी के अंतर्गत ‘रणस्वा’ नामक ग्राम के निवासी हैं | पूर्वजों की धरती और संस्कृति से अगाध श्रद्धा रखने वाले इस कवि को जहां ईश्वर ने साहित्य सृजन की अपार सम्भावना को लेकर इस धरती पर अवतरित किया, वहां कर्म के क्षेत्र में तन मन से समर्पित इस समाजसेवी नवयुवक को नव पीढ़ी के प्रेरणा स्रोत के रूप में यशस्वी होने का वरदान भी दिया |
      अनेक पत्र पत्रिकाओं में गढ़वाली और हिन्दी लेखों के लेखन, संपादन और कंप्यूटरीकरण में दक्ष इस नवयुवक ने जहां साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की, वहां इन दोनों भाषाओँ में कहानी, कविता और नाटकों का सृजन कर साहित्यिक सृजन में सफल भूमिका निभायी है | वर्ष 1984 से निरन्तर साहित्य सेवा करने वाले कविवर मधुर का सबसे बड़ा ऐतिहासिक कार्य है, अपने पिताश्री झब्बन लाल विद्यावाचस्पति पर तैयार किया गया, उनका स्मृति ग्रन्थ, “प्रसिद्ध समाज सेवी, शिक्षाविद् एवं साहित्यकार स्वर्गीय झब्बन लाल विद्यावाचस्पति स्मृति ग्रन्थ” जिसे पढ़कर श्री विजय कुमार ‘मधुर’ की लेखन और संपादन कला के समक्ष नतमस्तक होने का मन करता है |
      श्री विजय कुमार ‘मधुर’ नवयुग के कवि हैं इसलिए इन्होने “काट छन्द डर के बन्धन स्तर” जैसे कविता अंश के संदेश पालन में छंदों का निषेध कर नए मुक्त छंद में कविताएं रची हैं | इस कविता संग्रह “मन की बात” की प्रथम कविता “चित्तशक्ति:” भले ही छंद विहीन कविता है लेकिन कवि ने इसे सलीखे और मधुर शब्दों में गूंथकर प्रस्तुत किया है जिसमें इनकी कविता कला का सहज अनुमान लगाया जा सकता है | कवि की यह छन्दविहीन कविता भले ही गीतों में गिनी जा सकती है लेकिन इसकी गतिशीलता किसी छंदयुक्त कविता से कम नहीं है |
      आज का युगीन कवि भले ही छायावाद का नाम सुनकर विदकने लगा है लेकिन यदि कवि प्रतिभावान हो तो उसके मुख से निकली ऐसी छायावादी कविता उसे एक सच्चा कवि होने का प्रमाणपत्र अवश्य देती है | कवि कहता है – “छोड़ दिया है अब मैंने,  अम्बर की ओर ताकना, सघन मेघमालाओं में, छिटकी चांदनी तलाशना |” 
      कवि के मन में जहां अदृश्य शक्ति के प्रति अपार आस्था भाव है, वहीं माता-पिता के प्रति अगाध श्रद्धा भी | इसीलिए कवि ‘मधुर’ अपने पिताश्री स्वर्गीय झब्बन लाल विद्यावाचस्पति के त्याग और बलिदान की ओर संकेत करते हुए कहता है – “आसमान में झिलमिलाते, सितारों के मध्य, देख सकता है तुम्हे वही, जिसने त्याग और बलिदान की, वेदना हो सही |” कवि इनके त्याग और बलिदान की व्याख्या करता हुआ कहता है “जीवन कर दिया समर्पित, माटी के नाम ...|”
      कवि की “मेरी माँ” कविता हृदय की गहराइयों से निकली ऐसी कविता है, जिससे प्रत्येक पर्वतवासी, ग्रामीण, नवयुवक तादात्म्य स्थापित कर इसके भावों और वर्ण्य विषय में अपनी माँ की छवि देखता है | यही नहीं इस कविता को यदि प्रत्येक गढ़वाली नारी की प्रतीकात्मक छवि दर्शन वाली कविता कह दें तो अत्युक्ति न होगी | कवि अपनी माता की छवि शब्दों के माध्यम से अंकित करता है – “गीली लकड़ी सुलगता चूल्हा |”
      इस कविता में कवि मधुर ने अपने शब्द और भावों से जो चित्र खींचा है, उसे बनाने में व्यक्ति को मन का रंग और विचारों की कूचिका की आवश्यकता पड़ती है | कवि मधुर ने अपने स्वभावनुकूल प्रकृति के जो दृश्य सहृदय पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किए हैं वे चाहे स्वयं में इतने स्पष्ट और स्वच्छ हो न हों, लेकिन उनकी अनुकृति, अरस्तु के “अनुकृति सिद्धान्त” को सफल सिद्ध करती है, कवि की “रक्षक” कविता इसका प्रमाण देती है – “तपती धूप, आंधी-तूफान से बचाकर, पाल पोसकर बड़ा किया, जिन पेड़ों को |” 
            कवि मधुर के इस संग्रह “मन की बात” में विविध विषयों एवं रंगों की कविताएं हैं | राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और साहित्यिक विषयों की कविताएं भी इसकी श्रीवृद्धि करती है | साहित्यिक विषय पर लिखी इनकी कविता “हिन्दी दिवस” में कवि अपनी कविता संपति की ओर संकेत करते हुए कहता है कि “हिन्दी दिवस” के बहाने मैं प्रत्येक वर्ष अपनी सोयी हुई कविताओं में से एक को जगा लेता हूं | कवि की यह कविता मानवीयकरण अलंकार का अद्वितीय उदाहरण है जो कि एक यथार्थवादी कविता है | 
      इस कविता संग्रह की एक कविता है ‘नकाब’ यह एक ऐसा व्यंग्य है जो बहुभेषी राजनीतिकों पर कसा गया है, कवि कहता है – “नकाबों का बाजार गर्म है, बिक रहे हैं खूब, फुटपाथों से लेकर वातानुकूलित, बड़ी-बड़ी दुकानों पर |”
      आज का सत्य, प्रगति का प्रतीक और उन्नति की लीक बन गया है कम्प्यूटर | लेकिन इसने जीवन की धारा बदल दी है, अब नई पीढ़ियां उदास हैं | इसने हमें अपना गुलाम बना दिया है कि हम अपने ढंग से सोच भी नहीं सकते | इससे हमारी संवेदनाएं समाप्त हो चुकी हैं | कवि इसी ओर संकेत करके कहता है – “कंप्यूटर युग, कंप्यूटरी बातें,  लम्बे दिन, छोटी रातें |” 
      कवि मधुर कवि ही नहीं, विचारक भी हैं तो विचारों के प्रचारक भी | इन विचारों को प्रश्नों के माध्यम से साहित्य जगत तक पहुंचाने वाले इस कवि के ‘मन’ में पांच प्रश्न उभरते हैं | इन प्रश्नों का सम्बन्ध है अपराध, न्याय, क़ानून, प्रतिभूति(जमानत) और सजा से | इनकी परिभाषा पूछने वाला यह कवि कहीं न कहीं आज के न्याय और उससे आहत उस व्यक्ति के विषय में सोचता है, जो अपराधी है ही नहीं | कवि ने केवल मुक्त छंद में ही कविता को कलेवर नहीं सौंपा अपितु गीत शैली की कविता भी गुनगुनाई है | “नींद हराम, मैं क्या करूं मेरे राम !”
      कुल मिलाकर इस कविता संग्रह से कवि ‘मधुर’ की जो कविताएं पाठकों के हाथों में आयी हैं, उनकी भाषा बड़ी मधुर, वाक्य नपे तुले और शब्द चयन प्रशंसनीय है | न तो इनमें आज के दिलजले कवियों की अश्लील भाषा और नहीं द्वेष फैलाने वाले भाव | इन कविताओं में आक्रोश, ईर्ष्या और द्वेष भावना तो दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती | यह कविता संग्रह, सभ्य संसार की संस्कृतिपरक अभिव्यक्ति है |
      कवि विजय कुमार ‘मधुर’ का रचना जगत में स्वागत हो, इन्ही शुभकामनाओं के साथ मै अपने शिष्य को साहित्य जगत में आगे बढ़ने का आशीर्वाद देता हूं |

 डॉ. नन्दकिशोर ढौंडियाल ‘अरुण’
राजकीय स्नातकोत्तर  महाविद्यालय
कोटद्वार, पौड़ी गढ़वाल 

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