शनिवार, 25 अप्रैल 2020

कोरोना से डोरोना

       २८ जनबरी के अपने लेख 'किसे कहूं मन की बात' में मैंने  कोरोना की बढ़ती आशंका के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की थी | जनबरी के पश्चात फरवरी आयी मार्च आया और अब अप्रैल माह | जल्दी ही मई का महीना आरम्भ हो जायेगा | मार्च अंतिम सप्ताह में विश्व के साथ-साथ भारत को भी कोरोना महामारी ने अपनी गिरफ्त में ले लिया | अचानक लॉकडाउन की घोषणा की गयी | जो जिस हाल में जहां था वहीं रुकने पर विवस हो गया | प्रतिस्पर्धा के दौर में खुद को ताकतवर साबित करने वाले दिग्गज बचाव की स्थिति में आ गए | विश्व अर्थव्यवस्था और विलासिता पूर्ण जीवन चार दीवारी में सिमट गया | असहाय, मजबूर, मजदूर सभी  भिखारियों की पंगत में खड़े हो गए |  अस्पताल-अस्पताल कर्मी, स्वास्थ्य-स्वास्थ्य कर्मी, सुरक्षा-सुरक्षा कर्मी और आवश्यक सेवा प्रदान करने वाले कर्मियों ने कमर कस ली छुआ-छूत की इस बीमारी से लड़ने के लिए  | लॉकडाउन हुए आज महीना बीत चुका है | जिस तरह रोजगार बिहीन लोग किस हाल में है अंदाजा लगाना नामुकिन है उसी तरह महामारी से प्रभावित आंकड़ें उन अलग-अलग  न्यूज़ चैनलों के विचारों की तरह हैं जो पल-पल बदलते रहते हैं | अभी फिलहाल ३ मई तक देश में लॉकडाउन है | राहत सामग्री, उपचार, मास्क, साफ-सफाई,  सामाजिक दूरी बनाये रखने लिए जनता  और प्रशासन मुस्तैद है | नियमों के पालन, खुद के बचाव और सावधानी में ही भला है | प्रायः  पहाड़ों में सरपट दौड़ती गाड़ियों के लिए हर मोड़ पर निर्देश देखने में आते हैं   - जैसे  गाड़ी धीरे चलायें, आगे तीव्र मोड़ है, दुर्घटना प्रभावित क्षेत्र, सावधानी हटी-दुर्घटना घटी | इन निर्देशों पालन आज हर क्षेत्र में अनिवार्य हो गया है | इसी में जनता और देश की सुरक्षा निहित है |

  • कोरोना से डरो ना  
  • छींटाकसी करो ना  
  •  दिनों-दिन बदलता  
  • है रंग आसमान     
  • जहां मिले ठिकाना   
  • कुछ दिन कैसे भी    
  • वहीँ ठहरो ना |   
        पिछले पन्द्रह दिनों से खिड़की के सामने वाले नारियल के पेड़ पर कौवा-कौवी घोसला बनाने में ब्यस्त थे | घोसला पूर्ण बन चुका है | कोवी दिन-रात अब उसमें बैठी रहती है | कौवा पेड़ के इर्द-गिर्द पहरेदारी में लगा रहता है | दूसरे पक्षियों और गिलहरियों को पेड़ के आस-पास नहीं फटकने देता | पूरी खिड़की खोल कभी मैं भी धूप और हवा का आनंद उठाना चाहूं या उनकी गतिबिधियों नज़र रखता हूँ तो कौवा मुझे घूरने लगता है |  जोर-जोर से काँव-काँव करने लगता है | मैं खिड़की बंद कर देता हूँ | कमरे की खिड़की तो बंद हो जाती है लेकिन मन की खिड़की हर पल खुली रहती है | विचार करती है चिन्तनशील रहती है सोते जागते उनके लिए, जो अपने मन की खिड़की-दरवाजों को तालों में बंद किये बैठे हैं | चिंताग्रस्त, रोगग्रस्त, अभावग्रस्त बच्चों महिलाओं बुजुर्गों की बदहाली के लिए | तिल-तिल मरते दफ़न होते युवाओं और अपनों के सपनों के लिए | 
       चार-पांच दिनों से रोज बारिश और तेज हवाएं चल रही हैं | कौवा-कौवी अपने कर्म क्षेत्र में अडिग हैं  | कोयल अपने मधुर कंठ की सुरीली आवाज से कानों में मिस्री घोलती, नयी आस जगा रही है | मेरे मन की बात आखिर किसी ने तो सुनी | व्यथित न हो सब ठीक हो जाएगा | 

@०२/2020 विजय मधुर