२८ जनबरी के अपने लेख 'किसे कहूं मन की बात' में मैंने कोरोना की बढ़ती आशंका के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की थी | जनबरी के पश्चात फरवरी आयी मार्च आया और अब अप्रैल माह | जल्दी ही मई का महीना आरम्भ हो जायेगा | मार्च अंतिम सप्ताह में विश्व के साथ-साथ भारत को भी कोरोना महामारी ने अपनी गिरफ्त में ले लिया | अचानक लॉकडाउन की घोषणा की गयी | जो जिस हाल में जहां था वहीं रुकने पर विवस हो गया | प्रतिस्पर्धा के दौर में खुद को ताकतवर साबित करने वाले दिग्गज बचाव की स्थिति में आ गए | विश्व अर्थव्यवस्था और विलासिता पूर्ण जीवन चार दीवारी में सिमट गया | असहाय, मजबूर, मजदूर सभी भिखारियों की पंगत में खड़े हो गए | अस्पताल-अस्पताल कर्मी, स्वास्थ्य-स्वास्थ्य कर्मी, सुरक्षा-सुरक्षा कर्मी और आवश्यक सेवा प्रदान करने वाले कर्मियों ने कमर कस ली छुआ-छूत की इस बीमारी से लड़ने के लिए | लॉकडाउन हुए आज महीना बीत चुका है | जिस तरह रोजगार बिहीन लोग किस हाल में है अंदाजा लगाना नामुकिन है उसी तरह महामारी से प्रभावित आंकड़ें उन अलग-अलग न्यूज़ चैनलों के विचारों की तरह हैं जो पल-पल बदलते रहते हैं | अभी फिलहाल ३ मई तक देश में लॉकडाउन है | राहत सामग्री, उपचार, मास्क, साफ-सफाई, सामाजिक दूरी बनाये रखने लिए जनता और प्रशासन मुस्तैद है | नियमों के पालन, खुद के बचाव और सावधानी में ही भला है | प्रायः पहाड़ों में सरपट दौड़ती गाड़ियों के लिए हर मोड़ पर निर्देश देखने में आते हैं - जैसे गाड़ी धीरे चलायें, आगे तीव्र मोड़ है, दुर्घटना प्रभावित क्षेत्र, सावधानी हटी-दुर्घटना घटी | इन निर्देशों पालन आज हर क्षेत्र में अनिवार्य हो गया है | इसी में जनता और देश की सुरक्षा निहित है |
- कोरोना से डरो ना
- छींटाकसी करो ना
- दिनों-दिन बदलता
- है रंग आसमान
- जहां मिले ठिकाना
- कुछ दिन कैसे भी
- वहीँ ठहरो ना |
चार-पांच दिनों से रोज बारिश और तेज हवाएं चल रही हैं | कौवा-कौवी अपने कर्म क्षेत्र में अडिग हैं | कोयल अपने मधुर कंठ की सुरीली आवाज से कानों में मिस्री घोलती, नयी आस जगा रही है | मेरे मन की बात आखिर किसी ने तो सुनी | व्यथित न हो सब ठीक हो जाएगा |