मै बावला
समुद्र तट पर
अब भी
ढूँढ रहा हूँ
वो निशान
जो गुम हो गए
न जाने कब
रात के घने अँधेरे में ।
अब तो वह
लहरे भी
भागने लगी हैं
दूर ........
जो छू कर
जाती थी
कभी
गीली रेत पर
मेरा नाम
लिखती
उन उंगलियों
के साथ - साथ
मेरे .....
तन - मन को ।
लहरों तुम क्या
समझती हो .....?
वादों की झड़ी के बाद
मुंह मोड़ना
आता है मुझको भी ।
जाओ .......!
नहीं देखनी
तुम्हारी अटखेलियाँ
नहीं सुननी
मीठी - मीठी बातें
शीतल पवन बिन
हर लम्हे को गिन
जी लूँगा
हर हाल में
चांदनी रातें .....।
@2012 विजय मधुर