पंतुरु गाँव में एक सीधा - साधा साधारण ब्यक्ति मंत्रु रहता था । ध्याड़ी मजदूरी कर वह अपने परिवार का भरण - पोषण बड़ी इमानदारी से करता था । कभी न तो किसी के आगे हाथ फैलाता न ही परिवार को फैलाने देता था । कई बार तो उसके परिवार को रात को भूखा सोना पड़ा लेकिन मंत्रु ने कभी भी अपने आदर्शों के साथ समझोता नहीं किया । आर्थिक स्तिथि दयनीय होने के बाबजूद वह किसी के सामने जाहिर नहीं होने देता कि वह बड़ी मुश्किल से अपना परिवार पाल रहा है । दोनों बच्चों को नियमित स्कूल भेजता । स्कूल में अध्यापकों को बच्चों की ड्रेस , किताब, कापी . कलम , फीस सम्न्धी किसी प्रकार की भी शिकायत का वह मौका नहीं देता था । एक दिन भगवान् ने उसकी सुन ली बड़े बेटे ने किसी तरह इंटर पास कर लिया । उस समय इंटर पास बहुत बड़ी परीक्षा पास मानी जाती थी । गाँव वालों के आग्रह और प्रयासों से उसे गाँव के ही स्कूल में पढ़ाने का मौका मिल गया । गाँव में इधर उधर का फालतू खर्चा तो था नहीं इसलिए स्कूल से जो भी महीने के पैसे मिलते वह उसे माँ को दे देता ।जिसमे से उसकी माँ एक पाई भी खर्च न करती । कहती इस पैसे से मैं अपनी बहू के लिए गहने बनाउंगी । कपड़े - लत्तों की कमी तो कभी भी मंत्रु ने उन्हें वेसे भी न होने दी । बाज़ार में यदि कपडे वाले की दूकान या मकान में ध्याड़ी करता तो कुछ ध्याड़ीयों के बदले कपडे ले लेता । दर्जी के यंहा मजदूरी की तो शिलाई हो जाती । इमानदारी , खुद्दारी और बुरी आदतों से कोसों दूर मंत्रु को लोग सामान्य ध्याड़ी से दो पैसे ज्यादा देने में कभी नहीं हिचकिचाते थे । देखते - देखते छोटे बेटे ने भी एक दिन बारहवीं पास कर ली । उसे आस - पास के स्कूलों में पढ़ाने के लिए बुलाया गया लेकिन वह नहीं माना उसके सपने परिवार के अन्य लोगों से अलग थे । बढ़ा आदमी बनने की उसमे ललक थी । उसी दौरान लोकसभा चुनाव की गहमा - गहमी शुरू हो गयी । वह भी बढ़ चढ़ कर एक पार्टी के झंडे - डंडे उठाने में जुट गया । जन्हा सभा में प्रत्याशी को आने में ज्यादा ही बिलम्ब हो जाता माइक पर बोलने का मौका भी मिल जाता । इस दौरान उसकी वाक पटुता इतनी अच्छी हो गयी थी कि आस पास सभी गांवो के लोग उसे भली भांति जानने लग गए। बोलते - बोलते वह बीच - बीच में कुछ ऐसे चुटकुले सुना देता कि लोग लोट - पोट हो जाते । एक दिन तो बीरबल बादशाह के किस्से में उसने प्रत्याशी का नाम जोड़कर उसे भी एक किरदार बना दिया । गनीमत समझो उस समय प्रत्याशी महराज वंहा पंहुचे न थे । लेकिन उसे भी जनता ने खूब सराहा और ठहाका लगाते - लगाते यह भी भूल गए कि लोक सभा प्रत्याशी पूर्व मंत्री जी मंच पर आ पंहुचे हैं । ज्यों ही संत्रू माइक छोड़ दुसरे को देने लगा तो पूर्व मंत्री भावी प्रत्याशी ने उसे ही जारी रखने को कह दिया । वह भी संत्रू की भाषा शैली पर मुग्ध हुए बिना न रह सके । अपने मुख्य सलाहकार को आदेश दिया गया कि यह लड़का अब पूरे चुनाव के दौरान उनके साथ ही रहेगा । संत्रू को क्या चाहिए था बिना माँ - बाप से पूछे ही हाँ कर दी । दुसरे दिन गाड़ियों के लाव लस्कर में से एक गाडी में कंधे में झोला लटका कर वह भी लद गया । पूरे दस दिन वह कंहा है क्या है घरवालों को कोई खबर नहीं । चिंता के मारे सबकी जान सूखी जा रही थी कि मतदान के ठीक दो दिन पहले ही संत्रू गाँव पंहुच गया । वो भी बाजार तक लाव - लस्कर की एक गाडी में । एक थैले में दो जोड़ी कपडे लेकर गाँव से गया था और लौटा दो बड़े - बड़े सूटकेसों और सूट बूट के साथ । मतदान के ठीक एक दिन पहले गाँव में खूब दावतें हुई जिसने जिन्दगी में कभी सुरा को हाथ तक न लगाया हो वो भी झूमता हुआ संत्रू के गुण गान कर रहा था । संत्रू के माता - पिता और बढे भाई को उसका यह आचरण बिलकुल अच्छा न लगा । लाख समझाने की कोशिश की लेकिन उसके मद के आगे किसी की न चली । आखिर चुनाव खत्म हो गया । चुनाव परिणाम भी आ गया । पूर्व मंत्री पुनह भावी हो गए । क्षेत्र से शोर - शराबा, लाव - लस्कर सब ऐसे गायब हो गए जैसे गधे के सर से सींग । घाटियों में फिर से पहले जैसा सन्नाटा पसर गया । संत्रू के सपने जो घाटियों के उस पार मखमली घास वाले बंगले के इर्द - गिर्द बिचरण कर रहे थे जन्हा से उसे सूटकेस मिले थे समय के साथ साथ वापस घाटी में लौटने लगे ।
@2012 विजय मधुर
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