रविवार, 19 मार्च 2017

कविता : ब्लड ग्रुप

रहने दो अब 
नहीं करनी बहस 
घर देखा 
गाँव देखा 
शहर देखा 
प्रदेश देखा 
देश देखा 
दुनिया देखी 
नहीं कुछ बदलने वाला 
कहता हूँ उससे 
बना ले एक नया ग्रुप 
लहू का 
ए, बी, ओ के संग पी.
पी यानी पॉलिटिक्स | 
@ २०१७ विजय मधुर

मंगलवार, 7 मार्च 2017

कविता : मन की बात

मन डोलता
मन बोलता
बोले किससे
मन की बात

रिमझिम बरसे बदरा
भीग गया तन
भीग गए
वन-उपवन
मन तब भी
प्यासा
मन डोलता .... |

भंवरों का दल आया
हर्षित होकर
उनके संग
गुनगुनाने लगा 
सोचा अब तो
बहार आयी
डार बिन बैठे
मनउपवन में
निकल गयी  
मन डोलता .... |

पोटली बाँध
माली आया
सोचा कोई भेंट लाया
वह भी
कूड़ा-करकट छितराकर
जलती तीली फेंक चला गया
मन डोलता  ..... |

आगे कदम बढ़ते 
ना ही हिम्मत साथ देती  
तन्हाइयाँ यूं ही
संगी बन जाएं

मन डोलता ...... |
***
@ विजय मधुर