सीमा पर
जाते हुए
बेटों ने
माँ से कहा
माँ
हम तेरी
आन ....
बान ....
शान ....
के लिए
सर कटा सकते हैं
झुका नहीं सकते ।
माँ ने ......
अश्रुओं को
थाम
गर्व से
लगाया था
उनको छाती से
चूमा था
उनका भाल ।
माँ को दिया बचन
निभाया बेटों ने
दुश्मन की
हर कोशिश को
किया नाकाम
आज गर्व से
कहती है दुनिया
बेटे हों तो
ऐसे जावांज ।
पर उस माँ से
पूछो कोई
जिसके असंख्य
भालों में
अब भी है
हैं वो भाल
जिनको चूमे उसे
न जाने
बीत गए
कितने साल ।
ब्याकुलता से
मन ही मन
रोती है
फिर
देखती है
बाकी जनता को
जो चैन से
सोती है
और
चुनती है
अपने
दिशा निर्देशकों
नीति निर्धारकों को ।
@2013 विजय मधुर