वही गीत गुनगुनाने का
@१०/२०१७ विजय मधुर
मन करता है डरता है
तारीफ करूँ उसकी
समझता कोई और है
करीबी अपना यहाँ
अब लगता गैर है |
वही गीत गुनगुनाने का ......
जिन्दगी की सुबह
कब हुई याद नहीं
दोपहर में झुलसे हैं
शाम का पता नहीं |
वही गीत गुनगुनाने का ......
इसकी मंजिल
उसकी मंजिल
मंजिलों पर मंजिलें
मधुर लगती भली
तुम्हारी वही गली |
वही गीत गुनगुनाने का ......
गीत के वो बोल फिर से
याद तुम दिला दो
भूल माफ़ कर दो
प्रेम-राग में डूबने दो |
वही गीत गुनगुनाने का ......
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आभार