बुधवार, 9 नवंबर 2016

लेख : क्रिकेट का जश्न

आज एन बक्त पर बिजली गुल हो गयी | कंही एसा तो नहीं कि बिजली सस्ती होने का खामियाजा भुगत रहें हैं एकाएक मन में ख्याल आया | नयी सरकार जो बन गयी है |  बिजली कंपनियों को कौन बोले | उनके पास पावर है | अच्छा भला मैच चल रहा था | लेकिन पड़ोसियों के यंहा का हल्ला कम नहीं हुआ उनके यंहा अभी भी मैच चल रहा है | इंडिया बैटिंग कर रही है |  कंही ऐसा तो नहीं केवल हमारे घर की | दरवाजा खोलते ही पड़ोसियों के दरवाजे के पास रखे इन्वर्टर की  घर्ररर..... की  आवाज कानों में आते ही समझ गया | यह सब इसकी कृपा है जिसकी मेहरबानी से पड़ोसी मैच का लुत्फ़ उठा रहे हैं और हम बिजली वालों को कोस रहे हैं |  

बचपन के वह दिन याद आ गए | जब पूरे बाज़ार में सिर्फ डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर मौर्य साहब का इकलौता ब्लैक एंड वाइट टीवी हुआ करता था | रविवार सुबह रामायण और शाम को फिल्म देखने के लिए सारे बाज़ार के लोग उनके टीवी वाले कमरे में ठूंस – ठूंस कर भर जाया करते थे | जब कमरे में तिल रखने की जगह नहीं बचती तो लोग दरवाजे और खिड़की पर खड़े हो कर टीवी देखते थे | बेचारे मौर्य साहब के परिवार तक को हिलने – डुलने की जगह नहीं बचती थी | दर्शक तभी वंहा से हिलने का नाम लेते जब या तो टीवी बंद हो जाता या बिजली गुल हो जाया करती थी | वंहा बिजली गुल होने का मतलब लम्बे समय के लिये छुट्टी | दिन सप्ताह लग जाते थे विजली आने में | यंहा कम से कम एसा तो नहीं | देर सबेर आ ही जायेगी | लेकिन यंहा एसा भी तो नहीं कि पड़ोसी के यंहा जाकर थोड़ी देर मैच देख लिया जाए | क्या करें शौपिंग मॉल भी तो दूर है नहीं तो वंही जाकर देख लिया जाता मैच | आज का मैच तो गया | अब हाईलाइट देख कर काम चलाना पड़ेगा | मुश्किल से एक घंटे का टाइम तो बचा होगा मैच ख़त्म होने में | बम पटाखे फोड़ने की उत्सुकता क्षीण पड़ गयी | मैच किसी और देश में चल रहा है तो क्या हुआ, है तो पर्तिद्वंदी टीम के बीच | आज तो टीवी समाचार चैनलों की बल्ले – बल्ले हो गयी | आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए जवान की खबर हासिये पर रख कप्तान ... बल्लेबाजों ... और बोल्लरों की तारीफों के पुल बांधने से नहीं थकेंगे | और अगर इंडिया हार गयी तो समझो सबकी खैर नहीं | लेकिन एसा होगा नहीं | बम पटाखे बेचारे रखे – रखे ख़राब हो जायेंगे | किसकी मजाल जो जनता को बम – पटाखे फोड़ने से रोके | प्रदूषण होता है तो होने दो | किसी का दम घुटता है तो घुटने तो | कोसने के लिए सरकार तो है ही |

वेसे भी पिछले एक सप्ताह से टेलीविजन के सभी समाचार चैनलों पर क्रिकेट की चर्चा चल रही है | बड़े – बड़े धुरंदर, पूर्व क्रिकेटर और विशेषज्ञ पुराने आंकड़ों के अनुसार मैच के हार जीत का आकलन कर रहे हैं | सुना है सट्टेबाजी का बाज़ार भी गरम है | कुछ क्रिकेट को अनिश्चितताओं का खेल बताकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं | तो कुछ आंकड़ों के जोड़ तोड़ से इंडिया की जीत पक्की का दम भर रहे हैं | परिणाम कुछ भी हो थोड़ी देर में पता चल ही जायेगा | पड़ोसियों के घर के जोरदार हल्ले से या अचानक सन्नाटे से या उससे पहले बिजली आ गयी तो सोने पर सुहागा |

जनता का दबाव मैच ख़त्म होने से पन्द्रह बीस मिनट पहले सभी घरों से एक साथ आवाज आयी वाह ...... बिजली आ गयी ... बिजली आ गयी | बिजली का इतना बड़ा स्वागत पहले कभी नहीं देखा | पत्नी भी गैस पर उबलते पानी में चाय पत्ती चीनी डालने के पश्चात दूध डालने की हिमाकत नहीं करती | गैस बंद कर दौड़ी – दौड़ी टीवी के पास आ पंहुचती है | मैच अपने निर्णायक दौर में आ पंहुचा था | बची बोलों से लगभग दोगुने रन | शीर्ष बैट्समैन दर्शक दीर्घा से हठ कर बने केबिन में बैठ नाखून चबा रहे होते हैं | दर्शक भी सांस रोके बैठे थे | न जाने अब क्या होगा | सन्नाटा पसरा था | सन्नाटे को तोड़ते हुए पत्नी बोली सुनो फ्रिज के ऊपर से ज़रा मेरी बी.पी. की दवाई दे दो .... पानी भी ले आना एक गिलास | इतने में ही जोरदार छक्का लग गया | सभी घरों से एक सुर में तालियों के साथ हल्ला .... छक्का ....| मैच के ऐसे नाजुक दौर में छक्का लग जाय तो उत्साह बनता ही है | उसके बाद एक - एक दो - दो रन के साथ – साथ चौकों और आख़िरी के बैट्समैनों के बदौलत भारत जीत गया | बम – पटाखों की आवाज से आसमान गूँज उठा | लोग ढोल नगाड़ों के साथ सड़कों पर नाचने लगे | मिठाई बंटने लगी | टीवी मुख्य स्क्रीन पर जीत के हीरों तो स्क्रीन के हासिये पर सैनिक की शहादत की खबर के साथ – साथ बड़े – बड़े नेताओं के बधाई संदेशों की लकीर चल रही थी | हाथ में पानी के गिलास और बी.पी. की गोली को पत्नी की ओर बढ़ाते हुए .. लो गोली खा लो | इसे अब तुम ही खाओ ..... खुश तो होते नहीं कभी .... अब भी पता नहीं क्या चल रहा होगा दिमाग में  | सोफे से उठते ही वह बोली और दरवाजा खोलकर बाहर चली गयी |

@२०१६ विजय मधुर 

शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

कविता : हादसों का शहर

दिलवालों का नहीं 
हादसों का शहर 
बन गया है यह 
बदलते मौसम में 
बीमारियों का घर 
बन गया है यह |

कूड़े के ढेरों पर 
लगे हैं ... 
स्वच्छता के 
इश्तेहार .....
शहर अब यह 
राजनीति का 
अखाड़ा बन गया है |

आन्दोलन चला 
जंहा से 
बेटियों की रक्षा का 
वंही बेटियों को 
शरेआम 
कुचला जा रहा है |

दिलवालों का  नहीं 
हादसों का शहर 
बन गया है यह |

@२०१६ विजय मधुर