कंपकंपाती
ठंड और कोहरे से
हो गयी थी
जो डालियाँ
गुमसुम
एक इंतजार बाद
उनके मुरझाये
चेहरों पर
रौनक लौट आयी ।
सूखी
बेजान
दिखने वाली
टहनियों से
आँखे बचाती
झांकने लगी
नन्ही - नन्ही
कौंपलें
रंग बिरंगी
सुगन्धित
कुसुमबेलियां।
पंछियों की
चहचहाहट ने
छेड़ दी तान
भांति - भांति की
नृत्य मुद्रा में
भ्रमर गुंजन गान ।
डालियों का
श्रंगार
त्योहारों की दस्तक
वातावरण
मदमस्त
है अभिनन्दन
आगमन पर तुम्हारे
मन भावन
प्रिय वसंत ।
@२०१४ विजय मधुर