मंगलवार, 23 जनवरी 2018

गढ़वाली कविता संग्रह “सर्ग दिदा पाणि-पाणि” का लोकार्पण


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लोकार्पण कार्यक्रम का विडियो :

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         19, जनवरी'  2018 को माननीय  श्री  अजय  टम्टा,  केन्द्रीय   वस्त्र   राज्य  मंत्री,  भारत  सरकार                           द्वारा
श्री विजय कुमार “मधुर”  के   कविता संग्रह    सर्ग  दिदा पाणि-पाणि  का लोकार्पण  अपने  सरकारी  निवास 1, जंतर मंतर मार्ग , नई दिल्ली में किया गया| आज हमारे देश के गांवो से द्रुत                गति से पलायन शहरों की तरफ हो रहा है गाँव  के गाँव  खाली हो रहे हैं | वहां की अनगिनत समस्याओं,सामाजिक - राजनैतिक   परिवेश, रीति-रिवाज , खान-पान,  आचार - व्यवहार,  मेले, त्योहार, दैवीय  आपदाओं  और  निरंतर   बदहाल   हो   रही   दशा  का  कविताओं के  माध्यम से  सटीक  चित्रण  देखने  को मिलता  है देव भूमिउत्तराखंड की क्षेत्रीय भाषा गढ़वाली में रचित कविता संग्रह सर्ग दिदा पाणी-पाणीमें |       
   उत्तराखंड जर्नलिस्ट फोरम के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में काफी संख्या में गणमान्य व्यक्तियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करके कार्यक्रम को सफल बनाने में अपनी सहभागिता निभाई |
केन्द्रीय वस्त्र राज्य मंत्री माननीय श्री अजय टम्टा जी 
माननीय श्री अजय टम्टा जी ने पुस्तक की कुछ कविताओं का अवलोकन करते हुए पहाड़ों से हो रहे पलायन और समय-समय पर आयी दैवीय आपदाओं का जिक्र किया कैसे उत्तराखंड अलग-अलग जगहों में आयी आपदा से परिवार के परिवार खत्म हो गए पर गहरी चिंता जताई | पहाड़ों की घटती जनसँख्या के कारण वहां की विधानसभा सीटें कम होती जा रहीं हैं | पलायन कर रहे लोगों का उनकी मूल खाता-खतौनी, डाकघर, स्थानीय बैंकों से नाम मिट रहे है | बहुत ही गंभीर और विचारणीय प्रश्न है | जबकि हिमाचल के गाँवों की स्थिति भिन्न है | हिमाचल में साग-सब्जी, फल-फूल आदि को लोग मूल आवश्यकता के साथ-साथ व्यवसाय के रूप में भी देखते हैं | साथ ही कविता संग्रह के शीर्षक पर उन्होंने विस्तार से चर्चा की कि जब गाँव के धारे, पंदेरों, तालाबों में पानी कम होने लगता है तो चोळी(चातक) नाम के  इस पक्षी को चिंता सताने लगती है और वह आसमान से पानी की गुहार लगाता है और कभी जमीन में रुका हुआ पानी नहीं पीता| केवल आसमान से गिरती हुई बारिस की बूंदों से उल्टा उड़ता हुआ अपनी प्यास बुझाता है |


अखिल भारतीय उत्तराखंड महासभा के अध्यक्ष श्री विनोद कुमार नौटियाल ने सर्ग दिदा पाणि-पाणि बोलती पक्षी चोळी की दंत कथाओं पर आधारित बात बताई | लोग कहते हैं कि इस पक्षी ने मनुष्य योनि में कोई बढ़ा पाप किया था जिसके कारण उसे यह श्राप मिला | यदि वह जमीन का रुका हुआ पानी पिएगा तो वह खून बन जायेगा | इसलिए जैसे ही वह पानी के नजदीक जाता है तो उसे वह पानी नहीं रक्त दिखाई देता है |
कवि एवं रंगकर्मी डॉ. सतीश कालेश्वरी जो कि लैंसडौन कैन्टोमेंट बोर्ड में श्री विजय मधुर के पिता प्रसिद्ध समाज सेवी,शिक्षाविद् एवं साहित्यकार स्वर्गीय झब्बन लाल विद्यावाचस्पति के विद्यार्थी थे जैसा कि उन्होने अपने बक्तब्य में बताया | डॉ. कालेश्वरी जी ने पुस्तक में दर्ज कविताओं पर विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि विजय मधुर ने अपनी कविताओं के माध्यम से  पहाड़ की बिषम परिस्थितियों, दुःख-दर्द, महिलाओं की स्थिति, प्राकृतिक आपदाओं में होने वाली क्षति, नशे के बढ़ते प्रचलन, राजनीति आदि को स्पस्ट रूप से दर्शाया है | पहाड़ के जन जीवन का कोई भी पक्ष उन्होंने नहीं छोड़ा है | मधुर जी की एक कविता की झलक :  म्वाळौ  माद्यो
हम लेखि-पैढ़ि सकदां
गोष्ठी सम्मलेन कैरि सकदां
नै-नै अखबार
किताब छपै सकदां
पी.एच.डी. कैरि सकदां
म्वाळौ माद्यो बणै सकदां
अपणी बोली-भाषा
अर पहाडु तैं
पण भै
हत ज्वड़यां छन
वूं खरड़ा डांडौं
रौल़ा-कुमच्यरौं
जै नि सकदां
वख़ रै नि सकदां
अपणि बोली मा
       बचे नि सकदां ।
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वरिष्ठ पत्रकार श्री सुनील नेगी ने कहा कि कवि ह्रदय होना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है | कवि जिस रूप में अपनी कविताओं के माध्यम से समाज का ताना-बाना बुनता है और अपनी कविताओं के माध्यम से समाज की सेवा करता है वह बहुत ही महत्वपूर्ण है | उसकी बराबरी कोई और नहीं कर सकता | आज उत्तराखंड के साहित्यकार अपनी बोली भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए बहुत बड़ा काम कर रहे हैं उनकी जितनी तारीफ की जाय उतनी कम है |
वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार एवं समाचार पत्र सन्डे पोस्ट के सम्पादक श्री अपूर्व जोशी ने अपने बक्तव्य में कहा कि आज हमारी क्षेत्रीय भाषाएँ खत्म होने की कगार पर है निश्चित तौर पर यह कविता संग्रह आने वाली पीढ़ी के लिए मार्ग दर्शन का कार्य करेगी |
कविता संग्रह “सर्ग दिदा पाणि-पाणि” के रचियता श्री विजय मधुर ने  इस अवसर पर सभी लोगों का आभार व्यक्त करते हुए कविता संग्रह के नाम से जुडी कविता का जिक्र किया और कहा आज हमारे पहाड़ों की स्थिति उस पक्षी चोळी की तरह हो गयी जिसके आस-पास पानी के अनगिनत श्रोत होते हुए भी उसे प्यासा रहना पड़ता है | आसमान से विनती करनी पड़ती है ताकि वह अपनी प्यास बुझा सके | साथ ही उन्होंने अपनी कविता सर्ग दिदा पाणि-पाणि को पूर्ण तन्मयता और लयपूर्ण ढंग से गा कर उपस्थित लोगों का मन मोहा |
अपने आप में अनूठे इस कविता संग्रह “सर्ग दिदा पाणि-पाणि” में लोक भाषा के प्रमुख स्तम्भ श्री लोकेश नवानी, बयोबृद्ध साहित्यकार श्री ललित केशवान, कवि डॉ. सतीश कालेश्वरी व कवि एवं समाज सेवी श्री दिनेश ध्यानी के प्रकाशित विचार पुस्तक की प्रमाणिकता सिद्ध करते हैं | श्री लोकेश नवानी जी ने लेख में श्री विजय मधुर को “पहाड़ का जीवन को चित्रकार” बताया है इसमें कोई अतिशयोक्ति नही | यह पुस्तक आपको Blue Rose Publication, Amazon, Flipkart, Shopclues पोर्टल पर Sarg Dida Pani Pani के नाम से उपलब्ध हो जायेगी | 

कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. सतेन्द्र प्रयासी जी द्वारा बड़े ही विद्वता पूर्ण  ढंग से किया गया जिसकी तारीफ किये बिना मंत्री जी भी न रह सके | इस अवसर पर गणमान्य व्यक्तियों में बरिष्ठ पत्रकार श्री योगेश भट्ट, प्रसिद्ध समाज सेवी श्री अनिल पन्त, प्रसिद्ध समाज सेवी श्री विनोद रावत, श्री  दीवान मुकेश सिंह, ललित प्रसाद, दीपक द्विवेदी, जितेन्द्र सजवाण, मयंक शाह, शास्त्री चन्द्र प्रकाश थपलियाल, बिरजू नेगी, अजय कुमार सिंह, शूरबीर सिंह नेगी, मुकुंद अग्रवाल, विजय चौधरी, जफर जैदी, देव प्रकाश, संतोष आर्य, देवेन्द्र आर्य, डॉ, ललित भाकुनी आदि मौजूद रहे | साभार : श्री सुनील नेगी,अध्यक्ष उत्तराखंड जर्नलिस्ट फोरम,दिल्ली |

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