दृश्य-एक
शहर के समीप का एक जंगल । मंच पर अधेड़ उम्र का व्यक्ति एक हाथ में राम नाम के शाल ओढ़े उसके भीतर माला जप रहा है । इतने में ही दो बच्चे या बयस्क । बच्चा कहना ही उचित रहेगा क्योकिं वेसे तो दोनों उम्र के ज्यादा हैं लेकिन किन्ही अपरिहार्य कारणों से दोनों का मानसिक विकास समुचित ढंग से नहीं हो पाया ।
मोनी : (बीरू की तरफ उत्सुकता से जाते हुए ) अरे ! बीरू वह देख ..... अंकल जी .....
बीरू : हाँ यार ....
मोनी : लेकिन वो कर क्या रहे हैं इस जंगल में । ( अंकल जी के समीप
जाकर )
बीरू : बैठे हैं ।
मोनी : बैठे हैं या .....सो रहे हैं । (अचरज से) बैठे - बैठे भी भला कोई सो सकता है ?
बीरू : सो जाते हैं । मेरे पापा बता रहे थे कि उनके आफिस से एक
साहब भी बैठे - बैठे सो जाते हैं | खर्राटे मारने लगते हैं खर्र ....खर्र ...।
जब कोई जाता है न उनके पास .... तो पता है पापा ही जगाते हैं |
मोनी : उठो लाल अब आँखे खोलो
पानी लाई हूँ मुंह धो लो ।
बीरू : लेकिन अंकल तो कुछ बड -बड़ा भी रहें हैं ।
मोनी : कुछ लोग सोये हुए में बडबडाते भी हैं । मैं भी बडबडाता था .....
मेरी मम्मी कहती थी ।
मोनी : हाँ यार । यह तो मैंने अब देखा ...... इनका तो हाथ बंधा है ।
बीरू : (अंकल को हिलाते हुए ) अंकल .....अंकल ..... अंकल जी ..
अंकल : ( बड़ी - बड़ी आँखे कर उन्हें क्रूरता से घूरता है ) क्यों ....
भाई .... । क्या प्रॉब्लम है तुम्हारी ।
बीरू : (सहमते हुए) अंकल ....प्रॉब्लम तो ......
आपकों ......आपके हाथ में क्या हुआ ......।
अंकल : हाथ में ..... मेरे हाथ में .......। तुम्हारा दिमाग ....
बीरू : तो आप सो रहे थे ।
मोनी : सोए-सोये में बडबडा भी रहे थे । जब मेरे सर में दर्द था | बुखार होता था | तब मैं भी बडबडाता था
(कुछ सरमाते हुए ) मेरी मम्मी कहती थी । दर्द तो अब भी होता है लेकिन ... अब ....माँ नहीं |
अंकल : मूर्खो ! मैं सो रहा था ...? मैं तो उतनी देर से तुम्हारी बक -
बक सुन रहा था । ध्यान कर रहा था ....मैं ध्यान .... ।
बीरू : अंकल ध्यान ...... क्या होता है यह |
अंकल : मेरे बाप पूजा कर रहा | अब आयी बात समझ में |
बीरू : अच्छा ..... पूजा ..... मेरे पापा भी करते हैं । सरकारी आफिस में
थे | अब रिटायर हो गए हैं | आप भी रिटायर हो गए अंकल ?
अंकल : हाँ ....... हाँ बाबा हाँ ....अब जाओ यंहा से मुझे ध्यानं
करने दो ।
बीरू : आंटी किटी पार्टी में गयी होगी .......?
मोनी : बीरू ..... यह किटी पार्टी क्या होती है .....
बीरू : एक बार मैं भी गया था अपनी मम्मी के साथ .... .....तब मैं
छोटा था ...... वंहा तीन चार आंटियां कह रही थी अंकल
रिटायर हो गए । अब ध्यान करते हैं ।
मोनी : और क्या होता है वहां .....
बीरू : ( आँखे बंद कर सोचते हुए ) आंटियां गाना गाती हैं ...... ढोलक
बजाती हैं ..... और नाचती हैं ...... एक बात बताऊँ
(मोनी के कान के पास शरमाकर ) मेरी मम्मी भी नाच रही थी ।
गाना सुनाऊं जो अंटी गा रही थी ।
मोनी : सुना .....
वहां से किया है टेलीफून
तुम्हारी याद सताती है ....।
जो आंटी गाना गा रही थी ना ...... वो
अंकल हवाई जहाज से जाते थे ..... दूसरे देश ...... उनके घर में विदेशी खिलौने . .... टी . वी . ....( हाथ से इशारा करते हुए ) और भी बड़ी बड़ी चीजें ..... । फिर हमने खूब खाना खाया ।
मोनी : फिर ......
बीरू : फिर ..... फिर .... करके तूने मेरा दिमाग पका दिया ..... फिर
घर आ कर मम्मी पापा की लड़ाई हो गयी ।
मोनी : अबे ! बीरू वह देख ..... तितली ..... कितनी सुन्दर है ......
चल पकड़ते हैं .........
बीरू : चल ...... वो रही ..... पकड़ो ..... पकड़ो ....... ।
मोनी : आखिर पकड़ ही लिया बच्चू । हम से बच कर कहाँ जाओगे ।
(तितली पकड़ते - पकड़ते दोनों अंकल के ऊपर गिर जाते हैं )
अंकल : बदतमीज लडको ..... दिखाई नहीं देता तुम्हे .... ।
मोनी : अंकल हमें तो दिखाई दे रही थी सिर्फ तितली ..... ।
बीरू : देखो ... देखो ..... कितनी प्यारी है ....... । मुझे देख रही है ।
कह रही है मेरे साथ उड़ो ना ... । अरे ! अंकल का हाथ तो ठीक हो
गया .... हो .....हो ...... हो ..... अंकल का हाथ ठीक हो
गया ..... ( और दोनों नाचने लगते हैं )
मोनी : चुप कर ..... छोड़ दी ना ........ कितनी मुश्किल से पकड़ी
थी ...... देखो ना अंकल ......
अंकल : बहुत सह ली तुम्हारी बक-बक । उतनी देर से सोच रहा था अभी जाओगे ... अभी जावोगे ....
ठीक ही कहते हैं | लातों के भूत बातों से नहीं मानते | रुको ! मै तुम्हे अभी सबक सिखाता हूँ ।
बीरू : वेसा ही सबक जैसा स्कूल में मास्टर जी सिखाते थे ।
अंकल : उससे भी बड़ा सबक जो उनसे टयूशन नहीं पढ़ते उनको फेल कर
देते हैं ।
बीरू : अंकल फेल .....हा .....हा .....हा ....फेल .....
(दोनों जोर से एक साथ हंसने लगते हैं ) हम और पास ...हा ...हा ...|
अंकल : तो तुम ऐसे नहीं मानने वाले ..... झोले में हाथ डालता है ..... अब भी चले जाओ
वरना .....| वरना मैं तुम्हे ..सराप दे दूंगा ..... श्राप .....।
बीरू : शराब ! सच में शराब .... (अंकल के पैर पकड़ लेता है ) अंकल
जल्दी दो ना ..... मुझे बहुत अच्छी लगती है ...... जल्दी
दो ..... काफी दिनों से नहीं पी ..... जल्दी ....जल्दी .....
(अंकल पैर छुड़ाने की कोशिश करता है )
अंकल : हठ परे हठ । हरकत करते हो बच्चों की और बात करते हो
शराब की | मै पहले ही समझ गया था तुम दोनों .......
बीरू : ( झोला पकड़ते हुए ) अंकल जल्दी निकालों ना .... अब
नहीं रहा जाता ....( बीरू का चेहरा अजीब सा हो गया )
अंकल : (मोनी की तरफ जाता हुआ ) अरे ! संभालो इसे .....
मोनी : अंकल दरअशल इसने ज्यादा पढ़ा लिखा तो है नहीं | इसके घर वालों ने निकाल दिया इसे घर से
और यह काम करने लगा .. ... कालेज के पास एक होटल में ...
अंकल : मुझे नहीं सुननी तुम्हारी राम कहानी .... मैं सब जानता हूँ ।
बीरू : अंकल .... अंकल ..... मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ ...... जो काम
बोलोगे करूंगा पर सिर्फ एक घूँट ....|
मोनी : उस होटल में खूब शराब चलती थी । बर्तन उठाने वाले इस बिचारे
को बना दिया शराबी ।
बीरू : (मोनी का हाथ पकड़ते हुए ) तू बोल ना अंकल को शराब .... ।
मोनी : एक दिन कालेज के लड़कों का निकल रहा था जलूस । सारा
बाज़ार बंद हो गया । होटल में घुस गए थे लड़के | फोकट की पीने । मालिक तो भाग निकला |
ठुकाई हुई इसकी ।
(हाथ से इशारा करते हुए ) तब से यह थोडा .....|
अंकल : यही क्या मुझे तो तुम दोनों ही ......
मोनी : लेकिन अंकल इसके सामने गलती से भी किसी ने शराब का नाम
ले लिया तो समझो उसकी खैर नहीं ।
अंकल : (डरते डरते ) इसी के क्या .... सभी शराबियों के यही हाल हैं ।
अब हो गयी तुम्हारी राम कहानी पूरी मैं जांऊ .... लेकिन बेटा
बेटा ...( झोला हाथ में लेते हुए ) ....
बीरू : (मोनी को अलग ले जाता है ) अब अंकल शराब देने वाले हैं ।
देख ! मैंने खाली बोतल भी रखी है ।
( पजामे की जेब से एक बोतल निकलता है ) आधा - आधा
करेंगे .... खूब पियेंगे । डान्स करेंगे
(बीरू सर पर खाली बोतल रख गाना गाते हुए दोनों नाचने लगते हैं ।
मौका देख अंकल वहां से गायब हो जाते हैं ) ।
बीरू : (रोते - रोते ...) मोनी देख .....अंकल तो न जाने कहां चले गए .....चलो ढूँढ़ते हैं |
द्दश्य-दो
भाई जी : अरे ! अरे! कहां जा रहे हो ....।
अंकल : किधर फंसा दिया भाई जी आपने .... उन दोनों पागलों ने तो
मुझे भी पागल बना दिया था । मुश्किल से जान बचा कर आया
हूँ । आपको पहले भी कहा था अच्छी सी स्क्रिप्ट लो । और मुझे
बढ़िया सा रोल दो लेकिन आप तो अपनी ही चलाते हो ।
भाई जी : देख भाई पन्द्रह मिनट के नाटक में मैं किसको हीरो बनाता
और किसको बिलेन .... सभी कहते हैं अच्छा सा नाटक
करो ..... लेकिन जब काम करने का नंबर आता है .....
भाई जी : देख भाई ... हरेक इंसान के कुछ
आदर्श होते हैं .... जो मेरे भी हैं । मैं
यदि किसी नाटक के प्रति न्याय नहीं
कर सकता तो अन्याय भी तो नहीं । इसीलिये खुद ही स्क्रिप्ट लिखने का निर्णय लिया । जो तुम जानते ही हो ।
अंकल : पर भाई जी पन्द्रह मिनट तो होने वाले .......
भाई जी : कोई बात नहीं सिर्फ दस मिनट और । आयोजकों से मैं माफी
मांग रहा हूँ । तुम डटे रहो मोर्चे पर । वह देखो आ गए तुम्हारे
अंकल : भाई जी बचा लो .... अब नहीं .....
बीरू : (हाँफते हुए ) अंकल आपने तो ......
मोनी : हाँ अंकल ...... गोली दे दी ।
भाई जी : क्या बात है बेटा ।
बीरू : अंकल ..... पता है .....इन अंकल ने हमें शराब देने की बात
कही .....और गोल हो गए । हम तब से इन्हें ढून्ढ रहे हैं .... ढूँढ़ते
ढूँढ़ते यहां ...( लम्बी सांस लेते हुए ) चलो मिल तो गए .... ।
भाई जी : क्यों भाई .... कब से पीनी शुरू कर दी । हमारे साथ तो बड़े भक्त
बनते फिरते हो .... ।
अंकल : तुम भी यार ..... मै जाता हूँ घर ।
भाई जी : कहां जा रहे हो भाभी जी तो घर में हैं नहीं .... वहीं से आ रहा
हूँ । सुना है किसी किट्टी पार्टी में गयी हैं ।
अंकल : मैंने तो इन्हें श्राप देने की बात कही थी .... तंग करके रख दिया
। आज सुबह - सुबह न जाने किसका मुंह देखा ।
भाई जी : भाभी जी का देखा होगा .... खैर छोडो ...... तो यह बात
है .....( फिर बीरू और मोनी को अपने पास बुलाते हुए )
बीरू : क्या बात है ? मैंने अंकल को बोल दिया था ...... जो भी काम
बोलोगे करूंगा ।
भाई जी : बेटा ! दरशल इन्होने पीने वाली शराब
की बात नहीं कही थी ।
बीरू : तो कोई दूसरी भी होती है ...।
मोनी : चुप ..... होती होगी कोई ..... लगाने वाली ।
बीरू : तो .... ठीक है वही दे दो ।
भाई जी : देखो बेटा .... अच्छे बच्चे .....जिद्द नहीं करते । भगवान्
का नाम लो और अपने - घर जाओ । अँधेरा होने वाला है ।
मोनी : मुझे नहीं लेना भगवान् का नाम । वह गन्दा है । मेरी मम्मी
को अपने साथ ले गया । कितनी अच्छी थी मेरी मम्मी ।
अब आप ही बताओ मेरा सर दुखेगा तो कौन दबाएगा ।
( मुंह एक तरफ कर हथेलियों से ढक देता है । भाई जी उसे अपने
सीने से लगा देते हैं )
भाई जी : मैं दबा दूंगा बेटा ..... अच्छे बच्चे ....जाओ अभी ....तुम्हारे
पापा परेशान ....
मोनी : वो भी गंदे ...... मारते हैं मुझे ..... कहते हैं ..... न जाने किस
घड़ी में जन्मा है यह पागल ..... अपनी माँ के पास भी नहीं
जाता ...... मुझे मम्मी के पास जाना है ...( हूं हूं कर सुबकने
लगता है )
भाई जी : अच्छे बच्चे रोते नहीं .... (बीरू का हाथ पकड़ते हुए ) जाओ
बेटा इसे भी अपने साथ ले जाओ (बीरू हाथ झटक देता है )
बीरू : नहीं .... हमें नहीं जाना घर ...... पहले हमें शराब दो ...
(वहीं जमीन पर लोट-पोट होने लगता है )
बजाने वाली बात कर रहे हो ...यह नहीं
मानने वाले । मैं ही कुछ करता हूँ ।
( कुछ देर मंच पर सन्नाटा छा जाता
है जिसकी भरपाई करते हैं बायिलिन
के सुर । अंकल सिर खुजलाते हुए
एक कोने में जाकर सबकी नज़रों से बचकर अपना झोला छुपा देते हैं )
अंकल : अरे ! बेटा एक गलती हो गयी ।
(बीरू एकदम उठता है )
बीरू : क्या .......?
अंकल : मेरा झोला तो वहीं छूट गया .... पेड़ के नीचे ...... जंगल
में .... ।
( बीरू सर पकड़ लेता है ...फिर मोनी की तरफ देखते हुए )
बीरू : अब क्या करें ....
मोनी : क्या .... ?
बीरू : अंकल .... दूसरी ही दे दो ....... लगाने वाली .....।
अंकल : वह भी नहीं .... एक ही थी ....वह भी वहीं रह गयी झोले
में .....।
बीरू : अंकल आप झूठ तो नहीं ....
अंकल : नहीं ..... नहीं बेटा .... तुम जैसे प्यारे बच्चों के साथ और मैं
झूठ ...(कहते हुए दूसरी तरफ अजीव सा मुंह बनाता है ।
बीरू कुछ देर इधर उधर देखने के बाद )
बीरू : कसम खाओ |
अंकल : सच्ची | (दोनों के सर पर हाथ रखकर )
तुम दोनों की कसम |
बीरू : चल मोनी ...
मोनी : नहीं यार ..... मुझे डर लगता है ...।
बीरू : रेस लगाते हैं .....देखते हैं कौन फर्स्ट आता है । (दोनों दौड़ने
की मुद्रा बनाते हैं) ऑन .....यौर ...... मारक .......गेट ....
सेट ... गो .... ( भाई जी और अंकल पहले मोनी और बीरू
को देखते हैं । फिर एक दूसरे की ओर । अंकल के
चेहरे पर सफलता के भाव जबकि भाई जी के चेहरे पर मायूशी
नजर आ आती है )
दृश्य-तीन
मोनी : बीरू ..... बीरू ...... अब नहीं दौड़ा जाता ...... मान लिया
तू फर्स्ट ......( कहता कहता वहीं बैठ गया । बीरू जो उससे कुछ
आगे था वापस आता है )
बीरू : हिम्मत रख .....बस हम पंहुच गए ।
मोनी : नहीं .... मुझे डर ......
बीरू : देख अभी ..... दो ....दो ....पैग पियेंगे ना ...... तो सब डर वर
भाग जायेगा । ( डरावनी आवाजें )
मोनी : तू सुन रहा है ना ....... नहीं मैं नहीं ...... अच्छा मै यहीं
पर ...... तू जा ..... । ( फिर डरावनी आवाजें )
मोनी : भूत .....|
बीरू : भूत ..... वूत .... कुछ नहीं ..... एसा करते हैं .... ....(नीचे से
दो पत्थर उठाता है एक अपने पास और दूसरा मोनी को देता है )
अब चल .... इससे भूत नहीं आता |
मोनी : ठीक है .... लेकिन दोनों हाथ पकड कर चलेंगे ।
(दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं ....पुनः आवाज आती है
मोनी, बीरू को जकड़ लेता है )
बीरू : (फुसफुसाता हुआ) डरना मत ..... आवाज भी मत करना ......
चुपचाप चलता रह ।
मोनी : (खुशी से )पंहुच गए ...... यही पर तो हम दोनों ने यह दो झोपडियां बनायी थी |
यह तेरी और यह रही मेरी | (बड़े से पत्थर की ओर इशारा करते हुए ) यह रहा
तेरा पत्थर ....
बीरू : पत्थर नहीं ..... यह चोर है चोर .....और यह सारे इसके सिपाही
मोनी : हाँ .....
बीरू : बस इसके बाद ही तो .....अंकल ......वहां ......
मोनी : हां याद आया ..... इस तरफ ......
बीरू : हाँ .........
मोनी : वो रहा वह पेड़ .... जिसके नीचे अंकल ......
बीरू : जल्दी ढून्ढ ..... जल्दी ......उस पत्थर के पीछे ( दोनों इधर
उधर ढूँढ़ते हैं )
बीरू : मिली ......
मोनी : नहीं ...... इधर तो नहीं ।
बीरू : उधर देख .....
मोनी : नहीं मिली ..... तुझे मिली ......
बीरू : नहीं .....
मोनी : मिली .....
बीरू : नहीं ....
दोनों : लगता है .........हाँ ...... ......अंकल ने हमें .........
( तभी एक मिश्रित डरावनी आवाज आती है । मोनी और बीरू एक दूसरे को जकड़ते हुए जोर से चिल्लाते हैं और उसी पत्थर के ऊपर ढेर हो जाते हैं जिस पर बैठ अंकल ध्यान कर रहे थे पार्श्व में संगीत के साथ गीत उभरता है।
कम्पुटरी बातें
लम्बे दिन
छोटी रातें ।
नहीं है समय
बेटा नहीं है समय
तुम संग
बतियाने
लोरी ...
सुनाने का ।
कम्प्यूटर युग
कम्प्यूटरी बातें
लम्बे दिन
छोटी रातें ।
सौंप दिया है
अब तुमको
टी . वी . रिमोट
कंप्यूटर माउस ।
कम्प्यूटर युग
कम्प्यूटरी बातें
लम्बे दिन
छोटी रातें ।
पत्थर के ऊपर दोनों पर लाल रंग की रोशनी मंद होते-होते बंद हो जाती है और मंच पर अँधेरा पसर जाता है ।
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
चूंकि यह नाटक एक विशेष परिस्थिति में लिखा गया । शर्त यह कि की सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान एक छोटी सी स्क्रिप्ट का मंचन वो भी बगैर किसी ताम झाम के । जिम्मेदारी थी खुद मेरे ऊपर भले ही इससे पूर्व कई नाटकों में अभिनय, प्रबंधन तथा निर्देशन कर चुका था नाटक के रिह्ल्शल में सांस्कृतिक कार्यक्रम की अपेक्षा ज्यादा समय देना पड़ता है । कुल मिलाकर पांच लोग रह गए । समय भी बहुत कम । खैर दो दिन में यह नाटक लिखा गया और दो हफ्ते में एक मंचन तथा दो महीने बाद दूसरा मंचन । मानसिक रूप से कमजोर लोगों के हालतों के लिए परिवार और समाज का क्या रैवेया रहता है इस बात को दर्शकों तक पंहुचाने का प्रयास इस लघु नाटक में किया है । आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर इस रचना को अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूँ इस लघु नाटक के दो प्रदर्शन हो चुके हैं इसलिए उन पात्रों का तथा आयोजकों का आभार व्यक्त करना भी अपना कर्तव्य समझता हूँ जिनकी वजह से यह लिखा गया और मंचित हो पाया । जिनमे
मोनी/रूप सज्जा : अनिल नौटियाल
मोनी/रूप सज्जा : अनिल नौटियाल
बीरू /मंच सज्जा : सुनील कुमार
अंकल/वस्त्र : अजीत सिन्हा
प्रबंधन/रूप सज्जा : श्यामली साहा
भाईजी/निर्देशक/लेखक: विजय मधुर (स्वयं)
संगीत : अजय चक्रबर्ती , रंजीत शर्मा ,घनश्याम
प्रकाश ब्यवस्था : टीका राम
जियोपिक परिवार तथा
कम्प्यूटर सोसाइटी ऑफ़ इंडिया , देहरादून ।
कम्प्यूटर सोसाइटी ऑफ़ इंडिया , देहरादून ।
@2012 विजय मधुर
-------------------------------------------------------------------------------------------------- रंगप्रेमी साथियो यदि आप इस लघु नाटक का मंचन कर चुके हैं या मंचन करना चाहते हैं तो मुझे प्रसन्नता होगी । मुझे इसमें कोई आपति नहीं | एक अनुरोध अवश्य है मंचन से पूर्व या पश्चात अनुभव एवं अपनी प्रतिक्रिया अवश्य साझा करें । एक लेखक के लिए इससे बड़ा सम्मान कुछ नहीं |
Email: garhchetna@gmail.com
-------------------------------------------------------------------------------------------------- रंगप्रेमी साथियो यदि आप इस लघु नाटक का मंचन कर चुके हैं या मंचन करना चाहते हैं तो मुझे प्रसन्नता होगी । मुझे इसमें कोई आपति नहीं | एक अनुरोध अवश्य है मंचन से पूर्व या पश्चात अनुभव एवं अपनी प्रतिक्रिया अवश्य साझा करें । एक लेखक के लिए इससे बड़ा सम्मान कुछ नहीं |
Email: garhchetna@gmail.com
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
नमस्कार सर, मैं राँची का रहने वाला हूँ मैंने आपके नाटक से कुछ अंश लेकर उसको हास्य बनाने हेतु कुछ परिवर्तन कर अपने कॉलेज में उसका मंचन किया था। आपने बहुत ही सुंदर लिखा है, और दर्शकों ने भी इसको खूब पसंद किया। मैं आपका तहे दिल से आभारी हूँ। इसी तरह से लिखते रहिये मुझे आपके अगले हास्य कथा का इंतजार रहेगा। धन्यवाद����
जवाब देंहटाएंआपका आभार राहुल जी | एक रचनाकार के इससे ज्यादा ख़ुशी की क्या बात हो सकती है | यदि हो सके तो मंचित प्रस्तुति की कुछ फोटोग्राफ्स प्रेषित कर दें ताकि उनको प्रकाशित कर सकूं | धन्यवाद |
हटाएंBahut sandar
हटाएंBahut Accha Natak Hai Sir Ji. Script Bahut Achhi Hai.
जवाब देंहटाएं