शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

कविता : देवभूमि

बसता है 
जंहा मन मेरा 
चिड़ियों की चहचहाट 
बताती है 
हो गया सवेरा ... |

सूरज की पहली किरण 
करती है नमन 
चांदी की तरह 
चमचमाती 
खिलखिलाती 
जल धारा की 
यात्रा का 
होता है आरम्भ | 

देवी देवता 
करते हैं अवलोकन 
और ...
उनके चरणों में 
समर्पित पुष्प 
सुगन्धित कर रहें हैं 
विश्व का वातावरण |

नमन करता हूँ 
मन तुझको 
तू अब भी
कम से कम 
विचरता है वंहा 
जंहा हैं वे लोग 
जो जिन्दा रखे हैं 
अपनी संस्कृति.... 
धरोहर ....
परम्परा ...को |

@२०१५ विजय मधुर