शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

स्मरण : पिता स्व. झब्बन लाल ‘विद्यावाचस्पति’

    पिता स्व. झब्बन लाल ‘विद्यावाचस्पति’ की पुण्य तिथि १४ अगस्त | शायद ही कोई दिन एसा होगा जब आपका  स्मरण नहीं होता | परिवार रिश्तेदार ही नहीं समस्त चिर परिचित एवं प्रबुद्ध जन आपको  याद करते रहते हैं | अभी एक सप्ताह पूर्व प्रसिद्ध पत्रकार एवं साहित्यकार श्री चारु चन्द्र चंदोला जी से उन्ही के निवास पर भेंट हुई | जैसे ही उन्हें स्मृति ग्रन्थ की प्रति भेंट की तो पुस्तक के आवरण को देखते ही मुझसे नाराज हुए | गलती मेरी थी | पुस्तक प्रकाशन से पूर्व उनसे संपर्क नही हो पाया | पुस्तक के कुछ पन्ने टटोलने के बाद पौड़ी में आपके संग व्यतीत प्रसंग सुनाते चले गए जैसे स्कूलों में हिंदी भाषा में पाठ्यक्रम को सुदृढ़ बनाना |  तत्कालीन राजनेताओं से निडरता पूर्वक ठोस बातचीत | तत्कालीन कई राजनेताओं पर उनकी सीधी टिप्पणी | ऐसे ही कई प्रसंग बार – बार दोहराए जाते हैं | आपका आशीर्वाद सदैव बना रहे इसी अभिलाषा के साथ सादर स्मरण एवं शत-शत नमन |

14-08-2013
मौसम की तरह
जीवन में
सुख दुःख
आते जाते हैं
कौन 
हंसाता 
चला जाय
कौन रुलाता
आँखे नम
मन के 
भावों की
थाह नहीं ..
चलना है
बढ़ना है
मंजिल की ओर
अंधियारे के बादल
छंटते हैं
होती है भोर |
 @२०१५ विजय मधुर 

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

कविता : जिंदगी

एक ख़ामोशी के पश्चात
दौड़ने लगी हैं जिंदगी
फिर से सड़कों पर
भीड़ पहले से ज्यादा |
हादसे का बोझ
सिर पर  लादकर
वह जिंदगियां भी  
सरकने लगी हैं ..
जिनकी  छत
ढही है  अभी – अभी |
बड़ा शहर
बड़ी बातें
चलती का नाम गाड़ी
सब्रदार है यंहा
नया ......या
अनाड़ी |
संतों की
आलीशान
कुटिया यंहा
देते उपदेश
पढ़ाते पाठ
धैर्य – धारण में
सोलह दूनी आठ |
जीना मरना
कहते हैं
उसके हाथ में
चुरा ली है
शक्ति उससे भी
शैतानों  ने ....
बातों ही बात में |

@२०१५ विजय मधुर 

शनिवार, 1 अगस्त 2015

कविता : गहरी नींद


सोते सोते 
सो गए 
कभी न जागने वाले 
रोते रोते 
जम गए आंसू 

जागने वालों के
नाम क्या दें इसे
कुदरत का कहर
या ....
उनकी ....
गहरी नींद
जो खुलती है
हादसों के बाद |

@२०१५ विजय मधुर