पिता
स्व. झब्बन लाल ‘विद्यावाचस्पति’ की पुण्य तिथि १४ अगस्त | शायद ही कोई दिन एसा
होगा जब आपका स्मरण नहीं होता | परिवार
रिश्तेदार ही नहीं समस्त चिर परिचित एवं प्रबुद्ध जन आपको याद करते रहते हैं | अभी एक सप्ताह पूर्व
प्रसिद्ध पत्रकार एवं साहित्यकार श्री चारु चन्द्र चंदोला जी से उन्ही के निवास पर
भेंट हुई | जैसे ही उन्हें स्मृति ग्रन्थ की प्रति भेंट की तो पुस्तक के आवरण को
देखते ही मुझसे नाराज हुए | गलती मेरी थी | पुस्तक प्रकाशन से पूर्व उनसे संपर्क
नही हो पाया | पुस्तक के कुछ पन्ने टटोलने के बाद पौड़ी में आपके संग व्यतीत प्रसंग
सुनाते चले गए जैसे स्कूलों में हिंदी भाषा में पाठ्यक्रम को सुदृढ़ बनाना | तत्कालीन राजनेताओं से निडरता पूर्वक
ठोस बातचीत | तत्कालीन कई राजनेताओं पर उनकी सीधी टिप्पणी | ऐसे ही कई प्रसंग बार – बार दोहराए जाते हैं | आपका आशीर्वाद सदैव
बना रहे इसी अभिलाषा के साथ सादर स्मरण एवं शत-शत नमन |
जीवन में
सुख दुःख
आते जाते हैं
कौन
हंसाता
चला जाय
कौन रुलाता
आँखे नम
मन के
मन के
भावों की
थाह नहीं ..
चलना है
बढ़ना है
मंजिल की ओर
अंधियारे के बादल
छंटते हैं
होती है भोर |