उमड़ घुमड़ बदरा आये
तन ... मन ....
वन .... उपवन हर्षाये
खींचे .....
पतंग की डोर
थिरक थिरक नाचे मोर |
तोता - मैना
राजा रानी
सभी कहानी
हो गयी पुरानी
अब तो नदियों ने भी
हठ करने की ठानी |
बनाओ बाँध
बढ़ाओ बिजली
बहना है स्वभाव
रोक सको तो रोको
पर पहले ......
उसको टोको
जो सुरंगे बनाने
कर रहा है तैनात
चूहों को ................ |
कंही यह न हो
तुम छोटी सी खुशी में
स्नान - ध्यान कर
ढोल - नगाड़े बजाकर
चैन की नींद सो जाओ
और .......
सुबह होने पर
तट पर बैठ टसुवे बहाओ |
आखिर ........!
खींचे कौन पतंग की डोर
थिरक थिरक नाचे मोर |
तन ... मन ....
वन .... उपवन हर्षाये
खींचे .....
पतंग की डोर
थिरक थिरक नाचे मोर |
तोता - मैना
राजा रानी
सभी कहानी
हो गयी पुरानी
अब तो नदियों ने भी
हठ करने की ठानी |
बनाओ बाँध
बढ़ाओ बिजली
बहना है स्वभाव
रोक सको तो रोको
पर पहले ......
उसको टोको
जो सुरंगे बनाने
कर रहा है तैनात
चूहों को ................ |
कंही यह न हो
तुम छोटी सी खुशी में
स्नान - ध्यान कर
ढोल - नगाड़े बजाकर
चैन की नींद सो जाओ
और .......
सुबह होने पर
तट पर बैठ टसुवे बहाओ |
आखिर ........!
खींचे कौन पतंग की डोर
थिरक थिरक नाचे मोर |
- Copyright © 2010 विजय मधुर
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