शनिवार, 11 सितंबर 2010

पतंग की डोर

उमड़ घुमड़ बदरा आये 
तन ... मन ....
वन  .... उपवन हर्षाये 
खींचे  .....
पतंग की डोर 
थिरक थिरक नाचे मोर |


तोता - मैना
राजा रानी 
सभी कहानी 
हो गयी पुरानी 
अब तो नदियों ने भी 
हठ करने की ठानी  |

बनाओ बाँध 
बढ़ाओ बिजली 
बहना है स्वभाव 
रोक सको तो रोको 
पर पहले ......
उसको टोको 
जो सुरंगे बनाने 
कर रहा है तैनात
चूहों को ................ | 

कंही  यह न हो
तुम छोटी सी खुशी में 
स्नान - ध्यान कर
ढोल - नगाड़े बजाकर
चैन की नींद सो जाओ
और .......
सुबह होने पर 
तट पर बैठ टसुवे बहाओ |


आखिर ........!
खींचे कौन पतंग की डोर
थिरक थिरक नाचे मोर |
  • Copyright © 2010 विजय मधुर





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