सोमवार, 6 सितंबर 2010

टिहरी झील

समुद तट
बनती बिगडती  लहरें
कूदती फांदती मछलियाँ
दूर एक नांव
अब .......
नजर नहीं आता
मेरा गाँव...... |

वही गाँव
जिसके खेतों से
चुराते थे
मटर-मसूर
ठंक्रों  से कखड़ियां
पेड़ों से
चकोतरे..... अखरोट..
आडू.....आलूबुखारे..
लाल-लाल नारंगियाँ |

दादी......माँ ....
काकी .... बोडी ...की
मोटी-मोटी गालियां
कभी-कभार  मार भी... |

घनघोर कुयेड़ी
रिमझिम बारिश
बन्जरौ में डंगर चुगाना
एक बहाना
क्योंकि इन दिनों
नहीं खेल सकते
कब्बडी... गुली डंडा...
खेल लुका छुपी |

नहीं जा सकते
नदी में ...
मारने डुबकी
पकड़ने गड्याल
जिन्हें अब
बड़ी मछलियाँ
निगल गयी. |

मकान - दुकान
खेत .. खलियान
पेड़..पौधे..
धारा.... पंदेरा..
मंदिर..श्मशान
के ऊपर अब
पर्यटकों  से भरी
नावें तैरेंगी.... |

सुनसान तट पर
जगमगायेंगे
आलीशान होटल
थढ़िया - चौंफला
झुमैलो की पैरोडी  पर
थिरकेंगी बालाएं.... |

चारों तरफ रौनक ही रौनक
मिल सकती है नौकरी
चला सकता हूँ नाव
क्या हुआ अगर
नहीं आता नजर
मेरा गाँव........... |

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आभार