रास्ता
मैंने ……
उस रास्ते को चुना
जिस पर
जाने से लोग
कतराते थे ।
जूझता रहा
मुश्किलों से
बनाता रहा रास्ता
और लोग
आगे निकल गये ।
उनको मिली
वाह … वाह …
और मैं
काँटों से
छलनी हुए
बदन को
तसल्ली के
मरहम से
सहलाकर
फिर से बढ़ गया
नया रास्ता बनाने ।
कविता
मैं कविता में नहीं
कविता आकर
बसती है मुझमे
रचती है स्वांग
गीतों में भरती है
उन्मुक्त उल्लास
उद्वेलित मन को
बार - बार कराती है
यह आभाष
कि मैं …
तुम में बसती हूँ
तुम्हारे मन के
भावों को
पढ़ती हूँ ।
खामोशी …
कोई हल नहीं
कंही …
नियति ने
ढाया है जुर्म
तो कंही
उन्माद ने
इंसान …
हो रहे हैं दफन
और … मुर्दे …
चुरा रहे हैं कफ़न ।
@२०१३ विजय मधुर
धन्यवाद कविता जी |
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