मंगलवार, 27 नवंबर 2012

कहानी - चाँद की सैर

       गाँव से कुछ हठकर लाल मीट्टी से पुता दो कमरों का  घर । आँगन से सटा बड़ा घना पेड़ । ऊपर वाली घनी टहनी पर  चिड़िया के घोसले से छोटे - छोटे चिड़िया के बच्चों की चूं - चूं काफी देर से जंगू मंगू सुन रहे थे । अँधेरा होने के कारण उन्हें दिखाई कुछ नहीं दे रहा था । लेकिन इंतना तो वह समझ ही गए थे कि इस बक्त उनकी माँ उनके पास लौटी है इसलिए अपनी खुशी का इज़हार कर रहे हैं । क्योंकि दिन के समय उनकी चूं - चूं केवल उसी समय होती जब उनकी माँ उन्हें कुछ खिलाती । माँ के जाते ही वे चुप हो जाते । अभी दोनों पेड़ की तरफ देख मन गढ़ंत कहानिया बुन ही रहे थे कि एक टूटते तारे ने दोनों का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया ।
- वो देख मंगू एक तारा टूटा ........
जंगू ने कौतूहल वस कहा ....
- हां वो ....रहा .....वो ........ जरूर जमनु के घर के पास गिरा होगा ....।
मंगू कुछ दूर आँगन में दौड़ता हुआ ठिठका । उसकी आगे भी दौड़ने की इच्छा हुई लेकिन अँधेरा होने के कारण वंही ठहर गया ।
- सुबह जा कर ढूँढ़ते हैं .......। मंगू पता है कल मुझे एक सपना आया था ।
- क्या
- मैं चाँद पर बैठा आसमान की सैर कर रहा हूँ । देख ....सारे तारे मुझे बिलकुल ऐसे ही नज़र आ रहे थे ।
- अच्छा लेकिन अभी तो चाँद तो आया ही नहीं ।
- लेकिन मेरे सपने में था । चंदा मामा मुझे घुमाने के साथ - साथ सारे तारों से भी मिलवा रहे थे । तारे भी न जाने कितने सारे थे छोटे ..... बढे। ...... अलग - अलग आकार के ।
- फिर आगे .....
- आगे क्या माँ ने मुझे जगा दिया ..... उठ जंगू स्कूल नहीं जाना ।
कहते - कहते जंगू कुछ उदास सा हो गया । तभी मंगू को एक बात सूझी क्यों न दोनों आज तारे गिने करीब एक घंटे से दोनों अपनी छोटी - छोटी उँगलियों में सौ तक तारे गिनते और मिट्टी पुती घर की दीवार पर कोयले से एक - एक लकीर खींच देते । माँ घर के जरूरी काम निपटाने के बाद देहरी पर छोटी सी चिमनी की रोशनी में साग बिराने के साथ - साथ दोनों भाइयों के बचपने को देख मन ही मन मुस्कराने लगी । साग को बिराने , धोने और चूल्हे पर चढाने के बाद वह उनके पास आयी ।
- क्या कर रहे हो तुम दोनों ....
दोनो ने एक साथ माँ की ओर मुढ़कर तर्जनी ओंठो पर लगा दी । माँ बात समझ गयी । जैसे ही दोनों ने फिर से एक - एक लकीर दीवार पर खींची । माँ ने फिर अपनी बात दोहराई ..
- कर क्या रहे हो आखिर तुम दोनों ।
दोनों एक साथ बोले
- हम दोनों तारे गिन रहे हैं ।
माँ मन ही मन मुस्कराई
- तो गिन लिए ।
- नहीं अभी नहीं .।
अब माँ ने दोनों को डपट कर
- तो रात भर तारे ही गिनते रहोगे ? ठण्ड हो गयी । पढ़ोगे - लिखोगे नहीं ?
अब दोनों समझ गए ।
बस अभी आये ....
और दोनों ने कमरे में आकर लालटेन की रोशनी में अपनी किताबे निकाल दी । रसोई से माँ की आवाज आती है ....
- जोर - जोर से पढ़ो मुझ तक आवाज़ आनी चाहिए ।
जंगू ने पढने की शुरुआत एक कविता से की ....
- हठ कर बैठा चाँद एक दिन माता से यह बोला शिलवा दो माँ मुझे उन का मोटा एक झिंगोला ......
जंगू की कविता खत्म हुई तो मंगू के पहाड़े आरम्भ हो गए ।
- चार इकम चार .... चार दूनी आठ ..... चार तिन्या बारह .....चार चकु सोलह ......चार .......
जैसे ही मंगू के पहाड़े ख़त्म हुए । जंगू ने मंगू से कहा ......
- तूने कितने तारे गिने ....
- मैंने पच्चीस सौ .....
- और तूने ।
मंगू ने बढ़े गर्व से कहा । वेसे तो मंगू जंगू से उम्र में एक साल छोटा था । कक्षा का अंतर भी दोनों में एक कक्षा का ही था । लेकिन छोटे यानी मंगू को स्कूल से लेकर घर गांव तक सभी होशियार समझते थे । इसलिए मंगू को लगा कि आज भी अवश्य उसने अपने बढ़े भाई से ज्यादा ही तारे गिने होंगे । जंगू अभी भी अपनी कापी में पेन्सिल से कुछ लिख रहा था । मंगू दुबारा बोला ...
- बताता क्यों नहीं ।
अंगूठा और जीभ फटा - फट दांये - बांये घुमाता हुआ ....
- जरूर मुझ से कम ही गिने होंगे .... इसीलिये नहीं बता रहा .... हार गया ...हार गया ....
- एसा नहीं ..... तेरे से जादा ही गिने हैं .....। तू ज्यादा ही समझता है अपने आप को .... दूंगा अभी एक घुमा के .....
अब मंगू कुछ ढीला पढ़ गया लेकिन रिजल्ट जानने की इच्छा उसकी गयी नहीं ।
- कितने गिने ....
- बत्तीस सौ .....
- बत्तीस सौ ..... ! हो ही नहीं सकता ................
- तूझे गिनती कितने तक आती है ......
- क्यों ..... तेरे से बढ़ा हूँ ..... तेरे से ज्यादा आती हैं ..... समझे .... बढ़ा बन रहा था । हार गया .... हार गया .... अब बता कौन हारा ....... हूँ .....हूँ ......... ।
जंगू मुंह पिचकाकर कर मंगू को चिढाने लगा ..। मंगू उसकी तरफ मारने दौड़ा लेकिन उससे दो कदम पहले ही ठिठक कर रह गया । वो जानता था कि यदि उसने एक मुक्का मारा तो वह दो मारेगा । आज तक लडाई में कभी उससे जीत नहीं पाया ।
तिलमिलाता हुआ पैर पटक अपना आखरी हत्थियार अपनाने लगा । क्योकि जब भी वह जंगू से जीत नहीं पाता माँ के सामने जाकर रोने लगता । उसने मुझे मारा । माँ जंगू के दो चार थप्पड़ जड़ देती । और कहती 'जानता नहीं तेरे से छोटा है .... । तब भी मारता है भाई को '। और मंगू खुश जबकि माँ उसकी करतूत नहीं देखती । पहले छेड़ भी तो वही लेता । आज भी जंगू को लगा कि अब जरूर पड़ेगी मार । लेकिन आज एसा नहीं हुआ माँ ने दोनों को देख लिया था । और आते जाते दोनों की बाते भी सुन ली थी । जैसे ही मंगू माँ के पास रोते - रोते गया ..
- क्या हो गया बेटा ! भाई ने मारा ......
- नहीं ....
- डांटा नहीं ......
- फिर क्या हुआ .....
- उसने मेरे साथ गड़बड़ की ।
- क्या गड़बड़ .....
- तारे गिनने में .....।
- कैसे .... तूने उसे गड़बड़ करते देखा .....
-नहीं ......। पहला दरवाजे के ओट में खड़ा सब सुन रहा था ।
- फिर तुझे कैसे पता कि उसने गड़बड़ की ....
- एसे ही .....
- कैसे ऐसे ही ....
- मै उससे होशियार जो हूँ ...... सभी कहते हैं ...... ।
- अच्छा तो यह बात है ..... चलो पहले दोनों भाई रोटी खा लो ....बाद में पता करते हैं .... जा भाई को बुला ला ।
यह बात सुनते ही जंगू दरवाजे की ओट से कमरे में वापस चला गया और किताब मुह पर लगा कर अनजान सा बन गया । मंगू ने उसकी किताब झटक कर खाट पर रख दी ।
- चल माँ बुला रही है ..... ... (थोड़ा मुंह बनाकर ) रोटी खाने ....
माँ ने दोनों भाइयों को रोटी और साग परोश दिया । दोनों ने पेट भर खाना खाया और उठने लगे । माँ ने पहले से कहा ......
- क्यों तुमने भाई के साथ .....
- नहीं माँ कसम से ..... आप ही गिन लो । और वह दूसरे कमरे से लालटेन उठा लाया । और माँ और मंगू को अपने साथ बाहर दीवार के पास ले आया । माँ एक - एक कर दोनों के द्वारा खींची लकीरों पर उंगली रखती रही और दोनों एक दूसरे की लकीरों की गिनती करने लगे । दोनों द्वारा लिखी संख्या सही पायी गयी । अब माँ ने मंगू से कहा ..
- देख लिया अब तूने ..... भाई ने कोई गड़बड़ नहीं की । चलो अब दोनों ..... ।
दोनों कमरे में और माँ रसोई में चली गयी । लेकिन न जाने क्यों मंगू को जंगू की बात पर बिश्वास न हो रहा था । उसने कई युक्तियाँ सोची कि जंगू से गड़बड़ जानने की । लेकिन कुछ भी हाथ न लगा । अब माँ भी रसोई से रोटी खा कर आ चुकी थी । दोनों में फैसला किया कि बाकी तारे कल रात को गिनेगें । अभी दोनों एक दुसरे के हाथ में हाथ रख कसम ही रहे थे कि कोई गड़बड़ नहीं करेगा तभी माँ आ गयी और बोली
- क्या कसम खा रहे हो तुम दोनों .....
- कुछ नहीं ....ऐसे ही ...
दोनों ने एक स्वर में कहा ।
- नहीं ऐसे तो नहीं । बताओ ..... बताओगे या नहीं ......
- नहीं ...हम तो ......
-तो फिर ठीक है आज मै तुम्हारे साथ नहीं सोऊगीं ।
दूसरी चारपाई की तरफ जाते - जाते माँ ने कहा ।
- नहीं .... नहीं .... हम बताते हैं ..... पहले तुम इधर आओ ..।
दोनों ने इधर - उधर खिसककर बीच में माँ के लिए जगह बना ली । दोनों के बीच लेटते - लेटते माँ ने कहा
- अब बताओ ।
- हम कह रहे थे ..... कि ...हम बाकी तारे कल गिनेंगे .... और कोई भी गड़बड़ नहीं करेगा ।
मंगू कहते - कहते माँ से लिपट गया ।
- ऐसे में तो तुम्हे पूरी रात लग जायेगी तारे गिनने में ....
- वो तो है ।
जंगू ने अपना सिर खुजलाते हुए कहा ।
- क्यों मंगू रात भर जागे रह सकते हो ....
- हां
ऊंघते - ऊंघते उसने कहा ।
माँ के साथ लेटते ही उसे नींद ने घेर लिया । उसे ही क्या जब तक दोनों भाई माँ से नहीं लिपट जाते तक दोनों को नींद ही नहीं आती थी । कितनी ही बार दोनों की आदत सुधारने की वजह से माँ दूसरी खाट पर लेट जाती । तो माँ ने दोनों के सिर मलासते - मलासते कहा
- कितने बेबकूफ हो तुम दोनों ! आज तक अपने - परायों को तो गिन नहीं पाए ......। कौन किस वेश में किस उदेश्य से घर में घुसता है यह भी समझ नहीं पाए ...... । और गिनने चले आसमान में सितारे ... ।
माँ की बात सुनने से पहले ही जंगू मंगू सपने में चाँद सितारों के बीच चहलकदमी करने लगे । जन्हा से उनको न तो अपनी माँ दिखाई दे रही थी न ही उसका दुःख - दर्द ।

@2012 विजय मधुर

 

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