रविवार, 11 नवंबर 2012

ऑटो रिक्शा वालों की बैठक

            शहर के प्रसिद्ध  होटल के  सुन्दर सुसज्जित हाल में पहली बार शहर के ऑटो रिक्शा वालों  की बार्षिक बैठक हुई । बैठक का मुख्य मुद्दा था बढ़ती मंहगाई । दिन प्रतिदिन बढ़ती पेट्रोल , डीजल, घरेलू सामान , सब्जियों आदि की कीमतें । ऐसे में उनका सोचना था कि हम पीछे क्यों रहें । सरकार सरकारी रेट निर्धारित तो कर देती है । लेकिन बिना चक्का जाम या हड़ताल के दुबारा रेट नहीं बढाती । सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ जाता है । स्कूलों की फीस बढ़ जाती है । दुकानदार को हर चीज़ के रेट बढ़ाने का अधिकार है  । आखिर हमें यह अधिकार क्यों नहीं । जबकि इन लोगों से अतिरिक्त हमें कुछ अप्रत्यक्ष कर अलग से भी चुकाने पढ़ते हैं । देखते देखते होटल के बाहर ऑटो रिक्शा की भीड़ लग गयी । अपने होटल के चारों तरफ ऑटो रिक्शा का जमवाडा देख होटल मालिक हैरान परेशान था । भले ही शुरू - शुरू में उन ऑटो वालों की कृपा से उसका यह कारोबार चल निकला हो । लेकिन आज पहले वाली बात नहीं अब होटल में रंग बिरंगी , किस्म - किस्म की टैक्सीयों के साथ - साथ ब्यक्तिगत लम्बी गाड़ियों में अलग - अलग रेट के यात्री आने लगे । होटल की कमाई में चार चाँद लगने लगे । फिर भी मालिक की दरियादिली देखो वह उन्हें भूले नहीं । बढ़ती मंगाई की वजह से ऑटो वालों में आक्रोश इस कदर था कि  कुछ तो ऑटो के आगे बॉक्स को खोल - खोल कर जेब में छोटी - छोटी शीशियाँ ला रहे थे । तो कुछ ऑटो में ही बैठ कर गम कम कर रहे थे । चारों तरफ खुसर - पुसर का माहौल चरम पर था । तभी आगे बने मंच से लाऊड स्पीकर की आवाज आयी ।
- सुनो ......सुनो ........ सभी लोग ध्यान से सुनो । प्रधान जी माइक बार - बार खटखटाते बोले ।
खुसर - पुसर में कुछ कमी और जो इधर उधर गम कम करने में मशगूल थे हॉल में आने लगे ।  प्रधान जी दुबारा बोले ।
- सुनो - भाई सुनो । अब हम लोग अनपढ़ गंवार नहीं । सभ्य हो गए हैं । हमारे साथ एक बहुत बढ़ा पढ़ा लिखा वर्ग जुड़ गया है । कल की बात देखो मै एक अपने भाई को किसी बात पर धमकाने लगा । उसने वो अंगरेजी बोली कि मेरी तो जुबान पर  ही ताले पड़ गए । कल की घटना ने  मेरी सोच को परिवर्तित कर दिया
- परिवर्तित .....
- हाँ भाइयो परिवर्तित । मैंने तुरंत फैसला लिया । इस बार बैठक उस ऑटो स्टैंड वाले पीपल के पेड़ के चबूतरे से इस होटल में करने का ।
- बहुत बढ़िया प्रधान जी ..तालियों के साथ ही पूरा हॉल  गूँज उठा ।
- अब मैं चाहता हूँ कि हमें भाड़ा बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए । इस बारे में सबकी राय के बाद ही फैसला लिया जायेगा ।
एक - एक कर सभी अपनी - अपनी राय ब्यक्त करने लगे । एक कहता हरेक रूट पर बसें नहीं चलनी चाहिए । उनकी वजह से लोग ऑटो में नहीं बैठते । आखिर बैठे भी क्यों । बस किराया जन्हा दस रूपये होता है वंहा ऑटो का किराया सौ रूपये । यात्री की भी अपनी जगह सही है और हम भी किसी - किसी स्टैंड पर तो दिन भर में चार सवारियां भी नहीं मिलते । उस भाड़े से ऑटो का पेट भरें या अपना । समझ नहीं आता । सोचा बेरोजगारी से बढ़िया है अपना काम । लेकिन इसमें तो लगता है ....। कहते - कहते एक का तो गला ही भर आया और चेहरा भीड़ से बचाता मंच से उतर कर अपने ऑटो तक जा पंहुचा और उसकी डिक्की खोल उसमे से गम कम करने की दवा निकालने लगा । अब प्रधान जी ने उस युवा को आगे बुला लिया जिसकी वजह से उसने आज पहली बार होटल में मीटिंग रखी ।
- गुड मोर्निंग फ्रेंड्स .....
- भय्ये अंगरेजी नहीं ..... हम प्रधान जी नहीं ......
युवा कुछ देर सकपका कर चुप हो गया ।
-बोलो भय्या बोलो ......ज्यादा नहीं तो थोड़ा बहुत अंग्रेजी तो हमें भी आती ही । एक से बढ़कर एक यात्री मिलते हैं स्टेशन पर । विदेशी मेम तक ।
- हां भय्ये ! उस बक्त तो लगता है ........। काश हम भी थोडा अंगरेजी जानते तो ...... मजा आ जाता । बोलते - बोलते वह ओंठो पर जीभ फेरने लगा ।
- आ भय्या तुम नीचे आ जावो पहले इसे ही बोलने दो । प्रधान जी ने उसकी तरफ देखते हुए कहा ।
मंच पर जाने के नाम से उसी की क्या अच्छे -  बोलती बंद हो गयी । और वह बगलें झाँकने लगा ।
- भय्या जमीन से बोलना आसान होता है । वंहा जा कर बोलने में तुम्हारी ही क्या अच्छे अच्छों की बोलती बंद हो जाती है । मंच पर खड़े युवक की तरफ इशारा करते हुए । बोलो भय्या बोलो । तुम जैसे युवाओं की तो हमें सख्त जरूरत है ।
मंच पर खड़ा युवक कुछ देर इधर - उधर देखने लगा । अब पहले की अपेक्षा वातावरण शांत हो गया ।
- भाइयो नमस्कार । मै तुम लोगों के सामने बहुत छोटा और नया हूँ । मैंने काफी सोच बिचार कर यह पेशा अपनाया । मुझे सभी ने कहा तुम और ... ग्रेजुएशन करने के बाद ऑटो ..... । घर वालों ने तो कई दिनों तक मेरे साथ बात करनी बंद कर दी । मोहल्ले वाले भी आये दिन घर वालों को सुना - सुना कर मुझे यंहा वंहा छोड़ने को बोलते । किराये के ऑटो से आज मै खुद के ऑटो का मालिक बन गया । घर वालों तक से कोई मदद नहीं ली । पांच  साल बेरोजगारी के दंस को सहने के बाद ही मैंने यह कदम उठाया ।
- बहुत अच्छा .... बहुत अच्छा ..... तालियों की आवाज़ ने उसका मनोबल बढ़ाया ।
- शुरू शुरू में मुझे लगा ... यह पेशा अच्छा नहीं ..... लोग इज्ज़त नहीं देते । लेकिन इज्ज़त खुद इज्जत देने से मिलती है ।
- वाह वाह क्या बात कही ..... लेकिन भय्ये जरा मुद्दे पर तो आवो । भीड़ में से एक ने कहा ।
- मुद्दा सपष्ट था । किराया बढ़ोतरी । नवयुवक ने भी अपनी बात कही । बस उसकी एक बात ज्यादातर को इसलिए नागुजार लगी कि उसका कहना था कि यदि किराया बढ़ोतरी सरकार की तरफ से हो जाती है । प्रति किलोमीटर भाड़ा तय हो जाता है तो फिर हमें उसी नियम का पालन करना चाहिए । अपने मन माफिक किराया यात्रियों पर नहीं थोपना चाहिए । इसी बात पर बहस में पेट्रोल की कीमतों की तरह उबाल आ गया । एक कहता कि यह सही है सवारी की किच - किच से तो निजात मिलेगी उठाकर सरकारी रेट दिखा देंगे । दूसरा कहता इस तरह से तो मालिक का रोज़ का भाड़ा भी नहीं निकल पायेगा और जो इधर उधर देने पड़ते हैं वो अलग । और तेल की कीमतों में इजाफे के क्या । आज हमारा भाड़ा तय होगा कल फिर से कीमतें बढ़ जायेंगी । हम हर हफ्ते या महीने धरना तो नहीं दे सकते । मालिक का क्या तुम कमाओ न कमाओ उसको तो अपने ऑटो का रोज के रोज भाड़ा चाहिए ही  । उसकी बला से कोई जिए या मरे ।
- भय्या एसे ही थोड़े न कर लिए मालिक ने  एक से पच्चीस ऑटो खड़े । एक ने कहा ।
- भाई बंदी दिखाने लगा तो ...। काफी देर से चुपचाप दूसरे ने कहा ।
- हाँ भय्या तुम तो हो भी उसके खासम ख़ास ।
- हाँ पल - पल की खबर जो देते हो .... !
- हां देता हूँ बस ..... क्या बिगाड़ लोगे मेरा ...
- सही बात है .....। अब तो वो अपनी कार के आगे जंगी पार्टी का झंडा भी टांकने लगा । बिधान सभा चुनाव भी लड़ लिया । भले ही अच्छी खासी हार मिली हो ...
कुछ लोग तो खिलखिला कर हंसने लगे और पांच सात की भोंवे तन गयी .... आस्तीने चढ़ गयी थी । प्रधानजी ने बड़ी मुश्किल से सबको चुप कराते हुए समझाया जब भी हम लोग अपने हित के लिए कोई मुद्दा उठाते हैं । आपस में ही उलझ कर रह जाते हैं । एक समस्या सुलझने की बजाय दूसरी खडी हो जाती है । पिछली बैठक में भी एसा कुछ हुआ । बातचीत करने बैठे थे भीकू की पुलिस के हाथों बुरी तरह पिटाई पर । उल्टा यंहा आपस में ही गुथम गुत्था शुरू हो गयी । जिस पुलिस को लेकर बात उठी थी उसी के हाथों पांच - छ को और पिटना पड़ा । बात सबके समझ आ गयी कि नहीं । तुम लोग हमेशा ही एसा करते हो मुद्दे से हट अपनी लड़ाई लड़ना शुरू कर देते हो । गढ़े मुर्दे उखाड़ने लगते हो । फलां ने उस दिन मेरे अड्डे से सवारी उठा ली । फलां ने मेरे तय की गयी सवारी को पांच रूपये कम में बिठा ले गया । ऐसे में तो कर लिया हमने कुछ ..। जिसकी जो मर्जी आती है करो ।
अब दो - चार जने प्रधान जी को समझा बुझा कर खाना खाने ले गए । सुन्दर मेज पर सजे खाने को देख सबके मुंह में पानी आ गया और सबने मिल एक साथ खाने पर धावा बोल दिया । अब मंच से भाषण की जगह गाना बजने लगा यंहा वंहा तारे ..... जन्हा में तेरा राज़ है ..... जवानी और दीवानी जिंदाबाद ....। एक दो लोग तो सिर पर खाने की प्लेट रख ठुमका भी लगाने लगे । ना खाने के बाद एक - एक कर सभी ऑटो घर्रर घर्रर से स्टार्ट होते हुए होटल के अहाते से ओझल होने लगे । प्रधान जी ने मंच पर गाना बंद करवाया और बाकी बचे दो - चार को संबोधित करते हुए  अगली बैठक के बारे में बताया जो अब होटल के बजाय उसी पीपल के  छाँव में होगी ।
@2012 विजय मधुर 

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