शनिवार, 25 अगस्त 2012

कहानी - बन्नू

      बन्नू 
            अपनी दुकान के ठीक सामने सड़क पर रिंकी  काफी देर से  देख रहा था कि एक बुजुर्ग सड़क के बीच में आते और  वापस  लौट जाते   उसकी समझ में कुछ नहीं  आया । लगभग पंद्रह - बीस मिनट से यह शिलशिला चल रहा था । जैसे ही  वह  दुकान के जरूरी कामों से फ्री हुआ  ध्यान से देखा तो बात समझने में देर न लगी । दरअसल वह बेचारे ताऊ जी सड़क पार नहीं कर पा रहे थे । रिंकी फटाफट गया और  कुछ ही क्षण में उन्हें सड़क पार करा कर लौट  आया । इतने छोटे से काम के बदले में मिली ढेर सारी दुआएं । जीता रहे पुत्तर ....। भगवान् तुझे  लम्बी............................. आयु ...खूब............. तरक्की दे     जैसे ही वह दुकान में वापस लौटा इसी दौरान उसके  पिताजी और दो ग्राहक भी दुकान में पंहुचे । दुकान में काम करने वाली लड़की ने भी   आज यह  कह कर फ़ोन कर दिया कि .... सुबह ही उसे देखने के लिए लड़के वाले रहे हैं .... आज ही ग्यारह बजे वाली ट्रेन से लौट जायेंगे ... इसलिए ग्यारह बजे बाद दुकान पर आएगी रिंकी का दुकान के भीतर घुसना ही था कि  उसके पिताजी 'बन्नू ' ग्राहकों के सामने ही शुरू हो गए ... ये कोई तरीका है दुकान चलाने का .... तुम लोगों को सब कुछ करा - कराया मिल जाता है इसलिए किसी चीज़ की कद्र नहीं करते ....हमारी तरह ठोकरें खाई होती .... तब पता चलता ... बाबू  जी मै तो सामने वो ताऊ जी हैं ........ (ताऊ जी अब तक जा चुके थे ) बड़ी देर से सड़क पार नहीं कर पा रहे थे .... उन्हें ही पार कराने गया था ... आज सड़क पार कराने गया .... कल को कोई एक्सीडेंट हो गया तो अपनी दुकान  एसे ही खुली छोड़ .....उसे अस्पताल पँहुचाने चला जायेगा समाज सेवा से पेट नहीं भरता बरखुदार  ...... बाप - बेटे की तकरार देख ग्राहक वापस लौटने लगे अरे ... अरे ... अंकल जी ....आप कंहा जा रहे हैं .... एक मोबाइल देखना था लेकिन .......लेकिन क्या .... अपने पिताजी की तरफ देखते हुए .... अरे यह..... यह  तो मेरा ..रोज़ का प्रसाद है  ....जब यह दुकान पर आयें और मुझे दो चार न सुनाएँ ...इनका  तो खाना ही हजम  नहीं  होता  बन्नू हूँ करता हुआ अजीव सा मुंह  बनाकर  दुकान के बाहर   बेंच पर पर जा बैठा  हाँ अंकल बताइए .... चलो पहले यह बताओ सेट किसके लिए खरीदना है .... अपने लिए या ( साथ में खडी लडकी की तरफ इशारा करते हुए ) इनके लिए ! क्या मतलब है तुम्हारा .... मेरे लिए अलग और .... बेटी के लिए अलग   .? अच्छा .....तो दो सेट लेने हैं आपको ।  नहीं नहीं .....दो नहीं .......बाबा  । एक ही सेट लेना है .... बेटी के लिए .... अंकल रेंज क्या होगी ..... यही कोई .......पांच हज़ार तक .......। अंकल थोडा बहुत ऊपर .... तो चल जायेगा ! हाँ - हां भैया ! लडकी तपाक से बोली । चार - पांच डब्बों में से एक डब्बा छंटते हुए ।  ये रहा बहुत अच्छा सेट है !  आज ही मार्केट में आया ...अभी तो पूरे शहर में किसी के पास देखने को  भी नहीं मिलेगा ..। हाथ से इशारा करते हुए । खूब जमेगा  तुम्हारी  पेसोंलिटी के हिसाब से । मुस्कराते  हुए कुछ  अलग  ही अंदाज़ में  बोला । लडकी एक बार  पिता की ओर देखती है और झेंप जाती है । रिंकी बात को सँभालते हुए अंकल   ये पूछो कि इस सेट में क्या नहीं है । सारे  फीचर  हैं इसमें ! ब्लू टूथ .... जी पी आर एस .... पांच मेगा पिक्सेल कैमरा ...... तीन जीबी इनबिल्ट मेमोरी ..... फ़ोन बुक देखो ... कितनी बड़ी ..... और हाँ नए - नए गाने .... सब लोड करके दूंगा ....  और यह देखो विडियो ... पिक्चर क्वालिटी देखो क्या लाज़बाब है । देख बेटा मुझे इन सब चीजों से क्या लेना । फ़ोन का मतलब है हमारे लिए बात करना .....और सुनना । तुम कीमत बताओ । अंकल आप पहले ग्राहक हो ... बोणी  आप से ही करनी है । गलत थोडा न बताऊंगा । यह सेट आपके लिए लगेगा सात हज़ार का । नहीं भाई बहुत महंगा है .....पांच तक ही दिखाओ ! इतने पैसे भी  नहीं .... पापा ....पैसे तो आपके पास .... ! हैं तो क्या हुआ ... अभी पूरा महीना चलाना  है । और दूसरा .... जो तेरा भाई बैठा है घर में ...वह चुप बैठ  जायेगा । पापा आप छुटकू की फिक्र मत करो ....उसे मै मना लूंगी । नहीं ....नहीं मै तुम्हे जानता हूँ । दोनों नैला ... दै ..ला  । भया कुछ कम करो न .....मुझे सेट  पसंद है । रिंकी कुछ देर सोचने के बाद ...मेमोरी कार्ड को हाथ में उठाते हुए बोला साढ़े छह का लग जायेगा । ठीक है  पापा सेट भी बार - बार थोड़ी लिया जायेगा .... पूरे महीने अब आपसे कुछ नहीं मांगूगी ..... !  नहीं - नहीं ..... ! अंकल जी आप भी न..... (बाहर की तरफ देखते हुए ).... मेरे बाबू जी के जैसे .......! ठीक है ...कौन जीत पाया आजकल के बच्चों से ...... अब ढंग से चेक कर लेना ......।  कहते हुए वह बाहर गया ... वंहा पहले से बन्नू अभी भी नाक मुंह सिकोड़े बैठे था ! क्या जमाना गया सेठ जी .... आजकल के बच्चे अपनी बात को मनवा कर ही रहते हैं ...... !  उन्हें सिर्फ अपनी परवाह रहती है ... यह नहीं  सोचते ......। उसकी बात बीच में ही काटते हुए बन्नू बोला । भाई साहब  लडकिया तो फिर भी ठीक है ....अपने माँ - बाप का दुःख -  दर्द समझती हैं ....लेकिन  इन लड़कों से तो भगवान् ही बचाए ! अच्छी भली परचून की दुकान  थी मेरी ... पुराने ग्राहक आते थे तो यूं समझो कि दोस्त गए ....  टाइम पास भी हो जाता था और दो रूपये कमा भी लेता था । उसी दुकान के बदोलत तीन बच्चों को  पाला पोसा... पढ़ाया - लिखाया ... दो बेटियों की शादी की । कितना कहा इस नालायक को चलती दूकान है मत ख़राब कर .... लेकिन यह कंहा मानने वाला । नहीं मुझे नहीं चलानी परचून की दुकान । अब मेरे लिए समय काटना मुश्किल हो गया । और यह  मोबाइल की भषा तो हमारे पल्ले पढ़ती नहीं क्या बोलते हैं .....टच स्क्रीन ... हैण्ड फ्री .....मेमो कार्ड .....।  मेमो कार्ड नहीं अंकल जी..... मेमोरी कार्ड ..... इसी बीच दुकान में काम करने वाली लड़की गयी आज तू भी इस टाइम .... । घड़ी की तरफ देखते हुए ..... अंकल जी वो मैंने रिंकी भय्या  को बता दिया था और जाकर काउंटर पर रिंकी  से सटकर   खडी हो  गयी ।  दोस्त  बहुत अच्छा सेट पसंद किया  है आपने ....बहुत अच्छी पसंद है । थैंक्यू .... कहती हुई   पापा ....पापा ... यह  देखो कितना प्यारा है .... है न .... कहते - कहते वह पापा को बुला लाई । लो भय्या । पांच - पांच सौ के नोट रिंकी को पकड़ा  दिए । रिंकी नोट गिनता हुआ  अंकल.... यह तो छह हज़ार ही हैं ? बस ठीक हैं ।  नहीं ... नहीं .... इतने में नहीं हो पायेगा ... जितनी गुंजाइस थी मैं पहले ही कर  चुका हूँ । पांच सौ और दे दो । क्या करता उसने जेब से हज़ार का नोट  निकालकर उसे थमा  दिया जिसमे से पांच सौ रूपये वापस करने लगा लडकी ने झट से आगे हाथ बढ़ाया और अपने आप पांच सौ का नोट  रख लिया !  अभी तो तूने कहा था पूरे महीने ...। पापा यह तो ....... वो छुटकू का मुह भी तो बंद करना है ... पिज्जा हट ले जाकर । इतने में ही रिंकी के मोबाइल की रिंग टोन  बजी ..... जीने के हैं चार दिन ....... हाँ .... मै बस अभी पंहुचा दस मिनट में ... हाँ .... हाँ.... अब जान मत  खा .... फ़ोन रख ..... ।  काउंटर पर साथ में खडी लडकी को कुछ समझाते हुए ।
तुम  इनके सेट में गाने ... और जो यह बोले लोड कर देना  । कोई दिक्कत हो तो मुझे कॉल कर लेना । फिर जोर जोर से बाहर बेंच पर बैठे पिताजी को सुनाते हुए । वो क्या है न ..... कंपनी वाले आ रखे हैं ....क्या पता कोई बढ़िया सी स्कीम हाथ लग जाय ... मैं अभी आया ...... दस मिनट में ........ समझो यूं गया .......और यूं आया ।  धुंवा उढ़ाते हुए मोटर साइकिल बन्नू  के सामने से ऐसे उड़ी जैसे कोई रॉकेट धरती से  आसमान में छूटा हो ।  बन्नू  काफी  देर इधर - उधर नज़रें दौड़ाता  रहा ....शायद कोई  आ जाये । लेकिन काले शीशों से बंद दुकानों के भीतर  से बन्नू तो सबको नज़र आ रहा था लेकिन बन्नू को कोई नहीं ।
@2012 विजय मधुर 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आभार