घर तुम्हारा
ऊंची - ऊंची
पर्वत मालायें
सघन वन
हिम आच्छादित ।
परिंदा भी
जन्हा नज़र न आता
रहते
चौकस ....
आनन्दित ।
सुख - दुःख संग
तुम्हारे भी हैं
कठोर शरीर
मन ....
मोम सा है ।
नाम क्या
क्या दें तुम्हे
करते हैं
कोटि - कोटि
नमन .....
इस बगिया के
तुम हो माली
जिम्मे तुम्हारे
चैन -अमन ...
जिम्मे तुम्हारे
चैन -अमन ।
@विजय मधुर
ऊंची - ऊंची
पर्वत मालायें
सघन वन
हिम आच्छादित ।
परिंदा भी
जन्हा नज़र न आता
रहते
चौकस ....
आनन्दित ।
सुख - दुःख संग
तुम्हारे भी हैं
कठोर शरीर
मन ....
मोम सा है ।
नाम क्या
क्या दें तुम्हे
करते हैं
कोटि - कोटि
नमन .....
इस बगिया के
तुम हो माली
जिम्मे तुम्हारे
चैन -अमन ...
जिम्मे तुम्हारे
चैन -अमन ।
@विजय मधुर
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