मंगलवार, 14 अगस्त 2012

नमन (कविता)

घर तुम्हारा
ऊंची - ऊंची
पर्वत मालायें
सघन वन
हिम आच्छादित ।
परिंदा भी
जन्हा नज़र न आता
रहते 
चौकस ....
आनन्दित ।
सुख - दुःख संग
तुम्हारे भी हैं
कठोर शरीर
मन ....
मोम सा है ।
नाम क्या
क्या दें तुम्हे 
करते हैं 
कोटि - कोटि   
नमन .....
इस बगिया के
तुम हो माली  
जिम्मे तुम्हारे
चैन -अमन ...
जिम्मे तुम्हारे
चैन -अमन ।

@विजय मधुर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आभार