मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

साधारण आदमी

             एक दिन शहर के पॉउस इलाके से होता हुआ रमेश कंही जा रहा था ! एक बड़े से बंगले के सामने  लोगों की भीड़ जमा थी ! उसने सोचा चलो देख लूं क्या हो रहा है यंहा ! स्कूटर एक तरफ खड़ा कर बहुत बड़े गेट के पास खड़े बहुत से संतरियों में से एक से पूछा " भाई साहब यह किसका बंगला है " संतरी ने एक नज़र में ऊपर से नीचे उसे देखा ! फिर पूछा कंहा से आये हो ! बस यंही रहता हूँ ! अब्लू वाला में ! क्या करते हो ! मकानों में पुताई का ठेका लेता हूँ   ... क्या नाम है ..... मेरा नाम रमेश है ! रमेश ने सोचा मै बेकार ही यंहा आया .... आ बैल मुझे मार ...! संतरी ने कहा ... जब तुम यंही रहते हो तो इतना भी नहीं जानते यह ... गरीवों के मसीहा जबलु साहब का  बंगला है ... आज ही बिलायत से लौटे है .... इसी लिए इतनी भीड़ लगी है ... ! मै जा सकता हूँ उन्हें देखने ...! रमेश ने सोचा रोज ही तो कभी मजदूरों ... कभी दुकानदारों ...... तो कभी मकान बनाने वाले से किच-किच होती रहती है .... वेसे भी कम्बख्क्त पुताई वाले का नंबर तब आता है जब तक ठेकेदार .... सीमेंट वाला ....सरिया वाला ...ईंट बजरी वाला ...नलके वाला  ... बिजली वाला .... सभी उसकी जेब खाली कर चुके होते हैं ! सारा गुस्सा मालिक को हमारे ऊपर ही उतरने को मिलता है .... पैसे के लिए झक झक सो अलग ! संतरी ने अपनी ड्यूटी निभाते हुए जरूरी तलाशी ली और रमेश को अन्दर भेज दिया ! बंगले के सामने बहुत बड़े लॉन में भीड़ जमा थी .... आगे दो कुर्सियां लगी थी जो अभी खाली पडी थी ! लोग दूर से ही कुर्सियों को निहार रहे थे ! रमेश बाद में आया इसलिए उसे काफी पीछे खडा होना पडा ! लेकिन वंहा से भी दिखाई देगा इसलिए संतुष्ट होकर मन ही मन चलेगा ... ! भीड़ के साथ ही कुछ हठे कठे ... सफारी सूट पहने ... लोग घूम रहे थे ... जो बीच बीच में लोगों से पूछ रहे थे ... !  रमेश से थोडा आगे एक बुजुर्ग के पास एक आया .... बाबा कंहा से आये हो .... क्या काम है ... अर्जी लाये हो लिखकर .... हाँ यह रही ..... ! अपने पास ही रखो जब साहब आ जायेंगे तो उन्हें ही अपनी बात बताना और यह अर्जी भी दे देना ! हाथ जोड़ता हुआ .. मेहरवानी साहेब .... वेसे कितनी देर में आयेंगे साहब .... ! बस आने ही वाले थे तब तक दिल्ली से एक मंत्री जी आ गए .....! इसलिए थोडा बिलम्ब हो गया ! बस थोड़ी देर में आ जायेंगे .....! तभी भीड़ की खुसर पुसर शुरू हो गयी ! आ गए साहब .... वो रहे बरांडे में .... इधर ही आ रहे हैं ....  क्षण भर में ही वह वंहा पंहुच गए ! उनके साथ दांये बांये हाथ में फाइल लिए एक महिला और एक पुरुष मौजूद थे ! दोनों हाथ ऊपर कर ... सभी का अभिवादन करते हुए ..... बैठ जाओ  ....बैठ जाओ ..... सभी लोग नीचे लॉन पर बैठ गए ! सभी बड़े खुश हुए शायद मन ही मन सोच रहे थे कंहा हम धुल- मिट्टी में बैठने वाले गरीबों को इस बिदेशी घास में बैठने का मौका मिल रहा है !  क्योंकि लौन में आने से पहले कोई कह रहा था यह विदेशी घास है ..... ! अधिकतर लोग तो जूते  निकाल कर विदेशी घास पर आये .....! यूं समझो विदेशी घास नहीं  बल्कि हमारे यंहा के मखमल के गद्दे हों ... एक आदमी कह रहा था ! हाँ भई देखो.... पैर कैसे ......! सचमुच मखमली घास तो लग ही रही थी ... इससे पहले भी कई कोठियों में रमेश ने घास देखी थी .... लेकिन इस बिदेशी   घास की बात है ही खास ! जब सारी भीड़ जमीन पर बैठ गयी ... तो रमेश को लगा कि जैसे उसने इन साहब को कंही देखा है ... वो भी काफी नजदीक से .... ! अपने सर पर हाथ मारता हुआ ...नहीं -  नहीं  रमेश यह एसे कैसे   हो सकता है तू एक मामूली सा ठेकेदार ... ! कंहा राजा भोज और कंहा गंगू तेली ! लगता है रात को फौज  की असली  रम अभी तक  उतरी नहीं ! अभी लोगों की समस्या सुनने से पहले साहब अपनी समस्या बता रहे थे .... ! किन किन हालातों में उन्हें गरीबों के हक  के  लिए लड़ना पड़ता   है ... कंहा कंहा से धन जुटाना पड़ता है ....! आज हमारे गरीब भाइयों की स्थिति में सुधार आया है ... सस्ते दर पर उनको राशन पानी मिल रहा है .... उनके बच्चों के लिए कितने सुन्दर -सुन्दर स्कूल हैं .... भोजन ..... बर्दी से लेकर .... अच्छे अच्छे अनुभवी मास्टर हैं वंहा .... हमारी बहिने आत्म निर्भर हुई है .... आज वह किसी की मोहताज नहीं ! जैसे ही जबलु साहब ने बहिनों का जिक्र किया  रमेश को झट से याद आया ! बारह-तेरह साल पाहिले की सारी तस्बीर उसके सामने स्पस्ट नजर आने लगी ! मन ही मन अरे ! ये तो पका वही है ... जो  बारह साल पाहिले गुंथा वाले में उस मैडम के साथ आता था जिसके मकान में मैंने पुताई कराई थी ! यह तो अधिकतर उसी मैडम की गाडी में आता था ! एक दिन उसने मैडम से बात करते सुना था ! वह कह रही थी तुम अपने आप नहीं आ सकते थे ! तब साहब ने कहा था उनके पास कोई गाडी थोड़े न है ! यह इतनी जल्दी इतना बड़ा आदमी ! शायद कोई अल्लाद्दीन का चिराग हाथ लग गया होगा ! भगवान् एसे चिराग हरेक को दे देते तो कितना अच्छा होता ! तभी तो कहते है पुरुष का भाग बदलने में कंहा देर लगती है भला ! सोचा एक बार जाकर मै भी मिल लूं .... अब काफी लोग उसे घेर चुके थे .... ! पहचानता है भी या नहीं ... ! उस मकान में काम करने वाला एसा भला कोई होगा जिसको उसका पूरा पैसा मिला होगा ! जो मेन ठेकेदार था उसकी तो इन साहेब ने  इतनी धुनाई करवा दी थी इन साहेब ने कि बिचारा पूरे हफ्ते अस्पताल में पडा रहा  !   फिर मै ही क्या ? भला  किसीकी हिम्मत होती  पैसे मांगने की ! सुना था इन साहेब की बहिन थी वह! क्या नाम था..... ! छोड़ो न भई  न  अब इनके सामने जाना ठीक नहीं  दो रोटी कम से ही अपने बच्चो को पाल लूँगा .... ! नहीं ..... नहीं .... गलती कर दी मैंने यहाँ आकर ! लेकिन गलती नहीं करता तो पता कैसे चलता ....! स्कूटर हाथ बिना स्टार्ट किये  रमेश दबे क़दमों से बाहर जाने लगा !  गेट पर वही संतरी मिल गया ... बड़ी जल्दी साहब से भेंट हो गयी ....देखा कितने भले इंसान है .....! रमेश .... हाँ भय्या ! एक बात पूछता हूँ तुमसे बुरा तो नहीं मानोगे .......!  नहीं बोलो ... मै भी तो तुम्हारे ही जैसा .....! वो ...वो.... गुंथा वाले में इन साहब की बहिन रहती है न क्या नाम है उसका .....! संतरी रमेश को कोने में ले जाते हुए .... ! किसी के सामने मत बोल देना भाई .... और सुनो  .... धीरे से बुदबुदाया वह साहब की बहिन नहीं ..... खास म ख़ास .... है ..! दो....स्त !  लेकिन तुम्हे कैसे मालूम ........!   ठीक है भाई राम .... राम .....  कहता हुआ रमेश स्कूटर लेकर बाहर आ गया ! स्कूटर स्टार्ट कर सीधे फौजी भाई के मकान के लिए जाने लगा ! आज उसे अपने साधारण आदमी  होने पर  ही गर्व हो रहा था !
*विजय मधुर 

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