बुधवार, 21 दिसंबर 2011

गौरय्या (कहानी)


                                             गौरय्या
       आज पूरे पांच साल बाद पहली बार बहुमंजिले फ्लेट के  चोथे माले में गौरी को एक छोटी सी  गौरय्या दिखाई दी !  उसके सामने अतीत की सारी यादें मंडराने लगी ...वही छोटी सी  बच्ची की जो आँगन में खेलते खेलते बढ़ी हुई ! कभी गुड्डे गुड़ियों के साथ तो कभी छोटी छोटी गोरयाओं के साथ ! गौरय्या कभी अकेले नहीं आती थी उसके साथ होता था उसका पूरा कुनबा ! छोटी बच्ची जिसका नाम था गौरी शायद गौरी नाम के कारण ही उसे गौरय्या से इतना प्यार हो गया था !जैसे ही ! गौरय्याओं का झुण्ड आता गौरी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता ! वह भाग भाग कर अन्दर रसोई में जाती माँ ....माँ ...... चिड़ियों के लिए दाना दे दो ! शुरू शुरू में माँ कुछ आना कानी करती ! नहीं कन्हा रखा है रोज - रोज इनके लिए दाना ! मत डाल इनको बुरी आदत ... ! लेकिन गौरी कंहा मानने वाली ... ! कभी कभी तो वह अपने हिस्से की भात की थाली भी उनके आगे रख देती .... ! इतनी जिद्दी हो गयी थी किसी के समझाने में आती ही थी ... ! गौरय्याओं की भी गौरी से दोस्ती हो गयी थी .... आते ही बरामदे में कपड़ों के लिए टंगी रस्सियों पर जोर जोर से चूं....चूं .... करने लग जाती वो भी तब तक जब तक गौरी बाहर उनके लिए कुछ लेकर जाती ! यदि कभी गौरी नहीं आती तो बेचारी काफी देर इंतजार कर निरास होकर लौट जाती! समझ जाती कि आज गौरी घर पर नहीं है  ! जैसे जैसे गौरी बड़ी होती गयी ! लडकी होने के नाते उसपर  स्कूल के साथ -साथ रसोई .... झाड़ू .... बर्तन .... बगैरह दैनिक घरेलू कार्यों का भी दबाव पड़ता रहा जबकि उसके  बढे भाई रमण के साथ एसा था ! वह दोनों स्कूल से साथ- साथ घर आते .. रमण स्कूल का बस्ता एक तरफ तो ड्रेस दूसरी तरफ फ़ेंक ! माँ ... माँ .... भूख लगी है जल्दी से खाना दे दो ! माँ उसे खाना देती और खाना खा कर वह चम्पत दोस्तों के साथ ! जबकि गौरी के साथ एसा था ! स्कूल से आकर अपनी खुद की और रमण की ड्रेस भी संभालती ! कई बार खाना खाने से पहले नलके से पानी भर कर भी लाती ... खाने के बाद झाड़ू ... बर्तन में भी माँ का हाथ बंटाती या कभी-कभी खुद ही करती ....! कई बार माँ से इस बात का बिरोध भी जताया .... पिताजी से  भी शिकायत की लेकिन उल्टा माँ से डांट सुनने को मिलती ! कल पराये घर जायेगी तब भी एसा ही करेगी ... ! जितना ज्यादा घर का काम सीखेगी उतना ही आगे चलकर फायदा होगा तुझे .... ! माँ मुझे तो पढना है ....! बस- बस हमें नहीं बनाना तुझे कलेक्टर .... ! गौरी मन मासोट कर बैठ जाती ! माँ का यह शौतेला ब्यवहार उसे कभी अच्छा नहीं लगता था ! गौरी इस बात से अक्सर उदास हो जाती थी ! अपना दुःख आखिर किस के सामने ब्यक्त करे ! कई बार दादी - नानी से माँ की शिकायत की परन्तु वंहा से भी जबाब मिलता गौरी तेरी माँ बिलकुल ठीक कहती है ... ! लडकी जितनी ल्दी अपने घर यानी ससुराल जाये उतना ही अच्छा ! और गौरी उदास होकर बैठ जाती ! उसकी उदासी की खबर जैसे कि  गौरय्याओं को लग जाती थी ! पंहुच जाती थी वे अपने दल - बल के साथ ! और तब तक चुप नहीं होती जब तक गौरी बाहर नहीं आ जाती कुछ लेकर ! उसके बाद भी वे सब मिल गौरी के आगे उछल कूद और जैसे कि लय बध होकर  चूं ... चूं .... ... करती मानो जैसे कोई गाना गा कर गौरी को रिझा रही हों ... ! गौरी भी उनके साथ खिलखिला उठती और गौरय्याओं का झुण्ड फुर्र से उड़ जाता गौरी मुस्कराते हुए तब तक उनको निहारती रहती जब तक वे आँखों से ओझल नहीं हो जाती ! जब तक गौरी अपने अतीत से बाहर आयी ! तब तक गौरय्या न जाने कंहा गुम हो गयी ! उसे बड़ा दुःख हुआ कि गौरय्या को कुछ दाना न खिला सकी ! उसके बाद कितने ही दिनों तक बालकोनी में किस्म - किस्म के दाने भी डाले ! लेकिन वह वेसे का वेसे ही पड़ा रहता ! पुनह उसे कभी भी गौरय्या नहीं दिखाई दी !
कॉपी राईट@२०११ विजय मधुर 

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