हॉकी नहीं बैट(लघु कथा)
छुट्टी का दिन बिन्दां बच्चों को बाज़ार घुमाने ले गया | बेटे टिंकू ने एक दुकान के आगे घोर डाल दी | पापा..पापा...मुझे ये ए हॉकी लेनी है | नहीं बेटा रहने दे | दूसरे दिन दिला दूंगा | परन्तु टिंकू नहीं माना |
दुकान के फर्श पर लम्पसार हो गया | शर्म के मारे पति-पत्नी और बेटी का मुंह लाल हो गया | पत्नी बोली कितने का भय्या | दुकानदार - सौ रूपये का | पत्नी पति से - दिला दो क्यों बाज़ार में
तमाशा ....| दुकानदार लो भाई साहब जब बच्चा इतनी
जिद्द कर रहा है तो ... मेरी तरफ से ले जावो | बिंदा ने दुकानदार का हाथ झटक लिया और एक थपड टिंकू की गाल में रसीद कर दिया
| बहुत बिगड़ गया | आस पास के अन्य ग्राहक यह देखकर दंग रह गए | कैसा बेशरम बाप है ....| टिंकू सुबकता हुआ माँ के पेरों पर लिपट
दुकान से बाहर निकल आगे बढ़ने लगा |
बिंदा को अच्छा नहीं लगा | टिंकू को पुचकारते हुए गोदी में उठा लिया | अभी मैं अपने टिंकू को उससे भी अच्छी चीज दिलाऊँगा | कंहा सस्ती सी हॉकी के पीछे पड़ा था ..... वो देख ........ कितना ...
बड़ा ...... पोस्टर है ...किसका है ? टिंकू सुबकता हुआ ... सचिन का | सचिन तेंदुलकर | दुनिया का जाना - माना क्रिकेटर | मैं भी अपने बच्चे को क्रिकेटर बनाऊंगा सचिन के जैसे | अभी अपने बच्चे को बैट दिलाता हूँ ..... वो भी सचिन का | सामने दूसरी दुकान पर जाते हैं ......| भय्या एक बढ़िया सा बैट दे दो मेरे टिंकू
को | कितने का है ? दुकानदार पांच सौ रूपये | कुछ कम.... ? नहीं.. नहीं...... एक पैसा कम नहीं | ठीक है दे दो | देखो..... कितना सुन्दर है खूब....... चौके- छक्के मारना | ठीक हैं ना .....| हंसकर बोल दे | टिंकू सिर नीचे झुकाते हुए बोला - ठीक है और दु कान से बाहर निकल गया
| सामने आइसक्रीम बेचता एक बच्चा उसके आगे
आइसक्रीम...आइसक्रीम... चिल्लाता रहा परन्तु टिंकू पर उसकी बात का कोई असर नहीं
हुआ | ना ही आज उसने आइसक्रीम खाने को
कहा |
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© 2010 विजय मधुर
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