गीली लकड़ी
फून्कनी से फूंकते-फूंकते
आंसुओं की धार |
पीसती चक्की
गोदी में नन्ही
पाँव हिलाकर उसे सुलाती
उड़ते आटे से सफेद बाल |
गोबर में सने हाथ
रोता नन्हा
कोहनी से थपथपाती
पोंछती उसकी नाक |
भरी दोपहरी
पसीने में नहाती
खेत गुडाई
गीतों की तान |
कास ......
माँ जैसी
सरलता ...
संयम ......
उधार ही मिल जाये
जीवन धन्य हो जाये
Copyright © 2010 विजय मधुर
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आभार