गुरुवार, 19 अगस्त 2010

सरलता...


गीली लकड़ी
सुलगता चूल्हा
फून्कनी से फूंकते-फूंकते
आंसुओं की धार |

पीसती चक्की
गोदी में नन्ही
पाँव हिलाकर उसे सुलाती
उड़ते आटे से सफेद बाल |

गोबर में  सने हाथ
रोता नन्हा
कोहनी से थपथपाती
पोंछती उसकी नाक |

भरी दोपहरी
पसीने में  नहाती
खेत गुडाई
गीतों की तान |

कास ......
माँ जैसी
सरलता ...
संयम ......
उधार ही मिल जाये
जीवन धन्य हो जाये

Copyright © 2010 विजय मधुर

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आभार