शनिवार, 1 अगस्त 2015

कविता : गहरी नींद


सोते सोते 
सो गए 
कभी न जागने वाले 
रोते रोते 
जम गए आंसू 

जागने वालों के
नाम क्या दें इसे
कुदरत का कहर
या ....
उनकी ....
गहरी नींद
जो खुलती है
हादसों के बाद |

@२०१५ विजय मधुर

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