गुरुवार, 6 अगस्त 2015

कविता : जिंदगी

एक ख़ामोशी के पश्चात
दौड़ने लगी हैं जिंदगी
फिर से सड़कों पर
भीड़ पहले से ज्यादा |
हादसे का बोझ
सिर पर  लादकर
वह जिंदगियां भी  
सरकने लगी हैं ..
जिनकी  छत
ढही है  अभी – अभी |
बड़ा शहर
बड़ी बातें
चलती का नाम गाड़ी
सब्रदार है यंहा
नया ......या
अनाड़ी |
संतों की
आलीशान
कुटिया यंहा
देते उपदेश
पढ़ाते पाठ
धैर्य – धारण में
सोलह दूनी आठ |
जीना मरना
कहते हैं
उसके हाथ में
चुरा ली है
शक्ति उससे भी
शैतानों  ने ....
बातों ही बात में |

@२०१५ विजय मधुर 

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