रविवार, 3 फ़रवरी 2013

कविता : जटिलता

मै गाँव का
सीधा सादा
आदमी
कविता की
भाषा .....
नहीं जानता
जो जुंवा पर
आता है
कह देता हूँ
जो सरल लगे
समझ
लेता हूँ ...
जटिलता
लगती है
मुझको ...


पहाड़
जिससे
उतरना तो
है आसान
चढ़ना
मुश्किल ।

उफनती नदी
जो अपने वेग में
बहा ले जाती है
सारे उर्वरक
छोड़ देती है
कठोर
शिलाएं ।




गाँव की
वह  प्रसूता
जो .....
दाई के सहारे
प्रसव पीड़ा में
गुजार देती है
कई दिन
कई रातें ....।

सैनिक बिधवा
जिसके पास
पैसा   है
मान सम्मान
बच्चों के लिए
शिक्षा नहीं ।

बिध्यार्थी
जिसके पास
गुरु है ....
ज्ञान है ....
लिकिन
साधन ......
मार्गदर्शन नहीं ।

बूढ़ी आँखें
जिनमे
अपनों के दिखाए
सपने है
लेकिन
रोशनी नहीं ।

राजपाट में
पला बढ़ा
राजा .....
जो गरीबों
के बजाय
बांटता है
रेवड़ियाँ
अपने ......
अपनों को ।

मै गाँव का
सीधा सादा
आदमी
कविता की
भाषा .....
नहीं जानता
जो जुंवा पर
आता है
कह देता हूँ
जो सरल लगे
समझ
लेता हूँ ...।

@2013 विजय मधुर




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आभार