सोमवार, 28 जनवरी 2013

कविता : माँ की ब्याकुलता







सीमा पर
जाते हुए
बेटों ने
माँ से कहा
माँ
हम तेरी
आन ....
बान ....
शान ....
के लिए
सर कटा सकते हैं
झुका नहीं सकते ।

माँ ने ......
अश्रुओं को
थाम
गर्व से
लगाया था
उनको छाती से
चूमा था
उनका भाल ।

माँ को दिया बचन
निभाया बेटों ने
दुश्मन की
हर कोशिश को
किया नाकाम
आज गर्व से
कहती है दुनिया
बेटे हों तो
ऐसे जावांज ।

पर उस माँ से
पूछो कोई
जिसके असंख्य
भालों में
अब भी है
हैं  वो भाल
जिनको चूमे उसे
न जाने
बीत गए
कितने  साल ।

ब्याकुलता से
मन ही मन
रोती है
फिर
देखती है
बाकी जनता को
जो चैन से
सोती है
और
चुनती है
अपने
दिशा निर्देशकों
नीति निर्धारकों को ।

@2013 विजय मधुर

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