सपनों के भंवर में
एसा उलझा
हो गयी
नींद हराम
मै क्या करूँ
मेरे राम ...... ।
बाल्यकाल के
स्वर्णिम पलों को
रखा है अभी
बड़े संजोकर
लगा न पाया
अब तक कोई
उन क्षणों के दाम
मै क्या करूँ
मेरे राम ......।
यौवन के देखे
अनेक रूप
चंचल चपला
पेट की भूख
तारतम्य के
दोनों में
हो गयी
सुबह से शाम
मै क्या करूँ
मेरे राम ......।
गाडी ...
बंगला ..
नौकर चाकर
तब भी अधूरा
सपना पाकर
अभिलाषा के
सागर में
हो गया
अब बदनाम
मै क्या करूँ
मेरे राम ...... ।
@2013 विजय मधुर
एसा उलझा
हो गयी
नींद हराम
मै क्या करूँ
मेरे राम ...... ।
बाल्यकाल के
स्वर्णिम पलों को
रखा है अभी
बड़े संजोकर
लगा न पाया
अब तक कोई
उन क्षणों के दाम
मै क्या करूँ
मेरे राम ......।
यौवन के देखे
अनेक रूप
चंचल चपला
पेट की भूख
तारतम्य के
दोनों में
हो गयी
सुबह से शाम
मै क्या करूँ
मेरे राम ......।
गाडी ...
बंगला ..
नौकर चाकर
तब भी अधूरा
सपना पाकर
अभिलाषा के
सागर में
हो गया
अब बदनाम
मै क्या करूँ
मेरे राम ...... ।
@2013 विजय मधुर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आभार