बुधवार, 31 अगस्त 2011

क़र्ज़ (कहानी )

      कहानी
क़र्ज़
      एक समय की बात है ... एक गांव में डीनू नाम का एक आदमी रहता था | काम काज वह कुछ करता न था  ...मांग मांग कर पेट पालता था | एक बार वह बहुत बीमार हो गया | गाँव के डाक्टर ने भी हाथ खड़े कर दिए ... मेरे बस की बात नहीं | सभी ने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया | एक दिन कंही से एक थोडा पढ़ा लिखा नौजोवान चंडू गाँव में आ गया | डीनू के बारे में सुनकर किसी के साथ वह भी उसे देखने चला गया | डीनू की हालत देख उसे बड़ा दुःख हुआ | अन्धेरा कमरा ....  जमीन पर पुरानी सी गुदड़ी पर वह कराह रहा था | साथ में खड़े ब्यक्ति से उसने कहा ... क्या हम इसके लिए कुछ नहीं कर सकते | क्या कर सकते हैं .....भगवान् की ऐसी ही मर्जी है...... नहीं नहीं चलो प्रधान जी के पास चलते हैं... दोनों प्रधान जी के पास पंहुचे चंडू ने अपने मन की सारी बात प्रधान जी को बताई ... मीटिंग बुलाई गयी ... सभी परिवारों से दस दस रूपये इकट्ठा करने की घोषणा की गयी | शाम तक एक हज़ार रूपये जमा हो गए | उसमे कुछ परिवार ऐसे भी थे जिन्होंने पचास पचास रूपये तक दिए तो कुछ ऐसे भी जो एक रुपया भी न दे पाए .... अगली सुबह डीनू को कंधो में उठा कर लोग लगभग आठ किलोमीटर दूर मोटर मार्ग तक ले गए फिर वंहा से मोटर में नजदीकी शहर के सरकारी अस्पताल .... अस्पताल में टेस्ट वेस्ट की तो कोई सुबिधा थी नहीं  ... डाक्टर भी सुना कि अपनी माँ को देखने बड़े शहर गया जो..... बीमार थी..... पांच छ लोगो को साथ में देख कर नर्स ने भी आनन् फानन में गुलुकोस चढ़ा दिया ...जिससे डीनू की हालत और भी बिगड़ गयी .... नर्स भी घबरा गयी ...लेकिन ऐसी परिस्थितियों से रू ब रू होते होते वह भी निपुण हो गयी थी ... तुरंत मरीज को वापस ले जाने को कह दिया ....साथ में गए लोग भी क्या करते .... चल दिए वापस ..... रस्ते में ही डीनू की मौत हो गयी | एक आदमी को तुरंत गांव भेजा गया .... तैयारी के लिए  ... कि... वे  लाश को सीधे श्मशान घाट ला रहे  हैं ..... रस्ते से ही दाह संस्कार की सामग्री ली गयी  ... जब तक वह उसे लेकर पंहुचे थे..... तब तक सारा गाँव ...वंहा मौजूद था ....समय से सारे काम निपट गए |   श्मशान घाट से सारे लोग गाँव पंहुचे ही थे कि सभी लोगों का बिलाप .......  डीनू ने तमाम उम्र गाँव से बाहर पैर नहीं रखा था | आख़िरी बक्त ... गाडी मोटर की भी सैर कर ली | बोलता भी था .... तुम क्या समझते हो .....एक दिन मै भी घूमूंगा गाडी में .... तुम देखते रह जाओगे... | डीनू हमेशा के लिए गया...... किसी के आंसू ही न रुक रहे थे तो कोई उसकी अच्छाई सुनाते सुनाते ...|  सब कुछ करने के बाद चंडू के पास दो सौ रूपये बच गए ...किसी ने उससे हिसाब नहीं मांगा ....उलटा उसका धन्यबाद करते न थक रहे थे....  .कि ये तो बिचारा हमारे लिए भगवान् बनकर आया |
   अब हो  गया चंडू  का चन्दा  का धंधा | वह गाँव गाँव घूमता वंहा की परेशानी को सुनता ...समझता ... करता इकट्ठा चंदा ... आधा अपनी जेब में .....आधा काम पर .... हो गया नाम ..... गाँव वाले भी खुश और वह भी .....  देखते देखते एक दिन चंडू बड़ा चुनाव जीत कर  .....गाँव छोड़ शहर चला गया ... उसकी चंदा उगाहने की क्षमता देख .... बड़ी पार्टी ने उसे अपने खेमे में लिया और  सौंप दी बड़ी कुर्षी ..... बढ़ा घर   ...  बड़ी बीबी...... मोटर गाडी ....  नौकर चाकर ..... छोटे बढे अफसर सो अलग ... | बड़ा छोटा सब उससे खुश .....|  देखते देखते पांच साल बीतने को आ गए | चंडू को संकेत मिल गया उसी क्षेत्र से चुनाव लड़ने का | इसलिए वंहा की याद आनी तो बनती ही थी |    क्षेत्र  भ्रमण का     कार्यक्रम बनाया गया | आस पास के सारे डाक बंगले बुक कराये गए |
अधिकारी .... कर्मचारी ....डॉक्टर .... खानसामा से लेकर .... जीहजूरियों की पूरी टीम दूसरे दिन सुबह निकल गयी मिशन चुनाव पर ...|  तीन चार दिन सड़क से    लगते कस्बो में सभाएं करने के बाद चंडू के मन में इच्छा हुई उस गाँव जाने की जन्हा से उसने अपना करियर प्रारंभ किया था | मंडली के बड़े सलाहकारों ने टालना चाहा .... साहब ... सात ...आठ किलोमीटर ...पैदल चलकर ....टाइम खराब  करना ठीक नहीं ....  दो दिन लग जायेंगे ..... इतने में तो हम दस जगह कबर करेंगे .... लेकिन चंडू नहीं माना ..... सभी को डाक बंगले में छोड़ कुछ ख़ास ख़ास ह्रष्ट पुष्ट लोगों के साथ अगली सुबह निकल पडा उसी गाँव के लिए .... उससे पहले भी तीन चार गाँव बीच में पड़ते थे जन्हा उसने ग्राउंड वर्क किया था .. उनसे होता हुआ  चंडू उसी गाँव पंहुचा .... गाँव में ढोल नगाड़े .... तिलक....फूल माला  से उसका स्वागत किया गया |  पूरे गाँव में मेले का सा वातावरण .... प्रधान जी के घर पर पंहुचते पंहुचते अन्धेरा हो गया था .... लेकिन तब भी बिन बिजली वाला गाँव जगमगा रहा था | प्रधान जी के घर में आँगन के चारों तरफ पेट्रोमेक्स दमक रहे थे | चंडू को लग रहा था जेसे वह कोई सपना देख रहा है ....जीहजूरिये भी आपस में खुसर पुसर कर रहे थे ... बाप रे बाप कितना बोल बाला है हमारे साहब का ..... अरे बोलबाला नहीं होता तो ऐसे ही मिल जाती इतनी बड़ी कुर्षी ... अब लगता है ..... आगे भी कुर्षी पक्की .... | तभी उनके कानो में कोई बुदबुदाया .....साहब चलिए .... कन्हा ..... सामने .....प्रधान जी के हॉल में ...... | चंडू ... जीहजूरिये .... प्रधान जी और गाँव के कुछ ख़ास ख़ास लोग हॉल में पंहुच गए |  गाँव में फोजियों की कमी न थी इसलिए व्हिस्की .... रम .... ब्रांडी  की तरह तरह की आकृतियों वाली बोतले  ..... कोई खुखरी .... कोई सेव की तरह गोल ...... कोई चपटी ... तो  कोई आम बोतल .... बिभिन्न पकवानों के  साथ कोने पर लगी मेज़ पर सजी थी | एक तरफ खाने पीने का दौर शुरू हुआ तो दूसरी ओर आँगन में गीत संगीत का | बड़े बड़े लोग हॉल में खाते पीते ही कभी कभार ऐसे ही वाह वाह कर रहे थे ... जो आँगन में मस्त गाँव वालों को सुनाई नहीं दे रही थी | रात काफी हो चुकी थी जश्न जो था थमने का नाम ही नहीं ले रहा था .... तभी हॉल के बाहर भोंपू से प्रधान जी की आवाज आयी ... भाइयो और बहिनों .....आज बड़ी खुशी की बात है .... इतने बड़े आदमी ...... चंडू ने ....... हमारे गाँव आने की जहमत उठाई ... | यह वही चंडू है जिसने डीनू को अपने कंधो पर अस्पताल पंहुचाया ... प्रधान जी की आवाज कुछ लडखडा रही थी ... कुछ उलटा सीधा न बोल जांए इसलिए एक ने अपने हाथ में भोंपू ले कर कहा .... अब चंडू जी हमरे बीच में अपने बिचार ब्यक्त करेंगे ..... | चंडू के भाषण पर सभी ने खूब तालियाँ बजाई | सड़क ....  बिजली ....  पानी .....  स्कूल ..... पंचायत  घर ..... वगैरह  वगैरह के सारे अस्वासन देकर भोंपू प्रधान जी के हाथ में थमा दिया |  अब आप सभी लोग अपने अपने घर जाइये और चैन की नींद सो जाइये ....कहते वह कहते वंही बैठ गए  | सभी लोग अपने अपने घर चले गए लेंकिन एक बूढा हाथ में डंडे का सहारा लिए वंही खड़ा एक टक चंडू को देख रहा था .... कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था .... |    चंडू को लगा कि  वह कुछ कहना चाह रहा है .....उसके नजदीक गया .... ताऊ जी आपको कुछ कहना है .... कोई परेशानी ..... बेटा..परेशानी ...तो... कुछ... नहीं.. पर ....... पर बोलो बोलो बेझिझक बोलो .... बीच में प्रधान जी ही बोले  .... बोलो काका झिझको नहीं .... अरे ए कोई गैर नहीं अपना ही तो बच्चा है ..... वही बच्चा .... जिसने काफी साल पहले अपने डीनू को ....... |  हाँ हाँ उसी दिन का तो हि....सा.....ब.... (रुकते रुकते बूढा बोला ) | अब चंडू चेहरे की हवाई उड़ गयी .... खास व्हिस्की का नशा भी फुर्र हो गया | उसे लगा कि ताऊ उस दिन का हिसाब मांग रहा है ... अपने आप को सँभालते हुए .... ताऊ जी मै ....(बूढा उसे रोकते हुए ) हां बेटा मै जनता हूँ ...... तुम अब इतने बड़े आदमी हो गए हो ... तुम्हे कन्हा याद होगा....|  नहीं ...नहीं ताऊ जी....... कुछ बोलता उससे पहले बूढ़े ने अपने पुराने जगह जगह से उधडे कोट की जेब मै हाथ डाला .... उसमे से कुछ पुराने मुड़े तुड़े एक एक ... दो दो ... और कुछ सिक्के निकाल कर चंडू के हाथ मे रख दिए ..... लो बेटा तुम्हारे दस रूपये उस रोज न दे सका ..... देता भी कन्हा से..... थे ही नहीं .... कई लोगों से उधार भी मांगे ...... किसी ने दिए ही नहीं |  इधर उधर रस्ते मे  मिले ..... इकट्ठा  कर लिया ... कब से ....संभाले फिर रहा हूँ ....मुझे बिस्वास था मेरे मरने से  पहले तुम जरूर आओगे .... | कहते कहते हाथ जोड़कर  अपनी लाठी के सहारे यूं समझो रेंगते रेंगते अपने घर की ओर यह कहते हुए चला गया  .... आज मै एक बहुत बड़े क़र्ज़ से मुक्त हुआ ....|    
Copyright © 2011 विजय मधुर

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