गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

सूरज









सूरज को अगर                 
बादल
ढक भी दे
तो क्या हुआ
कब तक
रोक पाएंगे वह
उसकी किरणों को
धरती में
आने से |

समझते हैं
बादल भी
उसके बिना
कँहा है उनका
अस्तित्व |

कुछ समयांतराल में
धूल ......
मिट्टी ...
धुंद .....
को हटाकर
कर देती हैं
किरणों का
मार्ग प्रसस्त |

अब किरणे
और भी
प्रखर हो
घास ...
पत्तियों ...
कलियों ...
फूलों ..... पर
अटकी
बारिश के बूंदों पर
चमक उठती हैं |

तितलियाँ
अठखेली करती
भँवरे
गुनगुनाने
लगते हैं |

सूरज
जानता है
जेसे  होता  है
रात और
दिन का  मेल ...
वेसे ही
होता है
बादलों और
किरणों की
लुका छुपी का
यह अदभुत खेल |
Copyright © 2011 विजय मधुर

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आभार