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अंधेर नगरी चौपट राजा |
प्रथाओं का भारी बोझ ढोते उसकी कमर ही झुक गयी | उसके कई दोस्त तो लाठी के सहारे चल रहे हैं तथा कितनो की तो बेचारी कमर टूट ही गयी | जी हाँ मै बात कर रहा हूँ एक नयी प्रथा की जो आजकल कुछ लोगों को तो खूब फल फूल रही है | दिन दूनी रात चौगुनी कमाई हो रही उनकी | लेकिन इस प्रथा के जो बलि के बकरे है जरा उनका हाल तो जाने | कल का पता नहीं है उनका | काम करते करते आँखे फूट गयी कमर टूट गयी | झोपडी में दिन बिता रहे हैं | बीबी लोगों के घरों में झाड़ू पोचा लगा रही है | बच्चे अच्छी शिक्षा के लिए तरस रहे हैं | न तो वह अपने आप को भिखारी समझते ना ही कामगार | अच्छे लोगो के बीच काम जो करते हैं | इसलिए अपनी लाचारी का बोझ तब तक सीने में लिए घुमते हैं जब तक शरीर में जान होती है | कभी सुना था कु प्रथाओं का जन्म अज्ञानता व अशिक्षा से होता है | परन्तु यंहा तो एसा भी नहीं है | एक नाटक मुझे बड़ा अच्छा लगता है | मैंने खुद उसके दो तीन शो करवाए | नाम है अंधेर नगरी चौपट राजा ....| नाटकों में आजकल किसको दिलचस्पी | टेलीविजन में सीरियल तरह - तरह के आते हैं | जो मज़ा उनमे है वह नाटको में कहाँ | रंगकर्मी तो बेचारे महीनो भर नाटक की रेहेल्सल करते हैं | लोगो के आगे हाथ पसार - पसार कर मंचन के लायक धन जुटाते हैं | दर्शकों का टोटा सो अलग | टिकेट की बात तो दूर पास देने पर भी नहीं आते | भले ही कुछ बड़े - बड़े शहरों की परिस्थिति भिन्न हो | लेकिन जिस प्रथा की मै बात कर रहा हूँ उसकी शुरुआत ही बड़े - बड़े शहरों के बड़े - बड़े लोगो से ही हुई | कहते हैं ना ऊंचे लोग की ऊंची बात | तभी तो खूब धड़ल्ले से चल रही बल्कि दौड़ रही है | चलती का नाम गाडी | लगता नहीं अब इसकी रफ़्तार कभी धीमी होगी | स्कूल , कॉलेज , अस्पताल , होटल ,कूड़ेदान , पार्किंग , फैक्ट्री, दफ्तर लगभग सभी जगह खूब चल रही है यह प्रथा |
नाम तो बता दो दोस्तों ....???????
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