आज का दिन बंगाल और आसाम क्षेत्रों में महालय के नाम से मनाया जाता है | महा-महान, आलय-घर | मान्यता है
कि आज दिवस माँ दुर्गा का अपने मायके में आगमन होता है | नौ दिन कैलाश से आकर माँ मानव लोक रहती हैं और
दसवें दिन पुनः लौटती है जिसे नव-रात्रों के बाद विजय दसमी कहा जाता है | माँ
दुर्गा को नौ दिन देवी के बिभिन्न स्वरूपों में पूजा जाता है | कहते हैं जब महिषासुर ने
अपने आसुरी शक्तियों से देवों का जीना दूभर कर दिया था तो माँ को दुर्गा को अवतरण लेना
पड़ा और देवों को असुरों के राज से भय
मुक्त करना पड़ा |
जय
जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यक्पर्दिनी शैलसुते
यह भी मान्यता है कि देव और असुरों के बीच लम्बे
समय युद्ध चलने के कारण कई देवों और
असुरों को जान गवानी पड़ी | उनकी मुक्ति के लिए इस दिन तर्पण भी किया जाता है | कहते
हैं कि इस समय फसल भी पकनी आरम्भ हो जाती है और मान्यतानुसार फसल के प्रथम पकवान पितृ देवों को अर्पित किये
जाते हैं | शिल्पकार वर्ग जो लम्बे समय
से माँ की प्रतिमा को पूर्ण आकर देने अभ्यस्त रहते हैं आज
के दिन वह माँ की आँखों को अपने हुनर के रंगों से मानों साकार रूप देते हैं और माँ
की प्रतिमा को पूर्ण रूप से स्थापित करने में दैवीय योगदान देते हैं |
इस प्रकार आज के दिन पितृ पक्ष का समापन और देवी के आगमन से
उत्सवों का आरम्भ नवरात्रों से लेकर दीपावली तक चलता है |
भारत वर्ष को यूं ही बिभितताओं का देश नहीं कहा जाता |
प्रत्येक क्षेत्र की अपनी एक बोली-भाषा और संस्कृति है | जो कि भारत माँ के आभूषणों
का कार्य करती है | माँ के सजे संवरे रूप को देख बच्चों का प्रफुल्लित होना
स्वाभाविक है | बच्चों के खुश रहने से माँ की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं होता |
@ ९/२०१९ विजय मधुर
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