शनिवार, 13 जुलाई 2019

लघु कथा-१ : ठोकर


       ऑफिस बस से उतरकर जैसे ही घर की तरफ आगे बढ़ा ही था विकल्प कि अचानक ठोकर लग गयी | मुंह से अनायास ही निकल पड़ा | माँ ........| अच्छा हुआ इसी बहाने तो सही माँ की तो याद आयी ठोकर को भूलकर मन ही मन उसने कहा | अब उसके दृष्टिपटल पर वह दृश्य उभरने लगा जब वह छोटा था और एक दिन माँ के आगे–आगे चल रहा था | अचानक उसे एसे ही ठोकर लगी थी और वह गिरते–गिरते बचा | पहले तो माँ से खूब  डांट पड़ी | 
“देखकर नहीं चल सकता अभी कुछ हो जाता तो …. |” और उसके जूते मौजे निकालकर पैर की मालिस करने लगी | जबकि वह कह भी रहा था | ‘कुछ भी तो नहीं हुआ | माँ !  तू भी खाम-खां परेशान हो रही है |'
यही नहीं घर पंहुचते ही सबसे पहले गर्म पानी में नमक डाल कर उसके पैर की शिकाई करने बैठ गयी | 
अभी पिछले महीने ही गाँव के किसी व्यक्ति के मोबाइल फ़ोन से उसने फोन किया था | 
“बेटा ! अब हाथ-पैर-कमर ने जबाव दे दिया | कमरे से बाहर निकलना भी दूभर हो गया है | किसी तरह घिसटते हुए नित्यकर्म के लिए जा पा रही हूँ | दो-चार दिन के लिए बच्चों समेत गाँव आ जाता तो कितना अच्छा होता | मरने से पहले तुम सबको देख लेती | वेसे भी तुम लोगों को देखे छः-सात महीने बीत गए | हर बार की तरह इस बार भी कोई बहाना मत बना देना | 
इसी उधेड़बुन में क्या करूँ क्या न करूँ विकल्प घर में पहुँच गया | दरवाजे पर मुस्कराते हुए स्वागत करती पत्नी को खड़ी देख सारी उधेड़बुन छू मंतर हो गयी | बैठक में टेबल पर पानी, चाय-नाश्ता लगा हुआ था | माथा ठनक गया जरुर कोई बात है | विकल्प ने अभी चाय का एक ही घूँट पिया था कि पत्नी लक्ष्मी से नहीं रहा गया और बोलना आरम्भ कर दिया | 
“सुनो अगले हफ्ते मेरी माँ आ रही है बड़ी दीदी के साथ । मैं सोच रही हूँ कि उन दोनों के लिए हवाई जहाज की टिकट भेज दूं | आजकल हवाई जहाज के टिकट भारी डिस्काउंट में मिल रहे हैं | सेकंड ऐसी ट्रेन टिकट और उसमें मामूली फर्क है | बस छः हज़ार के आस-पास | वेसे भी उन लोगों ने कब हवाई जहाज में बैठना है | मैंने हवाई जहाज की दो टिकटों के लिए पड़ोस वाले टिंकू से बात कर ली है | कल उन लोगों को भेज देगा |” 
एक ही सांस में लक्ष्मी ने अपनी बात कह डाली | विकल्प के पास अब कोई विकल्प शेष न था और वह बिना कुछ कहे चुपचाप अपने कमरे में जा कर बेड पर पसर गया | जूते-मौजे निकालने और घुटने में ठोकर के कारण हो रहे दर्द को सहलाने की भी उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी | 
@२०१८ विजय मधुर 

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