मंगलवार, 7 मार्च 2017

कविता : मन की बात

मन डोलता
मन बोलता
बोले किससे
मन की बात

रिमझिम बरसे बदरा
भीग गया तन
भीग गए
वन-उपवन
मन तब भी
प्यासा
मन डोलता .... |

भंवरों का दल आया
हर्षित होकर
उनके संग
गुनगुनाने लगा 
सोचा अब तो
बहार आयी
डार बिन बैठे
मनउपवन में
निकल गयी  
मन डोलता .... |

पोटली बाँध
माली आया
सोचा कोई भेंट लाया
वह भी
कूड़ा-करकट छितराकर
जलती तीली फेंक चला गया
मन डोलता  ..... |

आगे कदम बढ़ते 
ना ही हिम्मत साथ देती  
तन्हाइयाँ यूं ही
संगी बन जाएं

मन डोलता ...... |
***
@ विजय मधुर 

2 टिप्‍पणियां:

  1. मन की बात, भलि कविता आपकी कविवर। आप दगड़ि गढ़वाळ भवन मा 20 अगस्त की यादगार मुलाकात रै।

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  2. याद च जी | धन्यवाद आपकू |

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आभार