कॉकटेल पार्टी आजकल शादी व्याह में एक शान और
रिवाज बन गयी है | इसके सम्मुख अच्छी से अच्छी
मेहमानवाजी फीकी पड़ जाती है | इस पार्टी के मेहमानों में उत्साह
देखते ही बनता है | यदि एक दिन में दो जगह से आमन्त्रण हो
तो कुछ लोग नजदीकी रिश्तेदार को छोड़ कॉकटेल पार्टी वाली पार्टी में जाने को
प्राथमिकता देते हैं | अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, छोटा-बड़ा सभी खाइयों को यह पार्टी आसानी से पाट देती है | घर की भले ही माली हालत अच्छी न हो, उधार मांग कर बेटी का ब्याह रचाया हो
लेकिन कॉकटेल पार्टी तो होनी ही चाहिए | इसके बिना तो सारी रश्मे मानो अधूरी |
मेहंदी के कार्यक्रम को इस ख़ास पार्टी
से जोड़ दिया गया है | मेहंदी की रश्म वर्सेज कॉकटेल पार्टी | कार्यक्रम में पधारते ही घर-परिवार और
मेहमान पक्ष की महिलायें और पुरुष दो धडों में ऐसे बंट जाते हैं , मानो अब कोई मैच होने वाला है | जंहा महिलाओं ने दुल्हन के ब्यूटी
पार्लर से आने तक खाली बैठ इंतज़ार करने की बजाय ढोलक में गीत संगीत की तान छिड़
जाती हैं वंही पुरुष वर्ग भी कंहा
पीछे रहने वाला | जा पंहुचते हैं उस ख़ास जगह जंहा कथित
कैंटीन से मंगाई गयी व्हिस्की , रम , बियर और सोडा की बोतलों के भीतर
के जिन्न उनके हुक्म की तामिल के लिए उतावले बैठे रहते हैं | जैसे रेस के मैदान में धावक दौड़ लगाने
से पहले एक ख़ास मुद्रा में अध् बैठे होते हैं और सीटी बजते ही दौड़ना आरम्भ | वेसे ही इन जिनों के आका भी
ढक्कन खोलने के लिए उतावले बैठे रहते हैं और जिन्न बाहर आने को | जैसे ही वह प्रतीक्षित क्षण आता है
सारे जिन्न बोतलों से सुरक्षित प्लास्टिक के
गिलासों में और इन खास गिलासों से आकाओं के पेट में उछलना आरम्भ कर देते हैं | पर्तिस्पर्धा आरम्भ |
दौड़ में तो प्रथम , द्वितीय , तृतीय आने के बाद खिलाड़ी गले मिल खेल
खत्म हो जाता है | लेकिन इस पर्तिस्पर्धा का आरम्भ का तो
किसी को पता नहीं चलता | अंत जरूर सबको मालूम हो जाता है | शुभ कार्य में बिघ्न, बिल्ली के रास्ता काटने या छींक आने पर
तो लोग मानते हैं | लेकिन इस नव प्रचलित कॉकटेल पार्टी से हुए खून – खराबे पर नहीं | कौन प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम आया है इस प्रतिस्पर्धा में निर्णय को आने में
दिन, महीनों, साल भी लग जाते हैं | यह मॉडर्न जिन्न आका के बस में नहीं बल्कि आका को ही अपने बस में कर लेता है | किसी के भीतर का जिन घर लौटते बक्त
रास्ते में गाड़ी ठोककर बाहर आता है तो किसी का घर जा कर बाल-बच्चों की मार – पिटाई कर |
कुछ जिन्न तो रात को साढ़े दस बजे के बाद घर के
किसी कोने में पड़े या खाना खाते हुए डी.जे. वाले को पकड़ कर लाते है और कहते हैं “ डी.जे. . वाले ...... गाना बजा ..
वरना .... | अपने डी.जे. सील होने की चिंता | लेकिन शुरू कर देता है बजाना और
तब तक बजाते रहता है जब तक बचे हुए जिन ओंधे मुंह उसके आस पास नहीं लोट जाते या पुलिस न आ धमके |
जिन्न बाहर आते है ...मनमौजी करते हैं और फिर खाली बोतलों के भीतर दुबक जाते हैं
... और मिलावट के साथ दुबारा सील हो चुकी उन्ही बोतलों में पहले से ज्यादा
उग्र हो जाते हैं | जब तक हम एक दूसरे की देखा देखी
स्वार्थ परक बनाए रीति रिवाजों का अनुशरण करते रहेंगे, उग्र जिन्न रक्त बीज की तरह पनपते रहेंगे और मेहंदी जैसे पवित्र रंग में भंग डालते
रहेंगे |
@ २०१६ विजय मधुर
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