तपती धूप में
पसीने से सींचा
देह ऊर्जा
संचरित कर
पाला - पोसा
संचरित कर
पाला - पोसा
बढ़ा किया
यौवन की
दहलीज़ पर
खड़े बाग़ के
जिन पेड़ों को ।
आज वही
अपनी शीतलता से
रंग बिरंगे फूलों से
हर्षा रहे हैं ...
स्वादिष्ट फलों से
सुख समृधी
बरशा रहे हैं ।
बरशा रहे हैं ।
दूर देश से
आकर पंछी
बनाते .....
सुन्दर नीढ़
और .....
कलरव से
अपने ....
अपने ....
वातावरण को
संगीतमय ।
सुनाते
मधुर कंठ से
मन मुग्ध
करने वाले गीत
क्यों न ऐसे
रक्षक तुमसे
होगी ......
हम सबकी प्रीत ।
@२०१३ विजय मधुर
@२०१३ विजय मधुर
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