शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

कविता : रक्षक

तपती  धूप  में 
पसीने से सींचा
देह ऊर्जा
संचरित कर
पाला - पोसा 
बढ़ा किया 
यौवन की 
दहलीज़ पर 
खड़े बाग़ के 
जिन पेड़ों को  । 

आज वही 
अपनी शीतलता से 
रंग बिरंगे फूलों से 
हर्षा रहे हैं ...
स्वादिष्ट फलों से 
सुख समृधी
बरशा रहे हैं  । 

दूर देश से 
आकर पंछी 
बनाते .....
सुन्दर  नीढ़ 
और .....
कलरव से
अपने .... 
वातावरण को 
संगीतमय । 

सुनाते 
मधुर कंठ से 
मन मुग्ध 
करने वाले गीत 
क्यों न ऐसे 
रक्षक तुमसे 
होगी ......
हम सबकी प्रीत ।

@२०१३ विजय मधुर

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