रविवार, 27 नवंबर 2011

मथुरा वृन्दावन

     देहरादून से दिल्ली किसी काम से जाना हुआ | वंहा ऑफिस में लगातार तीन दिन की छुट्टियां पड़ गयी ! सोचा अब दिल्ली में मैं तीन दिन क्या करूंगा ! रिश्तेदार भी बहुत हैं किस किस के घर जांऊ! तीन दिन यदि किसी एक के घर रहता हूँ तो दिल्ली जैसे शहर में उसके साथ बेइंसाफी से कम नहीं | बहुत दिनों से सोचा था दिल्ली के आस पास के एतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों में जाने का ! इसलिए कालेखां बस अड्डे पर आ गया ! वंहा मथुरा के लिए बस खड़ी थी ! भीड़ भी ज्यादा न थी सीट आसानी से मिल गयी ! बस रास्ते में सवारी बिठाती उतराती साँय चार बजे के आस पास मथुरा पंहुच गयी !उतरते ही सामने रिक्से वाले ने पूछा चलो बाबू जी कंहा जाना है ....... कंही

नहीं .... तुम जावो ....
पहली बार मथुरा जाना हुआ था ...बाबु जी कोई गेस्ट हाउस ...होटल ...
मन में सोचा क्यों इधर उधर भटकूँ वेसे भी रात को देहरादून से ट्रेन में बैठा था ! सुबह सुबह दिल्ली उतरा ! मेट्रो से कम से कम ३० किलोमीटर दूर गया ! वंहा भी देखा तो ऑफिस बंद ! गेट पर खड़े सिक्यूरिटी गार्ड ने तो गेट के अन्दर तक पैर नहीं रखने दिया ! अरे ! भाई थोडा मुझे हाथ मुंह तो धोने दे.... मैं ट्रेन से उतर कर सीधा यंहा आया ! भाई साहब मैं आपको अन्दर जाने नहीं दूंगा ! आपको फ्रेश ही होना है तो आप मेट्रो स्टेशन ..... धन्याबाद सलाह के लिए.... मैं वापस मुड़कर पुनः मेट्रो स्टेशन तक के लिए ऑटो
की प्रतीक्षा करने लगा ! पीछे से फिर गार्ड की आवाज आयी ... अब आप सीधे मंगल या बुधबार को आना ! खैर ऑटो भी आ गया .. वंही फैसला ले लिया मथुरा जाने का !
मथुरा  बस अड्डे पर रिक्से वाले की बात आखिर मैंने मान ही ली ! चलो भाई ... दिखा दो  कोई सस्ता एवं टिकाऊ होटल ! दो तीन होटल देखने के बाद आखिर मुझे एक ठीक लगा और वंहा रुक गया !  नहाने और चाय पीने के बाद लगभग पांच बजे द्वारकाधीश दर्शन के लिए चला गया ! उस दिन बाज़ार में बहुत भीड़ थी ! रिक्से वाले से पूछा .... यंहा हमेशा एसे ही भीड़ रहती है क्या ?.... नहीं ...... तभी सामने से भीड़ आयी जो बहुत बड़ा पुतला ले जा रही थी ! कई लोग उसको संभाल रहे थे ! यह क्या है ....? बाबू जी यह कंस है ... कंस .... हाँ  ... कंस ...... अभी थोड़ी देर बाद .... श्री कृष्ण जी इसको मारेंगे ! कंस का पुतला दूर चला गया ! रिक्से वाले ने द्वारका धीश  से काफी पहले ही मुझे उतार दियl
दरअसल मथुरा mकी पुरानी परम्परा के अनुसार हर वर्ष कंस बध का कार्यक्रम बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है ! जिसमे कंस का एक बड़ा सा पुतला बना कर एक निश्चित जगह पर रखा जाता है ! द्वारका धीश के बाद कुछ ही दूरी पर बिश्राम घाट है जन्हा पर  श्री कृष्ण भगवान् अपनी बहिन यमुना के साथ बैठ बिश्राम करते थे ! यमुना तट पर ही कई पोराणिक मंदिर हैं... सांय काल की आरती के लिए दूर दूर से लोग आते हैं ! बिश्राम घाट से निकलते ही बाज़ार में तरह तरह के पकवान देख मुंह में पानी आ गया ! एक ठेली पर चीले खाकर बहुत अच्छा लगा ! चीलों के अलावा वंहा पर पेड़े ....टिक्की .... लेकिन मूंग की दाल के चिले मैंने पहली बार ही खाए थे ! पेट पूजा के बाद गली से जैसे ही बाहर आया देखा ढोल नगाड़ों के साथ सुसज्जित हाथी पर राजशी वेश में कृष्ण और बलराम बड़े जनसमूह के साथ कंस बध करने जा रहे हैं ! अपना सौभाग्य समझ  मैं भी साथ में हो लिया कुछ दूर चलने के बाद कृष्ण बलराम द्वारा कंस  बध किया गया ! पूरा जन समूह कृष्ण की जयकार के साथ  पुतले को डंडो से पीट पीट कर पूरे शहर में घुमाते हैं  ! सचमुच यह नजारा अपने आप में अदभुत था !
       सत्य की जीत  के बाद रिक्से से फिर कृष्ण जन्मभूमि चला गया ! लम्बी कतार और सिक्यूरिटी चेकिंग के बाद जन्म भूमि के विशाल मंदिर में प्रविष्ट हुआ ! वंहा फोटो नहीं खींच सकते थे इसलिए कैमरा और मोबाइल बाहर ही जमा कर दिया ! विशाल मंदिर के विभिन्न ग्रहों में गर्भ गृह ..... कृष्ण का पूरा जीवन दर्शन ... विभिन्न अवतार ..... आदि देख धन्य हो गया !  रात भी काफी हो गयी थी .... जन्म भूमि के द्वार के ठीक सामने ही खाना खाने के बाद होटल आ कर सो गया ! 
दूसरे दिन सुबह पांच बजे ही नींद खुल गयी ! सोचा सुबह सुबह थोडा टहल कर आंऊ इस यंहा तो चाय मिलेगी नहीं ! सड़क पर कुछ दूर आगे चला था तो देखा की काफी सारे लोग नंगे पैर मथुरा की परिक्रमा कर रहे हैं ! जिसमे  बच्चे भी शामिल थे और उनके हाथों में गन्ने के पेड़ थे ! कुछ कुछ दूरी पर दुकानों में चाय के बड़े बड़े पतीले भट्टी पर चड़े थे .... कृष्ण भक्ति के भजन चल रहे थे .... कुर्सिंया लगी थी तथा कुछ लोग हाथ में चाय के गिलास लिए परिक्रमा करते लोगो को दे रहे थे .... उनमे से ज्यादातर तो हाथ जोड़कर आगे बढ़ते जा रहे थे .... मै कुछ देर वंही कुर्सी पर बैठ यह सब कौतूहल वस्  देख रहा था ! मेरे हाथ किसी ने चाय का गिलास पकड़ा दिया .....मै कुछ देर बाद होटल लौटकर पुनः गोकुल धाम वृन्दावन चला गया ! जन्हा पर प्राचीन एवं आधुनिक मंदिरों के साथ साथ ब्र्धाश्रमों में कृष्ण लीला को बड़े ही सुन्दर ढंग से दर्शाया गया गया है ! गोउ माता का हमारे जीवन में क्या महत्व है ! कुछ देर बाद मथुरा से गोवर्धन के लिए बस में बैठ गया ! मथुरा बस अड्डे से हरेक घंटे में गोवर्धन  पर्वत के लिए बस चलती है जो एक डेढ़ घंटे में वंहा पंहुचा देती है !
गोवेर्धन पर्वत की महता अपने आप में महान है ! महाभारत एवं इतिहास में उसका बिस्तृत विवरण है ! वेसे तो गोवर्धन पर्वत का क्षेत्रफल बड़ा विशाल है लेकिन आधुनिकता एवं उसके घटते स्वरुप के परिणाम स्वरूप परिक्रमा के लिए लगभग २०-२२ किलोमीटर की यात्रा है ! अधिकतर श्रद्धालु नंगे पैर पैदल उसकी परिक्रमा 
करते हैं .... कुछ रिक्से से ....कुछ टेम्पो से ....कुछ अपनी गाड़ियों से तो  कुछ ऐसे भी श्रद्धालु भी होते हैं जो लेट लेट कर उस २०-२२ किलोमीटर की कठिन परिक्रमा करते हैं ! भारत वर्ष वेसे भी आस्था एवं विस्वास के पूरी दुनिया में जाना जाता है
यात्रा मार्ग में बिभिन्न पौराणिक मंदिरों के साथ साथ प्राचीन मंदिर                                                                                                                    
पूंछरी कलोठा   ..... श्री गिरिराज मुखारबिन्द .... उद्धव गौशाला व अंतिम पड़ाव में राधा कुंड पड़ता है ....!
जिससे कुछ दूरी पर ही मानसी गंगा तट पर  गिरी की पौढी में श्री गिरिराज जी महाराज का विशाल एवं भव्य मंदिर है ... दूध ...  अगरवती.... श्री फल .... फूल प्रसाद से श्रद्धालु वंहा पर श्री गिरिराज महाराज की आरती के साथ पूजा अर्चना करते हैं ! मंदिर से लगभग ढाई किलोमीटर पहले ही महा कवि सूरदास की साधना स्थली है ! मथुरा यात्रा मेरे जीवन की मुख्य यात्राओं  में से एक है ! संक्षिप्त में वृतांत दिया है ! क्योंकि भगवान् श्री कृष्ण की लीला बड़ी  महान है ......!
Copyright © 2011 विजय मधुर 




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