रविवार, 26 जून 2011

शहर का इतिहास

शहर के मध्य
एक पुरानी सी हवेली
मोटी घुमावदार दीवारें
उन पर जगह जगह
उगे पीपल के पेड़
बढ़ा सा आँगन
मध्य में
तुलसी का चबूतरा
साक्षात् नमूना
शहर के इतिहास का !

कई बार देखा
दो जर्र जर्र
कायाओं  को
आँगन में टहलते !

एक दिन देखेते न बना
सोचा जान लूं
उस शहर के बारे में
जिसे देख रहा हूँ
पिछले तीस बरसों से
खुद भी गिरगिट की तरह
रंग बदलते .... !

ज्योंही दाखिल हुआ
आँगन में .....
बूढा
मेरी ओर....
दोड़ने का
का प्रयास करता
जोर से
झल्लाया ...
चिल्लाया....
मुझे नहीं बेचनी
ये हवेली .....
नहीं बनाना
शौपिंग माल ...
बढ़ा सा होटल....
फ्लेट...व्लेट..
या कुछ और.... !

इसमें बनेंगी तो
सिर्फ दो कव्रें
उन्हें उखाड़
बना लेना
जो मन चाहे
भागो यंहा से
वरना .......  !

मै जैसे ही
मुढ़ा वापस
सामने नजर आयी 
एक आकर्षक
छोटी सी इमारत
जिस पर लिखा था
बार एंड रेस्टोरेंट !


विजय कुमार 'मधुर'


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आभार