मन डोलता
मन बोलता
बोले किससे
मन की बात
रिमझिम बरसे बदरा
भीग गया तन
भीग गए
वन-उपवन
मन तब भी
प्यासा
मन डोलता .... |
भंवरों का दल आया
हर्षित होकर
उनके संग
गुनगुनाने लगा
सोचा अब तो
बहार आयी
डार बिन बैठे
मन–उपवन में
निकल गयी
मन डोलता .... |
पोटली बाँध
माली आया
सोचा कोई भेंट लाया
वह भी
कूड़ा-करकट छितराकर
जलती तीली फेंक चला गया
मन डोलता ..... |
न आगे कदम बढ़ते
ना ही हिम्मत साथ देती
तन्हाइयाँ यूं ही
संगी न बन जाएं
मन डोलता ...... |
***
@ विजय मधुर
मन की बात, भलि कविता आपकी कविवर। आप दगड़ि गढ़वाळ भवन मा 20 अगस्त की यादगार मुलाकात रै।
जवाब देंहटाएंयाद च जी | धन्यवाद आपकू |
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