विगत 14 अगस्त 2017,
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर पर्वतीय अंचल की वर्ष 1923 में स्थापित
अग्रणीय संस्था गढ़वाल हितैषिणी सभा, वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली चौक, पंचकुईया रोड,
दिल्ली द्वारा उस महान विभूति को याद किया
गया जिसे आज की नव पीढ़ी प्रायः जानती ही नहीं | नाम है प्रसिद्ध समाज सेवी,
शिक्षाविद् एवं साहित्यकार स्व. झब्बन लाल विद्यावाचस्पति | अवसर था उनकी 21वीं
पुण्यतिथि |
इसी अवसर पर उनके
पुत्र श्री विजय कुमार मधुर के कविता संग्रह मन की बातें का विमोचन माननीय श्री
मनोज कुमार, विधायक कोंडली, दिल्ली के कर कमलों से किया गया | कार्यक्रम सफलता
पूर्ण इस प्रकार सम्पन्न किया गया |
१, स्व. झब्बन लाल विद्यावाचस्पति जी को
श्रद्धांजलि
२. स्व. झब्बन लाल विद्यावाचस्पति जी के व्यक्तित्व
एवं कृतित्व पर प्रबुद्धजनों के विचार |
३. श्री विजय कुमार मधुर के कविता संग्रह मन
की बातें का लोकार्पण माननीय श्री मनोज कुमार, विधायक कोंडली, दिल्ली के कर
कमलों द्वारा |
४. हिंदी, गढ़वाली, कुमांउनी कवि सम्मलेन |
प्रमुख
वक्ताओं में श्री मनोज कुमार, हरपाल रावत, गणेश चंद्रा, ललित केशवान, राजेंद्र सिंह
राणा, दीप प्रकाश भट्ट, अनिल पन्त, योगेश भट्ट, दिनेश ध्यानी, डॉ. सत्येन्द्र सिंह
प्रयासी आदि ने अपने विचार व्यक्त किये | कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार
श्री ललित केशवान जी ने की तथा मंच संचालन श्री दिनेश ध्यानी जी द्वारा किया गया |
कवि
सम्मलेन में सर्वश्री ललित केशवान, दिनेश ध्यानी, विजय मधुर, वीरेंद्र नेगी राही,
रमेश हितैषी, चन्दन प्रेमी, ओमप्रकाश आर्य, वीरेन्द्र अजनवी, आशीष सुन्द्रियाल, पंकज
पैन्यूली, जयपाल सिंह रावत आदि ने सुन्दर कविताओं से श्रोताओं को मन मोहा |
प्रसिद्ध समाजसेवी, शिक्षाविद् एवं साहित्यकार स्व. झब्बन लाल विद्यावाचस्पति
जन्म : 01 मार्च 1934
पिता का नाम :
स्व. प्रेम चंद टम्टा
माता का नाम : स्व.
विन्द्रा देवी
पत्नी का नाम : श्रीमती
गायत्री देवी
जन्म स्थान : ग्राम रणस्वा, चौन्दकोट, पौड़ी
गढ़वाल
प्रसिद्ध समाजसेवी, शिक्षाविद् एवं साहित्यकार
स्व. झब्बन लाल विद्यावाचस्पति स्मृति ग्रथ से साभार
वर्ष 1946 : 12 वर्ष की आयु में प्राइमरी पाठशाला
के प्रांगण में देश की आजादी के लिए नारेबाजी के जुर्म में हेड मास्टर के हाथों
सजा | पृष्ठ संख्या 48,238
वर्ष 1949 : 15 वर्ष की आयु में मिडिल पास करते ही
गाँव के खलियान में स्कूल की शुरुआत |
वर्ष 1950 से 1952 गाँव
में स्थाई प्राइमरी स्कूल की मान्यता मिलने के बाद जिला पौड़ी गढ़वाल के दूर दराज के
स्कूलों में अप्रिशिक्षित अध्यापक के तौर पर अध्यापन कार्य |
वर्ष 1953-1954 : हिदुस्तान टीचर सर्टिफिकेट कोर्स |
वर्ष 1955 से 1966 : पौड़ी गढ़वाल के बिभिन्न स्कूलों में स्थाई
अध्यापक के तौर पर अध्यापन कार्य | पृष्ठ संख्या 48
वर्ष 1966 : केन्टोमेंट बोर्ड लैंसडौंन के कंपनी बाग़ के अध्यापक एवं काल्गढ़ी के इंचार्ज
पद से त्याग पत्र |
चुनाव
हारना तो निश्चित था यह तो वह भी जानते थे इसलिए फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और जुट
गए सामाजिक कार्यों में |
1967 से 13-08-1996 तक के आन्दोलन
भूमिहीन आन्दोलन : पृष्ठ संख्या 36-43
एक आन्दोलन कारी के रूप में उन्होंने झंडा हाथ
में लेकर उत्तर प्रदेश के असंख्य भूमिहीनों को भूमि का हक़ दिलवाया | जिसमे 1972 के
दौरान वह उत्तर प्रदेश भूमि व्यवस्था जांच समिति के सदस्य भी रहे जिसमें यात्रा
आदि के दौरान उन्हें राजपत्रित अधिकारी का दर्जा हासिल था | असंख्य लोगों को
मैदानी क्षेत्र में भूमि आवंटित कराने वाले इस ब्यक्ति ने कभी भी अपने क्षेत्र से
दूर बसने की कामना नहीं की |
शिक्षा का आन्दोलन : पृष्ठ संख्या 36-43,248,266,269
क्षेत्र में हिंदी अंग्रेजी स्कूलों की स्थापना |
जिसमे उनकी भूमिका प्रधानाध्यापक, प्रबंधक, सरंक्षक, अध्यक्ष आदि के रूप में रही |
आज भी प्राइमरी से लेकर डिग्री कालेज तक के यह स्कूल प्रबंधक मंडल या सरकार के
अधीन सुचारू रूप से चल रहे हैं तथा लाखों विद्यार्थियों का भविष्य निर्माण कर रहे
हैं |
राजनैतिक आन्दोलन : पृष्ठ संख्या 65-120,211,217
वर्ष 1967 : विधान सभा क्षेत्र एकेश्वर पौड़ी
गढ़वाल से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव में हाथ आजमाए |
चुनाव चिन्ह था उगता हुआ सूरज |
1.
एकेश्वर क्षेत्र के अंतर्गत डिग्री कॉलेज की स्थापना |
2.
एकेश्वर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत कालेजों में ओवरसियरी तथा
टेक्निकल कक्षाएं खुलवाना |
3.
क्षेत्र में जच्चा बच्चा अस्पताल खुलवाना |
4.
शिक्षकों का न्यूनतम वेतन रु.200/- प्रतिमाह |
5.
सार्वजनिक निर्माण विभाग में मजदूरों एवं निजी मजदूरों का न्यूनतम
पारिश्रमिक केन्द्रीय सार्वजनिक निर्माण विभाग के मजदूरों की तरह निश्चित करना |
6.
भ्रष्टाचार के विरुद्ध निसंकोच आवाज उठाना उसे दूर करवाना |
7.
वन संपदा से मिलने वाली ओषधियों एवं एनी वस्तुओं से सम्बंधित उद्योग
धंधे स्थापित करवाना |
8.
क्षेत्र में अर्द्ध निर्माण की गयी सड़कों को पूरा करवाना |
9.
केन्द्रीय स्थानों से प्रत्येक गाँव गाँव तक पुलों का निर्माण कर
यातायात का सम्बन्ध स्थापित करना |
10.
गाँव-गाँव में पेयजल तथा सिंचाई योजनाओं को स्वीकृत करवाना |
अपील गढ़वाली रचना के माध्यम से :
नोटू
की वहार मा वोट ना विकै दिंया
लड्डू
दाणी धोती मा अफु न बिकी जयां |
अंयु राज आज यो रावणु का हाथ मा
गरीबु की हंसी करदीं बंगलों की शानी मा |
घुमला बजारू मा डांडी कांठी रौल्यूं मा
बखाला फोंदरू तैं गरीबु सताण मा |
आज भोल आला ये बिरली का बेश मा
दूध पेकी छिन्गुरयाला शेर का ठमाण मा |
गाँधी की ढकीं धरीं लग्यां छन लुटाण मा
राति जाला थाति मा पद्नू का पास मा |
बैर भौ फैलंदी भै बंधू का बीच मा
आरी धैरी चीरा करदीं जाति गोळ रींडा मा |
·
दो बार विधानसभा तथा एक बार विधान परिषद का चुनाव लड़ा
·
अध्यक्ष भारतीय रिपब्लिकन पार्टी पौड़ी गढ़वाल |
·
कार्यकारिणी सदस्य, महामंत्री, उपाध्यक्ष जिला कांग्रेस कमेटी |
·
संयोजक उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर कांग्रेस |
1986 में लगभग 1500 की जनसंख्या व 22 हक्टेयर वन
क्षेत्र में पञ्च परमेश्वर में से एक सरपंच के रूप में उन्होंने 24 वर्षों तक कुशल
भूमिका निभाई | जिसका जिक्र आज भी गाँव के पुराने लोग करते हैं |
निदेशक गढ़वाल मंडल विकास निगम : पृष्ठ 125-128
वर्ष 1983 से 1986 के दौरान गढ़वाल मंडल विकास
निगम में बतौर निदेशक कार्य किया जिसमें समय गढ़वाल मंडल की कार्य शैली, विश्राम
गृह, फ्लशडोर फैक्ट्री, रोजिन व तारपीन फैक्ट्री के मूल्यांकन के साथ – साथ स्टाफ,
रोजगार में स्थानीय युवकों को प्राथमिकता पर भी प्रस्ताव पारित कर उनका क्रियान्वन
करवाया गया |
साथ ही पृष्ठ 128 -135
·
क्षेत्र विकास समिति की बिभिन्न समितियों में अध्यक्ष , जेष्ठ प्रमुख
|
·
आर्य समाज चौन्दकोट के महामंत्री
·
भारत ज्ञान विज्ञान समिति के संयोजक
·
गढ़वाली भाषा परिषद् के सदस्य अदि संस्थाओं में कार्य करने का उनका
उल्लेख पाया गया |
पत्र कारिता एवं सम्पादक गढ़ चेतना : पृष्ठ 136
-147 , 216, 267,270,284
क्षेत्रीय संवादाता के रूप में बिभिन्न पत्र
पत्रिकाओं जिनमें कर्मभूमि, सत्यपथ, दैनिक पर्वतीय, हिमालय टाइम्स के माध्यम से वह
क्षेत्र की समस्याओं को जन – जन तक पंहुचाने का कार्य करते थे तथा अपने लेखनी के
माध्यम से समस्याओं का निवारण करवाते थे |
सुदूर नौगांवखाल पौड़ी गढ़वाल से साप्ताहिक गढ़चेतना
का संचालन भी उन्होंने आरम्भ कर दिया | सुदूरवर्ती पर्वतीय क्षेत्र से प्रकाशित यह पहला ही
साप्ताहिक पत्र रहा हो |
उत्तराखंड आन्दोलन : पृष्ठ 10,210,250,262
स्व.
झब्बन लाल जी उत्तराखंड स्वतंत्र राज्य के पक्षधर रहे हैं लेकिन समाज में फ़ैली तरह तरह की मन गणत भ्रातियों से आहत भी | जिसका
उल्लेख समाचार पत्रों में प्रकाशित उनके पक्ष और बुद्धिजीविंयों के लेखों से स्पष्ट
होता है | सामाजिक भ्रातियों से बाहर निकल लोगों में पृथक राज्य आन्दोलन के प्रति
जागरूकता पैदा करने का कार्य उन्होंने बखूबी किया | लेकिन दुर्भाग्य कुछ महापुरुष केवल संघर्ष करने के लिए पैदा होते हैं | सुख भोगने के लिए कोई और |
साहित्यिक आन्दोलन : पृष्ठ 138,271-289
जैसा कि उनके सहपाठी श्री योगेश पांथरी जी ने जिक्र किया है |जो उम्र बच्चों की
खेलने कूदने की होती है, उस उम्र में स्व. झब्बन लाल विद्यावाचस्पति जी के मन में
देश प्रेम का वह जज्बा था कि 12 वर्ष की आयु में अपनी प्राईमरी पाठशाला के प्रांगण
में वर्ष 1946 में अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में नारेबाजी शुरू कर दी जिसका दंड
स्कूल हेड मास्टर के द्वारा उन्हें बेंतों के रूप में दिया गया | आगे चलकर वर्ष
1965 में उनका पहला प्रकाशित साहित्य “ स्व राष्ट्र वीर वंदना” के नाम से पाठकों के मध्य आया |
डॉ.नन्द किशोर ढौंडियाल जी के शब्दों में – श्री
झब्बन लाल विद्यावाचस्पति जी का साहित्य अनेक दृष्टिकोणों से समाजोपयोगी रहा है |
अपने जीवनकाल में इस त्यागवीर ने जो कुछ भी लिखा उसका अधिकांश अनेक पत्र पत्रिकाओं
में प्रकाशित हुआ | उन्ही पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से पाठकों को यह ज्ञात हुआ कि
हिमालय की कंदराओं में जन्म लेने वाला यह साहित्यकार समाज के विषय में क्या सोचता
है और वह समाज के लिए क्या करना चाहता है | इस साहित्यसेवी ने गोलोक में प्रवेश
किया तब इनके मातृलोक में रह गया था इनका कुछ प्रकाशित तो कुछ अप्रकाशित साहित्य,
जिसके अवलोकन से साहित्य समीक्षकों को यह ज्ञात हुआ कि श्री झब्बन लाल
विद्यावाचस्पति जी साहित्य की अनेक विधाओं के चिन्तक और सृजक थे |
कविता के साथ ही इनका दूसरा रूप गद्यकार का है |
इनका यह गद्य पांच रूपों में प्राप्त होता है |
एक पत्र पुत्र के नाम के कुछ अंश 28-03-1985 : पृष्ठ 151
अपनी
माता व पिताजी का शुभाशीष | बड़ा भाई सुधांशु, भाभी का प्यार छोटे अनुज जय एवं टुनू
तथा बेटी संगीता का प्रणाम | हम सब सहित परिवार कुशल मंगल हैं | तुम्हारी कुशलता
के लिए भगवान से प्राथी हैं | आशा करते हैं कि तुम अपनी कुशल पत्रिका यथाशीघ्र
समयान्तर्गत प्रेषित किया करोगे |
बेटा
तुमने लिखा मेरी परीक्षा आरम्भ हो रही है | मुझे विश्वास है कि तुम परीक्षा भली
प्रकार देने के पश्चात सफलता अवश्य प्राप्त करोगे | चरित्र ही स्वास्थ्य एवं
स्वाध्याय की कसौटी है | कसौटी पर कसने पर ही खोटे-खरे की परख की जाती है | बिना
विवेकशील अध्ययन मनन अधूरी विद्या समझनी चाहिए |
तुम्हारी
7-3-85 की प्रेषित कुशल पत्रिका के साथ मुझे केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद,
देहरादून में हिंदी परिषद् की कार्यकारिणी गठन 1985-86 के लिए किया गया प्रपत्र
प्राप्त हुआ | तुम्हारा नाम कार्यकारिणी में अवलोकन करने पर मुझे अपार हर्ष हुआ और
विश्वास किया कि एक साहित्यकार, पत्रकार एवं संपादक का पुत्र अवश्य अपनी प्रखर
बुद्धि से अपने साहित्य के आधार पर देश, काल, और परिस्थिति में सामाजिक सेवा करने
में सफलता हासिल करेगा |
बेटा
साहित्यकार अपने साहित्य की शब्दरूपी श्रृंखलाओं से जिस प्रकार प्राणी-मात्र को
समय की गति से संजोता है वह उसके पवित्र मन के उदगार होते हैं , बिना स्वाध्याय का
साहित्य शब्द रचना नीरस होती है | साहित्य चाहे कोई भी हो उसके लिए साहित्यकार के
पास विशाल शब्द भण्डार का होना अति आवश्यक है |
मैं
लाया हूँ तूफान से किश्ती निकाल के |
इस
देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के ||
यही
स्थिति मेरे पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन की रही है | मैंने अपने कठिन परिश्रम से
जो भी किया उससे तुम पूर्ण परिचित हो | मुझे आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि तुम
गाँधी जी की उपरोक्त कड़ियों को मेरी जीवन लड़ियों के साथ जोड़कर रखोगे |
आज
मुझे बहुत समय पश्चात् तुमको ऐसा पत्र लिखने का समय मिला | तुम पत्र फाड़कर किसी
रद्दी की टोकरी में न डाल देना | बल्कि किसी फाइल में मेरे पत्रों को संभाल कर
रखना | शायद नेहरु जी के पत्र ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ वाली बात मेरे जीवन
में भी सार्थक बन जाए |
14 अगस्त 1996
को प्रसिद्ध समाजसेवी, शिक्षाविद् एवं साहित्यकार स्व. झब्बन लाल विद्यावाचस्पति
जी की काया नश्वर काया में बिलीन हो गयी | क्षेत्र के प्राईमरी से लेकर डिग्री कॉलेज में जहाँ राष्ट्र गीतों एवं उनके राष्ट्र भक्ति से ओत-प्रोत भाषण गूंजते थे मातम के बादल छा गए | लेकिन उनके परममित्र, लेखक एवं प्रखर
पत्रकार स्व. डॉ. उमाशंकर थपलियाल जी ने पृष्ठ 207 में सही लिखा है |
मेरा तो मानना है कि ऐसे कर्मबीर कभी नहीं
मरते | वे जिन्दा रहते हैं | कहा जाय तो भाई झब्बन लाल आज भी कहीं जिन्दा है, अपने
विचारों के रूप में, अपने संघर्ष के रूप में जो उन्होंने अन्याय और अत्याचार के
बिरुद्ध छेड़ा | उनकी कलम जब भी उठी होगी तो दमन कारियों के विरुद्ध, शोषणकर्ताओं
के विरुद्ध, सामाजिक घृणा फ़ैलाने वालों के विरुद्ध, समाज विरोधी तत्वों के खिलाफ,
निर्बल वर्गों की कमर तोड़ने वालों के खिलाफ | इसलिए मैं फिर कहता हूँ कि भाई झब्बन
लाल मरा नहीं, वह मरने वाला व्यक्ति था ही नहीं | मरते वे हैं, जो अपने शरीर से
जीते हैं | शरीर की सतह से आगे नहीं जीते | शरीर मर जाता है तो वे भी मर जाते हैं
| गलत ! भाई झब्बन लाल उनमें से नहीं थे
.... तुम हो और मैं सच कहता हूँ कि तुम हो .... तुम विदा होकर भी विदा नहीं हुए |
