tag:blogger.com,1999:blog-1952704056818993872.post8197101483113070875..comments2023-07-02T20:34:41.943+05:30Comments on गढ़_चेतना: स्मारक साहित्य के दस्तावेजी कोलाज़ से उभरता एक नायक :विजय मधुरhttp://www.blogger.com/profile/18352162092513110671noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-1952704056818993872.post-82900312636203743342015-08-17T23:27:13.236+05:302015-08-17T23:27:13.236+05:30प्रिय
भाई विजय सादर नमस्ते | परिवार में ...प्रिय <br /> भाई विजय सादर नमस्ते | परिवार में सबको यथायोग्य नमस्ते | आशा करता हूँ आप सपरिवार कुशल पूर्वक से होंगे | पुस्तक “प्रसिद्ध समाजसेवी, शिक्षाविद एवं साहित्यकार स्व. झब्बन लाल ‘विद्यावाचस्पति’ प्राप्त हुई | पुस्तक को पढ़ा तो मुझे आपकी प्रसंसा हेतु अपने शब्द कोष में शब्द नहीं मिले | आपका महा प्रयास एतिहासिक तो है ही साथ ही अनुकरणीय भी है | पुस्तक मेरे जैसे पाठक के लिए संग्रह करने हेतु है | जिसमे मुझे सामान्य ज्ञान , एतिहासिक विषय जो समय – समय पर मेरा भी मार्ग दर्शन करने में एक मील का पत्थर साबित होगा | <br /> पुस्तक में गीत “नोटू की बहार मा वोट ना बिकै दिन्या, लड्डू दाणी धोती मा अफू ना बिकी जन्या” मुझे अपने बाल्यकाल की यादें याद आ गयी क्योंकि तब हम भी बौंदर, नाई, कांडई, मल्कोट आदि गाँवों तक प्रचार के लिए गए थे | और सभी बच्चे इस गीत को गाकर प्रचार कर रहे थे | पृष्ठ संख्या १४० पर नौगाँवखाल अस्पताल का विषय कि डाक्टर तो यंहा आते नहीं , एक कम्पाउण्डर था जो छुट्टी चला गया और अस्पताल का कार्यभार चौकीदार (उनका नाम सीताराम जी ग्राम नौगाँव था) को दे दिया | जिससे देखने को मिला कि चौकीदार की पद्दोनति डाक्टर के पद पर हो गयी | यह घटना मुझे आज भी याद आती है उस समय यह समाचार काफी चर्चा का विषय था नौगाँवखाल में | <br /> पृष्ठ संख्या १५१ पर एक पिता द्वारा पुत्र को लिखा गया प्रेरणा दायक पत्र जो निश्चय ही दिल को छू गया है | आधुनिक युग की अंधी दौड़ में शायद ही कोई पिता अपने पुत्र को एसा पत्र लिखता हो ? <br /> पुस्तक के अंत में डा. नन्द किशोर ढौंडियाल “अरुण” जी द्वारा स्व. झब्बन लाल ‘विद्यावाचस्पति’ जी के साहित्य पर जो शोधपूर्ण लेख लिखा गया वह निश्चय ही पुस्तक को और अधिक रुचिकर बना देता है | जैसा कि उन्होंने लिखा ‘ इस साहित्य सेवी ने गोलोक में प्रवेश किया तब मातृलोक में रह गया था उनका प्रकाशित तो कुछ अप्रकाशित साहित्य | जिसके अवलोकन से यह ज्ञात हुआ कि श्री झब्बन लाल ‘विद्यावाचस्पति’ साहित्य की अनेक विधाओं के चिन्तक और सृजक थे | <br /> तमाम लोगों के संस्मरणों से काफी कुछ समझने को मिला | उनके जीवन पथ के तमाम संघर्षों व समाज सेवा जिनकी मुझे भी जानकारी नहीं थी क्योंकि मैं भी मई १९६८ को अपनी आठवीं तक की शिक्षा के बाद दिल्ली चला गया | उसके बाद बम्बई तथा १९७८ में लखनऊ “हिंदुस्तान ऐरोनेटिक्स” में | पूज्य चाचा जी स्व. झब्बन लाल “विद्यावाचस्पति” जी लखनऊ आते रहते थे कई बार उनसे मिलना भी हुआ दो बार वह हमारे घर भी आये | स्मरणों में श्री माणिक लाल वर्मा जी जिन्हें समझो मैं भूल ही बैठा था , श्री हीरा सिंह रावत जी पूर्व प्रधानाचार्य के स्मरण पढ़कर अपने छात्र जीवन की काफी खट्टी मीठी यादें ताजा हुई | इसके लिए भाई विजय मैं व्यक्तिगत आपका आभारी हूँ कि आपने एक साहसिक व एतिहासिक कार्य किया है | चाचा जी की आत्मा जंहा कंही भी होगी उनका आशीर्वाद व उनके द्वारा ईश्वरीय शक्ति आपको सदैव मिलती रहेगी ऐसा मेरा विश्वास है | साथ ही आप तो साहित्य जगत से जुड़े हैं भविष्य में भी आपसे आशा करता हूँ आपकी कलम इसी प्रकार चलती रहेगी | <br /> मैं आपके उज्वल भविष्य , स्वस्थ जीवन व दीर्घायु की कामना दयालु प्रभु से सदैव करता रहूंगा | इसी आशा व विश्वास के साथ | <br /> *विनोद कुमार, इन्दिरा नगर, लखनऊ १५-०४-२०१४ <br />Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1952704056818993872.post-27569842812924307422014-03-12T21:42:13.534+05:302014-03-12T21:42:13.534+05:30मधुर जी आपने अपने भागीरथ प्रयत्न द्वारा प्रसिद्ध स...मधुर जी आपने अपने भागीरथ प्रयत्न द्वारा प्रसिद्ध समाजसेवी, शिक्षाविद एवं साहित्यकार स्व.झब्बन लाल 'विद्यावाचस्पति'जी की स्मृति को चिरस्थायी रखने के हेतु तथा भावी पीढ़ी को एक नई सोच, नई दिशा देने जो दस्तावेज तैयार किया है , यह भागीरथ प्रयत्न ही तो है | राजा भागीरथ भी अपने पूर्वजों के ऋण से मुक्त होने हेतु हई गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाये थे | और पूर्वजों को सच्ची श्रद्धांजली ही यह कृति है | यह रचना है | <br /> स्मृति ग्रन्थ लोकार्पण समारोह भव्य एवं गरिमामय था | इसके लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामना | आशा है आपका लेखन कार्य भविष्य में जारी रहेगा क्योंकि यह तो मात्र शुरुआत है | समाज आप से आशा करता है कि भविष्य में आपकी अन्य कृतियां भी प्रकाशित होंगी , पुनः साधुवाद | <br />चंडीप्रसाद 'व्यथित', पत्रकार , लैंसडौनAnonymousnoreply@blogger.com