मेरी माँ जी ने अपने पिता अर्थात हमारे नाना जी को मिले इस मैडल को अभी तक बतौर निशानी
संभाल कर रखा है । इन दिनों मैं अपने पिताजी स्व . झब्बन लाल विध्यावाचस्पति के ब्यक्तित्व एवं कृतित्व को एक पुस्तक की शक्ल देने का प्रयास कर रहा हूँ । तब माँ से अक्सर बातें करके रोज ही नयी - नयी जानकारियां मिलती रहती हैं । ऐसी ही एक जानकारी माँ ने इस मैडल के रूप में उपलब्ध करायी । ६० वर्षों से भी अधिक किसी ऐतिहासिक दस्तावेज को सहेज कर रखना कोई उनसे सीखे । जबकि नाना जी के मृत्यु सन १९४७ के आस - पास हो गयी थी उस समय माँ गायत्री देवी की उम्र लगभग दस - ग्यारह साल और उनके छोटे भाई धर्मपाल की दो साल रही होगी । माँ को सिर्फ इतना याद है कि उनके पिता फौज में हवालदार थे । ज्यादा जानकारी उनको भी नहीं मालूम । नाना जी को गाँव धरासू में सुंदर मणी (सौन्द्री ) नाम से जाना जाता था ।
@२०१३ विजय मधुर