गुरुवार, 28 मार्च 2013

गीत : खेलेंगे मिल होली

आओ रे आओ रे
खेलें सब मिल होली । 

आया बसंत 
झूमें सब तरुवर 
पंछी बोलें मीठी बोली 
आओ तुम भी 
आयें हम भी 
खेलेंगे मिल होली । 

आओ रे आओ रे 
खेलें सब मिल होली । 

उड़े गुलाल और 
मार पिचकारी 
गूंजे खुशियों की किलकारी 
हम तुम हैं हमजोली 
खेलेंगे मिल होली । 

आओ रे आओ रे 
खेलें सब मिल होली । 

मजनू मिंया भी 
खेलन चले हैं 
अपनी  लैला संग होली ....
काहे पिया तुम 
चुप बैठी हो 
मन ही मन 
सोच रही हो 
आये हमार घर डोली । 

आओ रे आओ रे 
खेलें सब मिल होली । 

सारी खुशियाँ 
तुझ पे लुटा दूं 
रंग बसन्ती 
चुनरी उढ़ा लूं 
अब बनो ना 
ज्यादा भोली 
खेलो हम संग होली । 

आओ रे आओ रे 
खेलें सब मिल होली । 

@२०१३(1987) विजय मधुर 


बुधवार, 27 मार्च 2013

विश्व रंग मंच दिवस

           आज विश्व रंग मंच दिवस है । इसी दिवस पर मैं आज भाई विजय गौड द्वारा उनके  ब्लॉग में स्व. अवधेश कुमार जी की कविता पर अपने कमेंट को विस्तृत रूप में इसलिए प्रकाशित कर रहा हूँ क्योंकि कमेन्ट की एक सीमा होती है  और  सभी रंगकर्मियों एवं पाठकों तक बात पंहुचाना भी रंगकर्मी के नाते अपना कर्तब्य समझता हूँ ।  
        कारवाँ देहरादून द्वारा आयोजित पांच दिवसीय अखिल भारतीय नाट्य समारोह १६ सितम्बर से २० सितम्बर  1९९२ में स्वर्गीय अवधेश कुमार जी के साथ कार्य करने का मौका मिला । इस नाट्य समारोह में उन्ही के द्वारा लिखित दो नाटकों का मंचन किया गया । पहला ' कोयला भई ना राख ' जिसे 'वातायन' की  ओर से श्री राम प्रसाद अनुज द्वारा निर्देशित किया गया ।  उन्ही के द्वारा लिखित दूसरी प्रस्तुति ' वन गाथा ' आयोजक संस्था 'कारवाँ ' द्वारा अवधेश कुमार जी के निर्देशन में ही मंचित की गयी । इस सामारोह के दौरान उनके साथ समय बिताने का  सौभाग्य प्राप्त हुआ क्योंकि एक तो इस आयोजन में प्रकाशित होने वाली स्मारिका के  सम्पादन की जिम्मेदारी मुझ पर थी । कला पक्ष के क्षेत्र में उस समय स्व अवधेश कुमार के अतिरिक्त कोई नाम याद ही नहीं था । इसलिए इस स्मारिका में कला पक्ष उन्ही का था । साथ ही पर्यावरण संरक्षण पर आधारित  नाटक ' वन गाथा ' में ' इंद्र ' की भूमिका निभाने का मौका भी  उनके निर्देशन में मिला  । स्व . अवधेश कुमार जी का जन्म ७ जून १९५१ में हुआ और निधन १४ जनवरी ' १९९९ . उनका प्रमुख साहित्य  नाटक 'कोयला भई ना राख '  , ' वन गाथा '  ,  ' सूखी धरती प्यासा मन '  , कथा संग्रह  'उसकी भूमिका  ' काव्य संग्रह  ' जिप्सी लड़की '  और उनके बनाये पोस्टर , चित्र आदि हैं ।   मरणोपरांत स्व.  अवधेश कुमार जी को  ' कारवाँ ' संस्था द्वारा विश्व रंगमंच दिवस  २७ मार्च ' २००१ पर  " रंग भूषण " सम्मान से सम्मानित किया गया ।  इस दौरान कारवां की कार्यकारिणी में संयोजक - उदय शंकर भट्ट , अध्यक्ष - अलोक मालासी , उपाध्यक्ष - प्रमोद शाह , कोषाध्यक्ष - वि . राजकुमार , सचिव - विजय कुमार मधुर (स्वयं ), सह सचिव - दिनेश धस्माना , सांस्कृतिक सचिव - राजीव शुक्ला , प्रचार सचिव - अजय वशिस्ठ  और कार्यकारिणी सदस्य थे -  चंद्रकांता मालासी , रूपेश कुमार , अनुज कुमार , पी .आर . कश्यप और रातुल बिजल्वाण ।"रंग भूषण " नाट्योत्सव एवं सम्मान  समारोह - २००१   में प्रकाशित स्मारिका का संपादन किया था भाई सुरेन्द्र भंडारी ने ।     साथ ही दून रंगमंच के सशक्त हस्ताक्षर  दादा अशोक चक्रवर्ती और राहुल वर्मन को  भी इसी समारोह में   " रंग भूषण " सम्मान से सम्मानित किया गया । 

@ २०१३ विजय मधुर 

होली का त्यौहार











बसंत   आया 
तरुओं ने ली अंगड़ाई 
फूलों से लकदक डालियों में 
देखो कैसे बहार है आयी । 

खुशियों संग गुलाल के 
छाये हैं नभ में मेघ 
ढोलक की थाप में नाचें सभी 
एक दूजे को देख । 

पकवानों की थाल में 
गुजिया का क्या कहना 
रंग बिरंगे परिधानों में 
गुलाल बना है गहना । 

मस्ती भरा दिन है 
बरसे रंगों की बौछार 
मनाएं सब रंज भूलकर 
होली का पावन त्यौहार । 

@२०१३ विजय मधुर