रविवार, 29 अगस्त 2010

हॉकी नहीं बैट(लघु कथा)

  छुट्टी का दिन बिन्दां बच्चों को बाज़ार घुमाने ले गया | बेटे टिंकू ने एक दुकान के आगे घोर डाल दी | पापा..पापा...मुझे ये ए हॉकी लेनी है | नहीं बेटा रहने दे | दूसरे दिन दिला दूंगा | परन्तु टिंकू नहीं माना  |  दुकान के फर्श  पर लम्पसार हो गया | शर्म के मारे पति-पत्नी और बेटी का मुंह लाल हो गया | पत्नी बोली कितने का भय्या | दुकानदार - सौ रूपये का | पत्नी पति से - दिला दो क्यों बाज़ार में तमाशा ....|  दुकानदार लो भाई साहब जब बच्चा इतनी जिद्द  कर रहा है तो ... मेरी तरफ से ले जावो | बिंदा ने दुकानदार का हाथ झटक लिया  और एक थपड टिंकू की गाल में रसीद कर दिया | बहुत बिगड़ गया | आस पास के अन्य ग्राहक यह देखकर दंग रह गए | कैसा बेशरम बाप है ....| टिंकू सुबकता हुआ माँ के पेरों पर लिपट दुकान से बाहर निकल आगे बढ़ने लगा

बिंदा को अच्छा नहीं लगा | टिंकू को पुचकारते हुए गोदी में उठा लिया | अभी मैं अपने टिंकू को उससे भी अच्छी चीज दिलाऊँगा | कंहा सस्ती सी हॉकी के पीछे पड़ा था  ..... वो देख ........ कितना ... बड़ा ...... पोस्टर है  ...किसका है ? टिंकू सुबकता हुआ ... सचिन का | सचिन तेंदुलकर | दुनिया का जाना - माना क्रिकेटर | मैं भी अपने बच्चे को क्रिकेटर बनाऊंगा सचिन के जैसे | अभी अपने बच्चे को बैट दिलाता हूँ .....  वो भी सचिन का  सामने दूसरी दुकान पर जाते हैं ......|  भय्या एक बढ़िया सा बैट दे दो मेरे टिंकू  को | कितने का है ? दुकानदार पांच सौ रूपये  | कुछ  कम.... ? नहीं.. नहीं...... एक पैसा कम नहीं |  ठीक है दे दो  | देखो..... कितना सुन्दर है  खूब....... चौके- छक्के मारना | ठीक हैं ना .....| हंसकर बोल दे | टिंकू सिर नीचे झुकाते  हुए बोला - ठीक है और दु कान से बाहर निकल गया | सामने आइसक्रीम बेचता एक बच्चा उसके आगे आइसक्रीम...आइसक्रीम... चिल्लाता रहा परन्तु टिंकू पर उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ | ना ही आज  उसने आइसक्रीम खाने को कहा | 

Copyright © 2010 विजय मधुर 

गुरुवार, 19 अगस्त 2010

सरलता...


गीली लकड़ी
सुलगता चूल्हा
फून्कनी से फूंकते-फूंकते
आंसुओं की धार |

पीसती चक्की
गोदी में नन्ही
पाँव हिलाकर उसे सुलाती
उड़ते आटे से सफेद बाल |

गोबर में  सने हाथ
रोता नन्हा
कोहनी से थपथपाती
पोंछती उसकी नाक |

भरी दोपहरी
पसीने में  नहाती
खेत गुडाई
गीतों की तान |

कास ......
माँ जैसी
सरलता ...
संयम ......
उधार ही मिल जाये
जीवन धन्य हो जाये

Copyright © 2010 विजय मधुर